INDIA अलायंस पर 'ममता' दिखाने से क्यों बच रहीं ममता बनर्जी? आखिर क्या है उनका प्लान?

ममता बनर्जी ने खुद को INDIA अलायंस से बाहर बताया है. अगर केंद्र में गठबंधन की सरकार बनती है, तो उसे बाहर से समर्थन देने की बात कही है. इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. शायद ममता खुद दुविधा में हैं, वो ये तय नहीं कर पा रही कि क्या करना है.

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ममता बनर्जी की पार्टी TMC बंगाल में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ रही है.
कोलकाता:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के लिए पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे फेज की वोटिंग हो चुकी है. इसबार का चुनाव NDA और INDIA अलायंस के बीच लड़ा जा रहा है. पीएम मोदी (PM Narendra Modi) और बीजेपी का मुकाबला करने के लिए इस बार कांग्रेस समेत 30 से ज्यादा छोटे-बड़े विपक्षी दल एक साथ एक मंच पर आए. उनके गठबंधन को INDIA नाम दिया गया. विपक्षी गठबंधन का नाम INDIA रखने का सुझाव असल में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने ही दिया था. हालांकि, कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग को लेकर बात नहीं बनने पर ममता ने बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया. ममता ने चुनाव में 'एकला चलो' का फैसला तो किया, लेकिन गठबंधन के साथ बने रहने की बात भी की. अब वो INDIA गठबंधन को बाहर से समर्थन देने की बात कर रही हैं. आइए समझते हैं कि आखिर ममता को 4 फेज के चुनाव के बाद ये बयान देने की जरूरत क्यों पड़ी? आखिर उनका क्या प्लान है?      

ममता बनर्जी ने क्या कहा?
पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने बुधवार को एक रैली में INDIA अलायंस को लेकर बयान दिया. उन्होंने कहा, "केंद्र में अगर INDIA गठबंधन की सरकार बनी, तो हम बाहर से समर्थन करेंगे. मैं दिल्ली में सरकार बनाने में पूरी मदद करूंगी, ताकि हमारी मां-बेटियों को दिक्कत न हो."

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ममता ने यह भी साफ किया कि उनका ये समर्थन बंगाल कांग्रेस के लिए नहीं, बल्कि दिल्ली में बनने वाली गठबंधन की सरकार को रहेगा. उन्होंने कहा, "लेफ्ट-कांग्रेस पर विचार ना करें, बंगाल में ये हमारे साथ नहीं हैं. ये बीजेपी के साथ हैं."  

ममता बनर्जी के बयान के क्या हैं सियासी मायने?
ममता बनर्जी ने खुद को INDIA अलायंस से बाहर बताया है. अगर केंद्र में गठबंधन की सरकार बनती है, तो उसे बाहर से समर्थन देने की बात कही है. इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. शायद ममता खुद दुविधा में हैं, वो ये तय नहीं कर पा रही कि क्या करना है. इसकी दो वजह हो सकती हैं. पहला- गठबंधन में कांग्रेस और लेफ्ट का साथ होना. ममता बनर्जी ये अच्छे से समझ रही हैं कि बंगाल में अगर कांग्रेस-लेफ्ट मिलकर लड़ेंगे, तो नुकसान टीएमसी को ही होगा. क्योंकि ममता बनर्जी की राजनीति ही कांग्रेस और लेफ्ट के विरोध से शुरू हुई थी. दूसरी वजह- एंटी बीजेपी वोट बैंक है. INDIA गठबंधन में रहते हुए भी ममता इसलिए ऐसे बयान दे रही हैं. उनका मकसद असल में वोटर्स तक मैसेज भेजना है अगर बंगाल में बीजेपी को आने से रोकना है, तो टीमएसी को ही चुनना होगा.

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INDIA गठबंधन की क्या है दुविधा?
INDIA में शामिल 28 पार्टियों में TMC, CPI, CPI (M) और कांग्रेस शामिल हैं. पश्चिम बंगाल में BJP के खिलाफ TMC, CPI, CPI (M) और कांग्रेस एकजुट हैं, लेकिन इनके बीच सीट शेयरिंग को लेकर मामला नहीं बना. ममता बनर्जी की दुविधा एक स्तर पर INDIA गठबंधन की दुविधा का हिस्सा भी है. वहां जो लोग एक जगह साथ हैं, वहीं दूसरी जगह एक-दूसरे के खिलाफ हैं बीते दो दिन में INDIA गठबंधन के यूपी में दो प्रेस कॉन्फ्रेंस हुए. एक में मल्लिकार्जुन खरगे और अखिलेश यादव थे. दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव साथ थे. सवाल ये है कि क्या गठबंधन में शामिल ये तीनों नेता एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर सकते थे? क्या खरगे केजरीवाल के साथ बैठना नहीं चाहते? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनके जवाब खोजे जाने हैं.

