Explainer : अकाली दल ने BJP को क्यों किया साथ लोकसभा चुनाव लड़ने से मना? कैसे पड़ी 24 साल की दोस्ती में दरार

अकाली दल की तरफ से कहा गया है कि पार्टी सिद्धांतों की राजनीति करती रही है. हम किसी भी हालत में विचारधारा से समझौता नहीं कर सकते हैं. 

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चंडीगढ़:

पंजाब में भाजपा और अकाली दल (Akali Dal) के बीच लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के लिए गठबंधन की बातचीत टूट गयी है. दोनों दल मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे. अकाली दल लंबे समय तक एनडीए (NDA) में शामिल रही थी. साल 2019- 2020 में केंद्र सरकार की तरफ से लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ अकाली दल ने अपने आप को एनडीए से अलग कर लिया था. बीजेपी ने पंजाब की सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. 

अकाली दल ने क्यों नहीं किया गठबंधन?
बीजेपी के साथ चुनावी गठबंधन नहीं होने को लेकर अकाली दल की तरफ से कहा गया है कि दोनों ही दलों की विचारधाराओं में अंतर के कारण गठबंधन संभव नहीं है. साथ ही पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनाव में भी अकेले दम पर उतरने के संकेत दिए हैं. सूत्रों का मानना है कि अकाली दल 2024 के लोकसभा चुनाव में अकेले दम पर लड़कर अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है.

जानकारों का मानना है कि क्षेत्रीय पहचान और एक क्षेत्रीय सामाजिक-सांस्कृतिक आधार पर राजनीति करने वाली अकाली दल की विचारधारा भाजपा की राष्ट्रवादी राजनीतिक सोच से मेल नहीं खाती है. दोनों ही दलों के बीच गठबंधन नहीं होने के पीछे सबसे अहम कारक यही है. 

बीजेपी को लेकर अकाली दल में क्यों नहीं बनी सहमति?
सूत्रों ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर असहमति के अलावा, अकाली नेतृत्व भाजपा की 'क्षेत्रीय ताकतों को नष्ट करने वाली' छवि को लेकर भी आशंकित रही है.  कई अकाली नेताओं का मानना ​रहा है कि भाजपा पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए 400 सीटों के अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उनकी पार्टी और उसके वोट आधार का सहारा लेना चाहती है. अकाली को डर यह भी था कि अगर लोकसभा की कवायद सफल रही तो भाजपा 2027 के चुनाव के लिए अधिक सीटों की मांग करेगी. 

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अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने क्या कहा?
अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने कहा है कि उनकी पार्टी के लिए नंबर गेम कभी मायने नहीं रहा है. पिछले लगभग 103 सालों से अकाली दल ने पंजाब की तरक्की और विकास के लिए काम किया है. हम उसूलों पर चलने वाले लोग हैं. हमारे लिए हमारा विचारधारा सबसे पहले है. कोई भी राष्ट्रीय पार्टी पंजाब के हित में काम नहीं करती है. किसानों के मुद्दे पर हमारी पार्टी आवाज उठाती रहेगी.

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अकाली दल ने बिना शर्त दिया था समर्थन
अकाली दल की तरफ से पिछले सप्ताह लाए गए प्रस्ताव में कहा गया कि अकाली दल और बीजेपी के बीच साल 1996 से लगभग 24 साल तक गठबंधन जारी रहा था. साल 1996 में सिख हिंदू एकता के नाम पर अकाली दल ने बिन शर्त बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान किया था. साल 2020 में किसान आंदोलन के दौरान दोनों ही दलों के रिश्ते खराब हो गए और गठबंधन में टूट हो गयी. 

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अकाली दल की तरफ से पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि वह "सिद्धांतों को राजनीति से ऊपर रखना जारी रखेगी... और सभी पंजाबियों के चैंपियन के रूप में अपनी ऐतिहासिक भूमिका से कभी पीछे नहीं हटेगी".  "सिखों और सभी पंजाबियों के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में, पार्टी राज्यों को अधिक शक्तियों और वास्तविक स्वायत्तता के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेगी,"

पंजाब में अकाली बनाम बीजेपी बनाम आप बनाम कांग्रेस
अकालियों के अकेले चुनाव लड़ने का मतलब है कि पंजाब की 13 सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला होगा, जिसमें कांग्रेस और सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी भी मैदान में हैं. कांग्रेस और आप दोनों दलों के बीच आपसी सहमति से सभी सीटों पर दोस्ताना मुकाबला हो रहा है. वहीं बीजेपी ने भी सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया है. अकाली दल भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. ऐसे में पंजाब में सभी सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला होने की संभावना है. 

पिछले लोकसभा चुनाव में क्या रहा था परिणाम? 
2019 में, तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री (और पूर्व कांग्रेसी) अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने राज्य की 13 सीटों में से आठ पर जीत दर्ज की थी.  भाजपा और अकाली ने दो-दो सीटें जीतीं थी. आम आदमी पार्टी को एक सीट पर जीत मिली थी. इस चुनाव में  अकाली दल को 27 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. जबकि बीजेपी को 10 फीसदी से भी कम वोट मिले थे. दोनों ही दलों के वोट परसेंट में बड़ा अतंर रहा था.  

बीजेपी की हालत पंजाब में हमेशा से कमजोर रही है. ऐसे में पार्टी की तरफ से अकाली दल को अपने पाले में करने की कवायद लोकसभा चुनाव से पहले की गयी थी. 

पिछले विधानसभा चुनाव में दोनों दलों को मिली करारी हार
पिछले विधानसभा चुनाव में 5 चुनावों के बाद पहली बार दोनों ही दल पहली बार अलग-अलग मैदान में उतरे थे.  इससे पहले के चुनाव में अकाली दल 94 और बीजेपी 23 सीटों पर चुनाव लड़ती रही थी. पिछले चुनाव में अकाली दल ने बसपा के साथ समझौता कर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में अकाली दल को करारी हार का सामना करना पड़ा था. अकाली दल को इस चुनाव में मात्र तीन सीटों पर ही जीत मिली थी. बीजेपी को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी को महज 2 सीटों पर जीत मिली थी. 

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