प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को तीर्थराज प्रयागराज की पावन धरा पर त्रिवेणी संगम में पूजा अर्चना कर 13 जनवरी से 26 फरवरी तक होने जा रहे महाकुंभ के सफल आयोजन की कामना की. पीएम मोदी ने इस अवसर पर प्रयागराज में 5700 करोड़ की 167 परियोजनाओं का लोकार्पण किया और कहा कि प्रयागराज की धरती पर इतिहास रचा जा रहा है. महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन है. प्रयाग में पग-पग पर पविवित्र स्थान हैं. महाकुंभ की भव्य दिव्य सफलता के लिए शुभकामना. साल 2019 में यूनेस्को ने महाकुंभ को अमूर्त धरोहर का दर्जा दिया है.
बता दें कि महाकुंभ के लिए 9 नए घाट, 3000 नई ट्रेन, तीन लाख पौधारोपण 300 पार्क का जीर्णोद्धार, 4000 हेक्टेयर में कराया जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज पहुंचे और संगम तट पर पूजा अर्चना की. प्रधानमंत्री ने 2025 के महाकुंभ के लिए सुविधाओं में सुधार और शहर के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के उद्देश्य से 5,500 करोड़ रुपये की प्रमुख विकास परियोजनाओं की शुरूआत करने से पहले संगम तट पर पूजा अर्चना की.
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर एक औपचारिक पूजा और दर्शन के साथ शुरू हुई. पूजा से पहले मोदी ने नदी में नौकाविहार का आनंद लिया. पूजा के अवसर पर प्रधानमंत्री के साथ उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उपस्थित थे. हर 12 साल में आयोजित होने वाला महाकुंभ अगले वर्ष प्रयागराज में 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) से 26 फरवरी (महा शिवरात्रि) तक आयोजित किया जाएगा.
प्रधानमंत्री ने अक्षय वट वृक्ष स्थल पर पूजा की, प्रधानमंत्री उसके बाद हनुमान मंदिर गए. उन्होंने वहां और फिर सरस्वती कूप में दर्शन और पूजा की. इसके बाद उन्होंने महाकुंभ प्रदर्शनी स्थल का भ्रमण किया और वहां मौजूद अधिकारियों से उसके बारे में जानकारी ली. ‘राम नाम बैंक' के संयोजक प्रयागराज के आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार, महाकुंभ मेला अनुष्ठानों का एक भव्य आयोजन है. त्रिवेणी संगम पर लाखों तीर्थयात्री इस पवित्र अनुष्ठान में भाग लेने के लिए एकत्रित होते हैं.
ऐसी मान्यता है कि पवित्र जल में डुबकी लगाने से व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है, खुद को और अपने पूर्वजों को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर अंततः मोक्ष या आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त कर सकता है. वार्ष्णेय ने कहा कि स्नान अनुष्ठान के अलावा, तीर्थयात्री पवित्र नदी के तट पर पूजा भी करते हैं और विभिन्न साधुओं और संतों के नेतृत्व में ज्ञानवर्धक प्रवचनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं.
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