मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने करूर जिले के चिन्नाथरापुरम मरिअम्मन मंदिर में अनुसूचित जाति के श्रद्धालुओं के पूजा-अर्चना के अधिकार को सुनिश्चित न कर पाने पर जिला प्राधिकारियों की खिंचाई की है. याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति पुगलेंधी ने कहा कि, "2025 में अदालती आदेश के जरिए अनुसूचित जातियों को प्रवेश की अनुमति देना गर्व की बात नहीं, बल्कि शर्म की बात है. साल 1939 में समाज सुधारकों ने नैतिक साहस के जरिए जो हासिल किया था, उसे आज सिर्फ न्यायिक हस्तक्षेप के जरिए ही लागू किया जा रहा है."
अदालत ने वैकोम सत्याग्रह (1924-25), गुरुवायुर सत्याग्रह (1931-32) और 1936 के त्रावणकोर मंदिर प्रवेश उद्घोषणा जैसे ऐतिहासिक संघर्षों को याद किया. न्यायाधीश ने कहा कि, "यह खेदजनक है कि संवैधानिक गारंटी के बावजूद, जाति-आधारित भेदभाव के कारण अभी भी भक्तों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता है."
अधिकारियों पर कड़ी फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा,
- जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक सजावटी पद नहीं बल्कि संवैधानिक पद हैं
- कार्रवाई करने में विफल रहने से उन्होंने अधिकारों की रक्षा करने के बजाय भेदभाव को बढ़ावा दिया है
- कर्तव्य के प्रति उनकी लापरवाही ने भक्तों को न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर कर दिया है
...तो मंदिर बंद नहीं रखना पड़ता
न्यायाधीश ने कहा, "यदि अधिकारियों ने शांति बैठकें बुलाई होतीं, एचआर एंड सीई अधिकारियों की मदद से पूजा सुनिश्चित की होती और पुलिस सुरक्षा प्रदान की होती, तो मंदिर को 2018 से बंद नहीं रखना पड़ता."
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि अनुसूचित जाति के श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश से रोकने की कोशिश करने वाले मंदिर प्रशासकों समेत 17 लोगों के खिलाफ मामले की सुनवाई में तेजी लाई जाए. न्यायाधीश ने कहा, "संवैधानिक अधिकारों में बाधा डालने वालों को कड़ी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा. तभी जाति के आधार पर पूजा-अर्चना पर रोक लगाने की कोशिश करने वालों में डर पैदा होगा".