पक्की दीवारों के बीच तिरपाल ताने आगर-मालवा के अर्जुन नगर में रहते हैं पूरा लाल. पक्की दीवारें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत साल भर मिली पहली किश्त से बन गईं, दूसरी किश्त अटकी है. बैंड बजाते थे, कोरोना में बेरोजगार हैं. बरसात में ये बांस और प्लास्टिक इन दीवारों को जैसे चिढ़ा रहे हैं, पूरा लाल का घर अधूरा है. "1 लाख मिले थे उससे बाहर भी पूरी दीवार नहीं बन पाई, कर्जा लेकर बनाया, किश्त का ठिकाना नहीं है.. हम दफ्तर जा जाकर परेशान हैं, कोई सुनता ही नहीं. उनकी पत्नी दुर्गा बाई कहती हैं, दूसरी किश्त का इंतजार है मिल जाए तो छत डले, बिस्तर गीले हो जाते हैं छोटे बच्चे हैं लेकर कहां जाएं." मध्यप्रदेश में जिस समस्या से पूरा लाल जूझ रहे हैं.. उस समस्या के मारे अनगिनत हैं. आइये आपको इस रिपोर्ट के जरिये बताते हैं प्रधानमंत्री आवास योजना से लोगों को सपनों का घर मिला है, या उनके सपने चकनाचूर हो गए हैं...
लक्ष्मणपुरा में अमीन शेख का भी घर अधूरा है. बरसात में गृहस्थी का सारा सामान भीग गया, पड़ोसी ने आसरा दिया. गीले चूल्हे में कहीं उज्जवला योजना की हकीकत भी दिख जाएगी. कोरोना में मजदूरी मिली तो चूल्हा जल जाता है, नहीं तो रोटी के लिये भी दूसरों के आसरे हैं. उनकी पत्नी शकीला ने घर की बदहाली दिखाते हुए कहा कि दीवार गिर गई थी, कर्ज लेकर बनाया था. आंगन में पानी भरा है... ये पूरा खुला है...पैसा मिल नहीं रहा, काम बंद करवा दिया.
बालू भी इसी समस्या के मारे हैं. बरसात में खुद भीगने से बच पाएं या नहीं, भगवान की तस्वीर बचाने की जुगत में हैं, 13 लोगों के परिवार को पालने में शायद यहां भी उज्जवला का चूल्हा काम नहीं आया. कोरोना में मजदूरी मिल नहीं रही, बीजेपी की सरकार छत दिलवा पाये या नहीं, पोस्टर-बैनर छत की जुगत के काम आ रहे हैं. उनके बेटे शंकर लाल ने कहा कि एक किश्त आई, फिर किश्त नहीं आई, पूरा घर खुला पड़ा है. नगरपालिका में जाकर थक गये किश्त नहीं आई है.
रशीदा बी बेवा हैं, 3 बच्चों की जिम्मेदारी कोरोना में काम नहीं, छत के जगह टीन लगाया है. सगुन बाई की भी यही तकलीफ है.
शहर में नगरपालिका परिषद ने योजना के तहत दूसरी डीपीआर तैयार की जिसमें 1500 से अधिक लोगों का चयन हुआ, 732 हितग्राहियों को पहली किश्त के 1 लाख मिल गये, दूसरी का इंतजार है, अधिकारी बजट के लिये रो रहे हैं. आगर मालवा में सीएमओ बने सिंह सोलंकी कहते हैं, 7 माह पहले 7 करोड़ 29 लाख आये थे, 732 लोगों को दे चुका हूं, वीसी हुई थी आयुक्त महोदय से निवेदन किया था उन्होंने कहा था 8 दिन के अंदर आ जाएंगे संभावना आ जाए जैसे ही पैसे आएंगे, भुगतान कर दिया जाएगा.
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण ओवरऑल रैंकिंग में मध्यप्रदेश 79.6 अंकों के साथ चौथे नंबर पर है. इस सूची में यूपी, राजस्थान और झारखंड भी मध्यप्रदेश से बेहतर हैं. मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री आवास ग्रामीण के तहत कुल लक्ष्य 32,27,131 घरों का है, स्वीकृति मिली है 26,26,943 यानी 81.4% को. अभी तक निर्माण हुआ है 19,37,812 यानी 60.05% घरों का. वहीं प्रधानमंत्री आवास शहरी में कुल स्वीकृति है 8,53,075 घरों की. निर्माण हुआ है 4,51,334 यानी 52.9% घरों का. कुल मिलाकर ग्रामीण-शहरी दोनों इलाकों में निर्माण आधे से थोड़ा ज्यादा है. ऐसे में क्या 2022 तक सबको पक्के मकान का ख्वाब हकीकत में बदल पाएगा.