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ममता बनर्जी की नीयत पर ही उठ रहे सवाल
इस बीच ममता बनर्जी की नीयत पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं. ममता के बाहर से समर्थन वाले बयान के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी का रिएक्शन भी सामने आया. चौधरी ने कहा, "मुझे ममता बनर्जी पर तो भरोसा नहीं है. वो गठबंधन छोड़कर भागी थीं. अब कांग्रेस सत्ता में आ रही है, इसलिए उन्होंने लाइन लगाना शुरू कर दिया है."

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अधीर रंजन चौधरी यही नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा, "अगर बीजेपी की तरफ पलड़ा भारी रहा, तो वह उस तरफ भी जा सकती हैं. मुझे उनपर कोई भरोसा नहीं है."

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लेफ्ट का साथ ममता को नहीं है गंवारा
ममता बनर्जी के INDIA गठबंधन से दूरी बनाने के पीछे लेफ्ट को भी एक वजह माना जा रहा है. वो कई बार गठबंधन में लेफ्ट की मौजूदगी पर आपत्ति जता चुकी हैं. हाल ही में उन्होंने कहा, "लेफ्ट पार्टियां INDIA के एजेंडे को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही हैं. मैं यह स्वीकार नहीं करूंगी. 

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ममता बनर्जी ने कहा, "मैं उन लोगों से सहमत नहीं हो सकती, जिनके साथ मैंने 34 साल तक संघर्ष किया है. इतने अपमान के बावजूद मैंने INDIA की मीटिंग में हिस्सा लिया. कांग्रेस चाहे तो 300 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ ले. मैं उनकी मदद करूंगी. हम उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेंगे. लेकिन, वो जो खुद चाहते हैं उस पर अड़े हुए हैं."

बंगाल में 2019 के नतीजे भी एक वजह
INDIA अलायंस को बाहर से समर्थन देने वाले ममता बनर्जी की बात को 2019 के लोकसभा चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है. दरअसल, बंगाल की 42 सीटों पर बीजेपी ने 18 सीटों पर जीत हासिल की थी. इन सीटों पर जीत-हार का मामूली अंतर था. बीजेपी इन सीटों के साथ-साथ बंगाल की उन सीटों को भी टारगेट कर रही है, जहां वोटरों में टीएमसी या लेफ्ट को लेकर असंतोष है. लिहाजा टीएमसी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. वो ज्यादा से ज्यादा वोटरों तक पहुंचने की कोशिश में है.

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बंगाल की सत्ता में टीएमसी 13 साल से है. लोकसभा चुनाव में बंगाल में कांग्रेस और CPI(M) भी मैदान में हैं, लेकिन उनका वोट बैंक बहुत ज्यादा नहीं रह गया है. ऐसे में मुकाबला ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच रह गया है. 

मुस्लिम वोटर को साधने की कोशिश
ममता बनर्जी का 'एकला चलो रे' नीति के पीछे मुस्लिम वोट बैंक भी एक फैक्टर है. बंगाल की 13 लोकसभा सीटों बहरामपुर, जंगीपुर, मुर्शिदाबाद, रायगंज, मालदा (साउथ), मालदा (नॉर्थ), बशीरहाट, जादवपुर, बीरभूम, कृष्णनगर, डायमंड हार्बर, जयनगर और मथुरापुर में मुस्लिम वोटर हैं. बीजेपी इन वोट बैंक को भी टारगेट कर रही है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, बंगाल में मुसलमानों का झुकाव ममता बनर्जी वाली पार्टी की ओर है. जबकि लेफ्ट-गठबंधन से वह बहुत ज्यादा प्रभावित नजर नहीं आता. बीजेपी को रोकने के लिए ममता बनर्जी को मुस्लिम वोटर्स का साथ चाहिए. लिहाजा INDIA अलायंस से दूरी बनाना जरूरी है और मजबूरी भी.
 

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