नाम में "सियासत" रखी है, मध्यप्रदेश में नाम की सियासत

जनजातीय गौरव दिवस से सियासत के केंद्र में आए आदिवासी समुदाय को अपने पाले में करने की खींचतान का दौर शुरू हो चुका है. स्वतंत्रता संग्राम के जननायक बिरसा मुंडा की जन्मतिथि मनाने के बाद अब चर्चा में टंट्या मामा का बलिदान दिवस है.

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चार सरकारी प्रतिष्ठानों का नाम टंट्या मामा के नाम पर रखने का ऐलान.
भोपाल:

मध्यप्रदेश में भगवान बिरसा मुंड के जन्मदिन जनजातीय गौरव दिवस से आदिवासी समुदाय को अपने पाले में करने की कवायद शुरू हो गई है. भगवान बिरसा मुंडा की जन्मतिथि मनाने के बाद अब चर्चा में टंट्या मामा का बलिदान दिवस है. इसके अलावा टंट्या भील की जयंती पर यात्रा निकालने का कार्यक्रम है जिसे कांग्रेस आदिवासी युवाओं को ग़ुमराह करने का काम बता रही है, सरकार और भी कई ऐलान कर रही है. जनजातीय गौरव दिवस के समापन समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंडला में कहा, "प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मोहनपुर का नाम जननायक टंट्या भील के नाम पर रखा जाएगा, पातालपानी में जो टंट्या मामा का मंदिर है उसका भी जीर्णोद्धार पर किया जाएगा. इंदौर शहर में भवर कुआं चौराहे का नाम परिवर्तित करके जननायक टंट्या भील चौराहा के नाम से किया जाएगा, इंदौर में एमआर 10 पर लगभग 53 करोड़ की लागत से जो बस स्टैंड बन रहा है उसका नाम भी टंट्या मामा बस स्टैंड किया जाएगा. जिस तरह हमने भोपाल रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर रानी कमलापति रखा है. वैसे ही, पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम, जननायक टंट्या मामा के नाम पर किया जाएगा."

आपको लग रहा है होगा नाम में क्या रखा है, एक टंट्या मामा के नाम पर अचानक चार सरकारी प्रतिष्ठान, लेकिन जनाब नाम बदलने में सियासत रखी है, क्योंकि मध्यप्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 1.65 करोड़ है, विधानसभा की 230 में 47 सीटें आदिवासियों के लिये आरक्षित हैं, 2008 में बीजेपी ने 29 जीती 2013 में आंकड़ा बढ़ा 31 आदिवासी विधायक जीते. लेकिन 2018 में 47 आरक्षित सीटों में बीजेपी को सिर्फ 16 सीटें मिलीं. इसके अलावा 84 सीटें ऐसी भी हैं, जहां आदिवासी जीत और हार तय करते हैं.

इसलिये आजकल आदिवासी कैमरों के सामने मुख्यमंत्री निवास में खाना भी खा रहे हैं, सेल्फी विद सीएम का भी दौर है, निशाने पर कांग्रेस है. शिवराज ने कहा "कांग्रेस के राज में एक परिवार को पढ़ाया गया, कांग्रेस के राज में एक परिवार के गुलाम थे. अमरकंटक में ट्राइबल यूनिवर्सिटी बनी अरे! ट्राइबल यूनिवर्सिटी का नाम तो ट्राइबल के नाम पर रख देते रे. ट्राइबल यूनिवर्सिटी का नाम भी इंदिराजी के नाम पर रखा. क्या तुम्हें ट्राइबल के नाम से चिढ़ थी, इतने महापुरुष थे हमारे उनके नाम पर कोई नाम नहीं रख सकते थे. इसलिए, मैं आज कहने आया हूं, मैं गोंडवाना के गौरव को वापस स्थापित करूंगा. पूरी दुनिया जानेगी की, गोंडवाना कैसा था."

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कांग्रेस कह रही है ये चुनाव के लिये झुनझुना थमाने की कोशिश है, पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने कहा, "17 साल के बाद अगर इन्हें आदिवासियों की याद आ रही है, क्योंकि 2008-13 में तो इनकी आदिवासियों के बूते सरकार बनी और आज वोट बैंक छिटक गया तो आज जननायक याद आ रहे हैं. मोदी जी आ रहे हैं, अगर विकास करना है तो आदिवासी फंड का इस्तेमाल करें, छठी अनुसूची लागू करें. इस झुनझुने से काम नहीं चलेगा."

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वैसे इन प्रतीकों के अलावा कुछ सच्चाई भी है. 15 को भोपाल आए बड़वानी लिंबी के मीठा राम घर नहीं लौट सके, भोपाल में ही सड़क हादसे में मौत हो गई. परिजन कहते हैं कोई देखने तक नहीं आया. उनके रिश्तेदार बालसिंह कहते हैं, "बीजेपी वाले गांव-गांव फिरे... गाड़ी भेजी... ये लोग मिलकर ले गये... गाड़ी में सुरक्षित लाना ले जाना था... जिम्मेदार व्यक्ति ने जिम्मेदारी नहीं निभाई इसलिये मौत हुई. उस दिन जनप्रतिनिधि, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री वहीं पर कार्यक्रम में थे... तत्काल इलाज होता तो जान भी बच सकती थी. हमें किसी नेता के वहां जाने की खबर नहीं मिली है."

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कार्यक्रम के अगले दिन रीवा के रामबाग में दीपक कुमार कोल ने शिकायत की कि कुछ लोगों ने उन्हें सिर्फ इसलिये पीटा क्योंकि उनकी मोटरसाइकिल में भगवान बिरसा का स्टीकर लगा था. एडिश्नल एसपी शिवकुमार वर्मा ने कहा, "4 लोगों के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध हुआ था विवेचना के दौरान आरोपियों ने फरियादी को फोन करके महापुरुषों के बारे में अपशब्द बोले हैं. 3 लोगों को अभिरक्षा में लिया गया है चौथे की तलाश है."

इन सबके बीच, एनसीआरबी के आंकड़े टीस को और बढ़ाते हैं जिसके मुताबिक मध्यप्रदेश में 2020 में आदिवासियों के प्रति अत्याचार के 2,401 मामले दर्ज हुए. 2019 में ये आंकड़ा 1,922 था, 2018 में 1,868. यानी 2 सालों में 28 फीसदी ज्यादा. इन सबके बीच आदिवासियों को आवासीय भू-अधिकार पत्र, राशन आपके गाँव, महुए को हेरिटेज शराब का दर्जा, छोटे मुकदमे वापस लेने, साहूकारों से अधिक ब्याज दर पर दिये गये ऋण समाप्त होने जैसे कई ऐलान हुए हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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