देवीलाल की सियासी जमीन पर कांग्रेस के दो पूर्व प्रदेश अध्यक्षों के बीच जबरदस्त मुकाबला, जानिए सिरसा लोकसभा का पूरा गणित

सिरसा से इनेलो के साथ-साथ कांग्रेस भी चुनाव जीतती रही है. इस बार भाजपा ने सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर यहां से हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके डॉ. अशोक तंवर को चुनाव मैदान में उतारा है.

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देश में छठे चरण में जिन लोकसभा सीटों पर मतदान होना है, उनमें एक चर्चित सीट है सिरसा...पंजाब और राजस्थान की सीमाओं से सटा हरियाणा का ये लोकसभा क्षेत्र इस बार दो पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षों के बीच चुनावी भिड़ंत के लिए सुर्ख़ियों में है. बीजेपी ने पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव हारे डॉ अशोक तंवर को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने अपनी पुरानी नेता कुमारी सैलजा पर भरोसा जताया है. सिरसा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है और ये इलाका डेरा प्रमुखों के लिए भी मशहूर है, जिनका राजनीतिक प्रभुत्व भी माना जाता है.

एक दौर में सिरसा चौधरी देवीलाल की सियासी ज़मीन रही तो ओमप्रकाश चौटाला का भी राजनीतिक गढ़ रहा. लेकिन अब यहां सियासी हालात बदल चुके हैं. 2019 में बीजेपी ने यहां पहली बार जीत दर्ज की. सिरसा से इनेलो के साथ-साथ कांग्रेस भी चुनाव जीतती रही है. इस बार भाजपा ने सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर यहां से हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके डॉ. अशोक तंवर को चुनाव मैदान में उतारा है.

बीजेपी का टिकट पाने से पहले तक तंवर कई घाट का पानी पी चुके हैं. पहले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से नाराजगी के बाद कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में गए. फिर अपना राजनीतिक संगठन बनाया. उसके बाद कुछ समय आम आमी पार्टी का रुख कर लिया और फिर आखिरकार इस चुनाव में भाजपा का झंडा लेकर सिरसा में पीएम मोदी की आवाज बने हैं.

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तंवर को मोदी का, सैलजा को विरासत का भरोसा
सियासी जानकारों का कहना है कि तंवर को सीधे दिल्ली आलाकमान का समर्थन प्राप्त है और एक तरह से उनका चुनाव केंद्रीय नेतृत्व की भी रणनीतिक परीक्षा है. उधर, तंवर के सामने कांग्रेस की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी दलबीर सिंह की बेटी कुमारी सैलजा चुनावी रण में ताल ठोक रही हैं. सैलजा सिरसा से दो बार सांसद रह चुकी हैं. मोटे तौर पर तंवर और सैलजा के बीच जमीन पर सीधी टक्कर है. दोनों हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहने के साथ-साथ अनुसूचित जाति के वोटों में समान पकड़ रखते हैं.

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चौटाला परिवार फूट के चलते हाशिये पर
दूसरे दलों पर नजर डालें तो जेजेपी ने पूर्व विधायक रमेश खटक तो इनेलो ने संदीप लोट को चुनाव मैदान में उतारा है. हालांकि, बीजेपी-कांग्रेस के मुकाबले खटक और लोट ज्यादा जनाधार नहीं है. सिरसा में दिलचस्प बात यह है कि ये क्षेत्र कभी चौटाला परिवार का गढ़ था. लेकिन घर में आपसी फूट के चलते उसका कोई वर्चस्व नहीं रहा है.

कौन-किसके लिए लगा रहा ताकत
स्थानीय सियासी जानकारों की मानें तो तंवर पीएम मोदी के चेहरे और खट्टर सरकार में इलाके में हुए कार्यों को गिना रहे हैं. वहीं, सैलजा की ताकत उनका अपना  और पारिवारिक जनाधार है. हालांकि, कांग्रेस में हिसार के उलट सिरसा में एकजुटता की कमी दिखाई दे रही है. भूपेंद्र हुड्डा जिस तरह हिसार में प्रत्याशी के लिए जान झोंक रहे हैं, वैसी मेहनत उनका खेमा सैलजा के करता नहीं दिख रहा. हालांकि, पूर्व सांसद श्रुति चौधरी, और वरिष्ठ कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला के अलावा पूर्व केंद्रीय मत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह उनके लिए जरूर पसीना बहा रहे हैं.

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जहां ‘डेरा' डलेगा, वो जीतेगा!  
सिरसा डेरों और उनके प्रमुखों के लिए भी खासा मशहूर है. कहा जाता है कि डेरा सच्चा सौदा और डेरा भूमण शाह जिस भी दल का साथ देते हैं, उसका बेड़ा पार हो जाता है. फिलहाल डेरा सच्चा सौदा के पर्दे के पीछे बीजेपी को समर्थन देने की चर्चाएं जोरों पर हैं.

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सिरसा का जातीय गणित और मुद्दे
17 लाख से ज्यादा मतदाताओं वाली सिरसा सीट पर पंजाबी, बागड़ी और जाट मतदाता निर्णायक माने जा रहे हैं. वहीं, मुद्दों को देखें तो बीजेपी मोदी सरकार के कामकाज, आर्थिक प्रगति और राष्ट्र सुरक्षा को मुद्दा बना रही है तो कांग्रेस किसान के साथ अन्याय, अत्याचार, बेरोजगारी पर केंद्र को घेर रही है. किसानों का मुद्दा इस इलाके में काफी गर्माया दिख रहा है. यही वजह है कि चलते बीजेपी के अशोक तंवर पुलिस सुरक्षा में अपनी रैलियां करने लोगों के बीच पहुंच रहे हैं.

मनीष शर्मा की रिपोर्ट...

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