पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस और फिरोजाबाद के देहात क्षेत्र की दलित बस्तियों में रहने वाले लोग चाहते हैं कि उन्हें बुनियादी सुविधाएं और सम्मान मिले ताकि उनकी स्थिति भी बेहतर हो सके.पीटीआई-भाषा' की संवाददाता ने कई गांवों का दौरा किया और पाया कि यहां दलितों के लिए अलग बस्ती हैं, जिनमें घरों की हालत बेहद खराब है और सफाई व्यवस्था भी पुख्ता नहीं है.हाथरस के पीलखाना की दलित बस्ती का हाल भी कुछ ऐसा ही हैं, यहां नालियों की दुर्गंध से घिरे मकान जर्जर हालत में हैं.
तथाकथित उच्च जाति के लोगों के घरों में साफ-सफाई का काम करने वाली आरती देवी सरकार के ‘स्वच्छ भारत अभियान' का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हमारे घरों को गंदगी और सीवर के पानी ने निगल लिया है. हम दूसरों के घरों को साफ करते हैं, लेकिन हमारा अपना जीवन गंदगी में घिरा हुआ है. यहां स्वच्छता कहां है?''
वह चार घरों में काम करके हर माह केवल तीन हजार रुपये ही कमा पाती हैं और अपने परिवार में अकेली कमाने वाली हैं.
उनके लिए, कम से कम ये चुनाव अपने संघर्षों के बारे में खुलकर बोलने और कुछ ताकत हासिल करने का अवसर है.
उन्होंने कहा, ‘‘कम से कम पार्टी कार्यकर्ता आते हैं और हमारे राज्य की हालत को देखते हैं. कई बार चुनाव से ठीक पहले समस्याओं को हल भी किया जाता है, इसलिए हमें विधानसभा और लोकसभा चुनाव का इंतजार रहता है.''
हाथरस के अकराबाद की पुष्पा का कहना है कि सामाजिक बाधाओं के कारण वे गरीबी के च्रक में ही फंस कर रह गए हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘हम मुश्किल से अपने बच्चों का पेट भरने लायक ही कमा पाते हैं लेकिन इसके बावजूद हम पति के कहे अनुसार वोट देते हैं. निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित होने के बावजूद भी हम सुविधाओं से वंचित हैं.''
गांवों में प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी सरकारी योजनाओं का वादा कई लोगों के लिए अब भी अधूरा है. आधे-अधूरे घर अगली किस्त के इंतजार में अधूरी उम्मीदों के प्रतीत बनकर रह गए हैं.
हाथरस के जाफराबाद की माया का कहना है, ‘‘हमें खोखले वादे नहीं चाहिए. हमें ऐसे नेताओं की जरूरत है जो हमारी स्थिति को देखे और हमारे संघर्षों को समझे.''
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)