NDTV बैटलग्राउंड : महाराष्ट्र में क्यों आ सकते हैं लोकसभा चुनाव के चौंकाने वाले नतीजे? एक्सपर्ट की राय

सीनियर जर्नलिस्ट रोहित चंदावरकर कहते हैं, "महाराष्ट्र में अभी जितनी अनिश्चिचता है, उतनी इससे पहले के चुनावों में कभी नहीं देखी गई. महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में कहीं जाति फैक्टर चल रहा है. शहरी इलाकों में विकास का मुद्दा चल रहा है. इससे ऐसा पता ही नहीं चलता है कि विकास का मुद्दा ज्यादा असर करेगा या जाति का मुद्दा ज्यादा कारगर साबित होगा."

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मुंबई:

इस बार के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के लिए 400 पार सीटें और अकेले भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए 370 सीटों का लक्ष्य रखा है. दूसरी ओर बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिए विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) भी रणनीति बनाने में जुटा है. हालांकि, चुनाव से पहले ही पीएम मोदी का तीसरा कार्यकाल तय माना जा रहा है. क्योंकि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को छोड़कर विपक्ष से टक्कर देने वाला फिलहाल कोई नहीं है. वहीं, दूसरी ओर महाराष्ट्र में चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं.

NDTV के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया के खास शो 'Battleground' में रोहित चंदावरकर (सीनियर जर्नलिस्ट) कहते हैं, "बेशक लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र एक निर्णायक राज्य की भूमिका में रहेगा. यूपी की 80 सीटों के बाद महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें (48) हैं. इस बार पूरे लोकसभा चुनाव के नतीजों की भविष्यवाणी की जा सकती है. लेकिन महाराष्ट्र में क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. महाराष्ट्र में अभी जितनी अनिश्चिचता है, उतनी इससे पहले के चुनावों में कभी नहीं देखी गई. महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में कहीं जाति फैक्टर चल रहा है. शहरी इलाकों में विकास का मुद्दा चल रहा है. इससे ऐसा पता ही नहीं चलता है कि विकास का मुद्दा ज्यादा असर करेगा या जाति का मुद्दा ज्यादा कारगर साबित होगा."

रोहित चंदावरकर कहते हैं, "महाराष्ट्र में तीन कारणों की वजह से डन डील नहीं हो सकती. CSDS के सर्वे के मुताबिक, वोटर्स आखिरी दिन तक फैसला नहीं कर पाते कि किसे वोट देंगे." वहीं, पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं, "महाराष्ट्र में सहयोगी दलों के पास अल्पसंख्यक वोटों का एक अच्छा हिस्सा है. क्या यह वोट बीजेपी या शिवसेना या उद्धव ठाकरे के गुट को ट्रांसफर होगा, ये सभी जटिलताएं महाराष्ट्र में हैं. इसमें मोदी फैक्टर भी काम करेगा."

महाराष्ट्र में महंगाई और बेरोजगारी बड़े मुद्दे नहीं
सीनियर जर्नलिस्ट रोहित चंदावरकर कहते हैं, "महाराष्ट्र पहले से ही उद्योग के लिहाज से एक विकसित राज्य है. इसलिए नौकरियां यहां कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. बेरोजगारी यूपी में एक मुद्दा हो सकता है, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा नहीं है. यहां महंगाई भी कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. लेकिन जाति यहां एक बड़ा कारक है. विपक्ष दल किसानों के मुद्दों को भी चुनावी मुद्दा बना सकते हैं."

इलेक्शन कैंपेन के तरीके से भी बदलेंगी चीजें
'बैटलग्राउंड' के पैनलिस्टों में शामिल इलेक्शन एनालिस्ट और शिक्षाविद् संदीप शास्त्री ने कहा, "अगर महाराष्ट्र में इलेक्शन कैंपेन बीजेपी पर केंद्रित है, तो यह कुछ चीजें बदल सकती हैं. अगर MVA (महाविकास अघाड़ी) का कैंपेन उद्धव ठाकरे या शरद पवार पर होगा, तो यह भी एक निर्णायक कारक साबित होगा".

महाराष्ट्र में मोदी फैक्टर का भी दिखेगा असर
पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट और कमेंटेटर अमिताभ तिवारी कहते हैं, "मोदी फैक्टर महाराष्ट्र में एक बड़ा फैक्टर हो सकता है. ये एकमात्र कारक हो सकता है, जो MVA और NDA को अलग रख सकता है. 2019 में तीन में से एक मतदाता ने मोदी फैक्टर पर वोट दिया. इस साल INDIA अलायांस और NDA के बीच अंतर सिर्फ यही फैक्टर हो सकता है."

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2019 के बाद बीजेपी की रणनीति में आया बड़ा बदलाव
वहीं, संदीप शास्त्री ने कहा ने, "2019 के बाद बीजेपी की रणनीति में एक बड़ा बदलाव हुआ है. पीएम मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने मोदी की गारंटी पर फोकस किया है. इस बार मोदी फैक्टर पर वोट बढ़ सकते हैं."

राहुल गांधी की छवि में आया सुधार
सामाजिक वैज्ञानिक डॉ. मनीषा प्रियम ने कहा, "राहुल गांधी की छवि में सुधार हो रहा है, लेकिन नेतृत्व के मामले में प्रधानमंत्री मोदी उनसे मीलों आगे हैं."

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वोटिंग एक इमोशनल फैसला
पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं, "वोटिंग एक इमोशनल फैसला होता है. ये रैशनल या तर्कसंगत फैसला नहीं है. भारत में कई देर से निर्णय लेने वाले वोटर हैं. ये आखिरी समय तक तय नहीं कर पाते कि किसे वोट देंगे. 25 प्रतिशत वोटर उम्मीदवारों के नाम पर वोट करते हैं. 69 प्रतिशत वोटर तय नहीं कर पाते कि किसे वोट देंगे. यही कारण है कि महाराष्ट्र में चुनाव के नतीजे अप्रत्याशित होने वाला है.'' 

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