मध्य प्रदेश सरकार ने एक और रेलवे स्टेशन का नाम बदलने की घोषणा की है. खुद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को इसका ऐलान किया. शिवराज सिंह ने कहा कि इंदौर के पातलपानी रेलवे स्टेशन (Patalpani railway station) का नाम बदलकर टंट्या मामा रेलवे स्टेशन रखा जाएगा. इससे पहले भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम भी बदला गया था. हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलाकर गोंड रानी कमलापति के नाम पर किया गया था. इसको लेकर काफी विवाद भी उठा था, हालांकि नाम बदलने को लेकर केंद्र से तुरंत ही मंजूरी दे दी गई थी.
हबीबगंज के नवनिर्मित रेलवे स्टेशन का नाम बदलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसका उद्घाटन किया था. हालांकि सबसे ज्यादा लोगों की उत्सुकता इस बात को लेकर बढ़ गई है कि आखिर टंट्या मामा (Tantya Mama) कौन हैं. जानकारों का कहना है कि टंट्या भील का जन्म खंडवा जिले की पंधाना तहसील में सन 1842 में हुआ था. पिता भाऊ सिंह ने टंट्या (Tantya Mama Railway Station) को लाठी और व तीर-कमान चलाने का हुनर सिखाया. टंट्या ने धनुष बाण के साथ लाठी चलाने और गोफन कला में इतनी निपुणता हासिल कर ली कि उनकी चर्चा होने लगी.
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इसी बीच ऐसी घटना हुई कि उनकी जिंदगी बदल गई. टंट्या ने अंग्रेजों के चाटुकार सूदखोरों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और घर-बार छोड़कर जंगल में छिपकर रहने लगे. कम वक्त में ही टंट्या मामा की दहशत अंग्रेजों में इस कदर बस गई कि वो उनका नाम सुनकर ही कांपने लगते थे. एमपी के झाबुआ और आसपास के जनजातीय इलाकों में टंट्या मामा ने कई जगह ब्रिटिश खजाने को लूटा. इस धन को वो गरीब लोगों के बीच बांट देते थे.
इस लिहाज से उन्हें रॉबिनहुड कहते थे. टंट्या मामा को धोखे से उन्हें अंग्रेजों ने पकडवा लिया. उसे 1888-89 में राजद्रोह के आरोप में सजा दी गई. लेकिन जब टंट्या मामा को गिरफ्तार कर अदालत में पेश करने को जबलपुर ले जाया जा रहा था तो उसके समर्थन में जगह-जगह हुजूम उमड़ पड़ा था.
पीएम मोदी ने भी आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिले के भाबरा (चंद्रशेखर आजाद नगर) कस्बे के दौरे में टंट्या मामा भील को का उल्लेख किया था और उन्हें देश की आजादी के नायकों में से एक बताया था.