बीजेपी ने पहले महाराष्ट्र की शिवसेना में फूट का फायदा उठाया. फिर NCP के अजित पवार को सेट किया और शिंदे-फडणवीस की गठबंधन सरकार बन गई. अब बिहार में नीतीश कुमार को वापसी के लिए ऑफर मिला है. दोनों ही मामलों से INDIA अलायंस को बड़े झटके लगे हैं. ऐसे में सवाल है कि बीजेपी का फोकस महाराष्ट्र और बिहार में ही क्यों है?
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बीजेपी लोकसभा चुनाव को लेकर किसी तरह की कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. बीजेपी उन राज्यों पर सबसे ज्यादा फोकस कर रही है, जहां उसे विपक्षी खेमे से चुनौती मिल सकती है. बिहार और महाराष्ट्र इस लिस्ट में सबसे आगे हैं.
उत्तर भारत के कई राज्यों में बीजेपी का सैचुरेशन
दरअसल, बीजेपी को मालूम है कि 2024 के लोकसभा चुनावे के लिए दक्षिण भारत से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती है. उत्तर भारत के कई राज्यों में वह सैचुरेशन पॉइंट या उसके आसपास है. गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के आंकड़ें इसके गवाह हैं. लेकिन अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखने के लिए पार्टी को महाराष्ट्र और बिहार के लिए नई रणनीति अपनानी पड़ेगी.
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में पहले शिवसेना और बीजेपी गठबंधन में थी. दोनों ने साथ मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था. राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 42 सीटें बीजेपी-शिवसेना गठबंधन जीतने में सफल रही थी, लेकिन जिस तरह विपक्षी के तीनों दल एक साथ खड़े थे, उसके लिए सीटें कम होने का खतरा था. फिर अक्टूबर 2019 को विधानसभा के चुनाव हुए. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला. लेकिन सीएम पद को लेकर अनबन हो गई. ऐसे में शिवसेना को गठबंधन तोड़कर कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी. उद्धव ठाकरे सीएम बने.
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लेकिन, लोकसभा की अपनी टैली को बरकार रखने के लिए बीजेपी ने पहले शिवसेना और बाद में एनसीपी में सेंध लगाई. बीजेपी दूसरे प्रयास में कामयाब भी हो गई. आज के दिन हालात ये है कि महाराष्ट्र में बीजेपी 2024 के चुनाव के मद्देनजर स्थिति संभाल चुकी है. एकनाथ शिंदे और अजित पवार को साथ लेने के बाद बीजेपी का राजनीतिक कुनबा महाराष्ट्र में सबसे बड़ा हो गया है.
बिहार
2019 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की तर्ज पर बिहार में भी बीजेपी ने जेडीयू और एलजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी. राज्य की 40 लोकसभा सीटों में 39 सीटें तीनों दल जीतने में सफल रहे थे. विपक्ष का पूरी तरह से सफाया कर दिया था और विपक्षी खेमे से कांग्रेस ही महज एक सीट जीत सकी थी. लेकिन, जब नीतीश कुमार ने लालू का हाथ थामा, तो लोकसभा के समीकरण भी बिगड़ने लगे. बीजेपी के लिए बिहार में चुनौती बढ़ गई थी और सीटें कम होने का खतरा मंडरा रहा था. ऐसे में बीजेपी ने महागठबंधन में शामिल जीतनराम मांझी को अपने साथ मिला लिया. इसके बाद भी बीजेपी बिहार में 2019 की तरह समीकरण मजबूत नहीं बना पाई है.
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क्या है बीजेपी की रणनीति?
बीजेपी इस बात को जानती है कि मांझी और चिराग पासवान के दम पर बिहार की चुनावी बाजी नहीं जीती जा सकती है. इसके लिए नीतीश कुमार भी चाहिए. शायद यही वजह हो सकती है कि बीजेपी नीतीश कुमार के 'लगातार पाला बदलने' की आदत के बावजूद अपने साथ लेने में पॉजिटिव अप्रोच दिखा रही है. महाराष्ट्र और बिहार दोनों को मिलाकर 88 लोकसभा सीटें होती हैं. ऐसे में इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करने पर आंकड़े बीजेपी के पक्ष में जा सकते हैं.
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के चीफ जीतन राम मांझी इन दिनों नीतीश कुमार से नाराज चल रहे हैं. ऐसे में मांझी को मनाने के लिए बीजेपी उन्हें भी डिप्टी सीएम बना सकती है. जैसे महाराष्ट्र में अजित पवार को डिप्टी सीएम बनाया गया था. बिहार की मौजूदा सियासत में जीतन राम मांझी इसलिए अहम हो गए हैं कि उनके 4 विधायक हैं, जो कभी भी गेम बदल सकते हैं. लालू यादव भी इन 4 विधायकों को साधने की कोशिश में हैं. ऐसे में अगर मांझी ने लालू का साथ दिया, तो आरजेडी को बहुमत हासिल करने लिए 2-3 विधायकों की जरूरत पड़ेगी. ऐसा हुआ तो नीतीश कुमार को वापस लाने की बीजेपी की कोशिशें फेल हो सकती हैं. बीजेपी बेशक ऐसा कभी नहीं चाहेगी.
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