देश में सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक है मध्यप्रदेश लेकिन इस साल सोयाबीन बीजों का संकट (Soyabean seeds crisis) गहरा गया है. खरीफ सीजन सिर पर है बुवाई शुरू होने वाली है लेकिन किसान बीज ढूंढ रहा है. जहां मिल रहा है वहां 8 से 12 हजार रूपये प्रति क्विंटल. इस कालाबाजारी को रोकने के बजाए कृषि मंत्री कह रहे हैं कि सोयाबीन घाटे का सौदा है किसान खरीफ में दूसरी फसल लगा लें. कोरोना संकट के बीच जून के पहले हफ्ते में शाजापुर में शासकीय बीज केंद्र पर किसानों की भारी भीड़ उमड़ी और सोशल डिस्टेंस की जमकर धज्जियां उड़ती दिखीं.11 बजे केन्द्र खुलता लेकिन 6 बजे से ही किसान लाइन में लग गये. एक पर्ची पर 60 किलो सोयाबीन बीज मिला. किसानों की मांग इससे कहीं ज्यादा थी, नाराज किसानों को संभालने पुलिस ने मोर्चा संभाला.
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खरगौन जिले में खरीफ सीजन को लेकर किसानों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. इस साल 70 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की बोवनी किए जाने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन किसानों को दुकान-सोसायटी कहीं से बीज नहीं मिल रहा है. किसान लोकेश पाटीदार का कहना है कि सोयाबीन का बीज नहीं मिल रहा है हम दो महीने से परेशान हो रहे हैं कैसे हम बीज बोएं? पड़ोसी धार में तो कई किसानों ने इस बार सोयाबीन बोया ही नहीं, कालू साढ़े तीन एकड़ में सोयाबीन लगाते थे इस बार कपास बोया है.
वहीं, किसान कालू का कहना है कि पहले कपास बोते थे इस बार सोयाबीन बोया है, 8000 कट्टा मिल रहा है, 3500 का भाव मिलता था क्या भाव है. आपको बता दें कि मध्य प्रदेश को सोया राज्य का तमगा मिला हुआ है, लेकिन इस बार किसानों को गुणवत्ता वाले सोया बीजों के गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है, जो हैं वो 10,000 रुपये प्रति क्विंटल से 12,000 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर उपलब्ध हैं. देश में सोयाबीन उत्पादन में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का लगभग 89 प्रतिशत हिस्सा है.पिछले साल मध्य प्रदेश में लगभग 58.54 लाख हेक्टेयर में फसल बोई गई थी, जबकि महाराष्ट्र में लगभग 43 लाख हेक्टेयर में.
ऐसे में बजाये किसानों को संकट से उबारने कृषि मंत्री बयान दे रहे हैं कि किसान सोयाबीन ना उगाएं. कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि सोयाबीन घाटे का सौदा है,1600 के हजार करने का है, किसान घाटे में होगा तो कर्ज में आएगा उसको परिवर्तन करते रहना चाहिये, पहले सोयाबीन नहीं था कपास था, उसके दिख रहा है लागत 1600 की है, आमदनी 1000 की तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे.
देश में वैसे भी खाने के तेल का 40 फीसद से ज्यादा आयात होता है ऐसे में तिलहन और खासकर ऑयल सीड में आत्मनिर्भर होने की बात होनी चाहिये लेकिन एक बड़े सूबे के कृषि मंत्री सीधे किसानों को हतोत्साहित कर रहे हैं वो भी तब जब खाने के तेल की महंगाई से रसोई परेशान हैं, ऐसे में कृषि मंत्री का ये बयान ना सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि जानकारों को लगता है ये पूरी योजना से किया जा रहा है
किसान रामचंद्र पाटीदार का कहना है कि आम जनता को नुकसान है, किसानों को बीज नहीं मिल रहा तो पैदावार कम होगी. तेल 170 मिल रहा है वो 250 मिलेगा इसलिये किसानों की जो कमी है वो भरपूर मिलना चाहिये.किसान कांग्रेस मध्य प्रदेश के अध्यक्ष केदार सिरोही का कहना है कि पूरे भारत में तेल का कंजप्शन 23-24 मिलियन मिट्रिक टन है, उत्पादन 9 मिलियन मिट्रिक टन है. 15 मिलियन विदेश से मंगाते हैं, केन्द्र तिलहन का उत्पादन बढ़ाने की योजना चलाता है, मप्र की पहचान सोया प्रदेश से था उसको खत्म करके क्या बताना चाहते हैं मुझे हैरानी है.
सवाल तो हैं अगर बीज की गुणवत्ता कम हो रही है, तो सरकार बेहतर गुणवत्ता वाले बीज क्यों नहीं विकसित कर सकती है जबकि उसके पास कई कृषि विश्वविद्यालय और बीज अनुसंधान संस्थान हैं. कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि जेनेटिक प्योरिटी की दलील देकर सोयाबीन में जीएम बीज की एंट्री के लिये जमीन तैयार हो रही है.
केदार सिरोही का कहना है कि सरकार को किसानों के लिये उपलब्ध कराना चाहिये मुझे शंका है सरकार जीएम लॉबी के साथ मिल गई, जहां प्रति हैक्टेयर 25-30 क्विंटल होना चाहिये, आज 5-7 क्विंटल होना चाहिये ये कहेंगे जीएम सीड लाते हैं. बता दें कि चालू खरीफ सीजन में सरकार ने 63 लाख 74 हजार हैक्टेयर में सोयाबीन बोने का लक्ष्य रखा है. लेकिन राज्य में बीज प्रतिस्थापन दर लगभग 32 फ़ीसदी है. इसके मुताबिक लगभग 20 लाख हेक्टेयर में किसानों को बीज बदलने की जरूरत होगी यानी लगभग 16 लाख क्विंटल बीज की जरूरत, ये आएगा कहां से ये बड़ा सवाल है.
इस बीच केंद्र सरकार ने साल 2021-22 के खरीफ विपणन सत्र के लिये सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 3,950 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जो पिछले सत्र के मुकाबले 70 रुपये प्रति क्विंटल अधिक है. लेकिन इस वृद्धि पर मत जाएं सोयाबीन का गणित हम समझाते हैं. अगर बीज मिल गये तो एक हैक्टयर में लगभग 5000 का बीज 500-700 का यूरिया, कल्टीवेटर 1500, कीटनाशक 1500, मज़दूरी 1000, हार्वेस्टिंग 1200-1500. यानी कुल खर्चा लगभग 10,500 का होगा.
मप्र में बीज की कमी खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है, इसलिये सरकार किसानों से दूसरे खरीफ फसलों का रकबा बढ़ाने के लिए कह रही है, मतलब रातों रात कबड्डी के खिलाड़ी को फुटबॉल फील्ड पर भेजने की कोशिश ऐसे में नतीजा क्या होगा समझना मुश्किल नहीं है. खाने के तेल की कीमतें और बढ़ेंगी और शायद जीएम सीड की लॉबी को न्योता मिल जाए.
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