सियासी किस्सा : अखिलेश को मुलायम ने SP से कर दिया था बाहर, 2 दिन बाद ही 'टीपू' ने चाचा संग ऐसे किया 'तख्तापलट'

अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल में लंबे समय से टकराव चल रहा था. अक्टूबर, 2016 में सार्वजनिक मंच पर ही दोनों के बीच तू-तू,मैं-मैं भी हो चुकी थी. मुलायम सिंह यादव ने सपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी अखिलेश से छीनकर शिवपाल को दे दी थी. इसके जवाब में अखिलेश ने शिवपाल को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था.

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इस घटनाक्रम के बाद मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच बातचीत बंद हो गई थी. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

1990 के दौर में उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक शख्स समाजवाद, सामाजिक न्याय और सेक्यूलरिज्म की लड़ाई में अपना अलग मुकाम बनाता और संघर्ष करता दिखता है. कभी वह चौधरी चरण सिंह का खामसखास रहता है तो कभी वीपी सिंह और चंद्रशेखर का. कांशीराम से भी दोस्ती ऐसी कि सत्ता में एकसाथ साझेदारी की. जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर आया तो उसका पुरजोर विरोध किया और राजनीति में विरोधियों ने नया नाम दिया 'मौलाना मुलायम.'

जी हां, करीब तीन दशक तक कई दलों में रहे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने बाबरी विध्वंस के बाद उपजे राजनीतिक गतिरोध के बाद 4 अक्टूबर, 1992 को समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की स्थापना की थी और खुद उसके संस्थापक अध्यक्ष रहे लेकिन 24 साल बाद उनके बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) जब सत्ता के शीर्ष शिखर पर पहुंचे, तब उन्होंने ही पिता के खिलाफ बगावत कर दी और खुद पार्टी के अध्यक्ष बन गए.

जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब 1 जनवरी 2017 को उन्होंने चाचा रामगोपाल यादव के साथ मिलकर लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया. इसी अधिवेशन में अखिलेश ने पार्टी में तख्तापलट करते हुए मुलायम सिंह यादव के राज को खत्म कर दिया और खुद पार्टी के अध्यक्ष बन गए. इसी अधिवेशन में पार्टी ने कुल तीन बड़े प्रस्ताव पारित किए थे. 

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पहला, अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना और मुलायम सिंह यादव को पार्टी का मार्गदर्शक बनाना. दूसरा, शिवपाल सिंह यादव को सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और उनकी जगह अखिलेश ने भाई धर्मेंद्र यादव को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया. तीसरे प्रस्ताव में अमर सिंह को पार्टी से निकाला दे दिया गया.

अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल में लंबे समय से टकराव चल रहा था. इससे पहले अक्टूबर 2016 में सार्वजनिक मंच पर ही दोनों के बीच तू-तू,मैं-मैं भी हो चुकी थी. मुलायम सिंह यादव ने सपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी अखिलेश से छीनकर शिवपाल को दे दी थी. इसके जवाब में अखिलेश ने शिवपाल को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था.

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हालांकि, राज्य के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की लड़ाई मान-मनौव्वल के बाद शांत पड़ गई थी लेकिन टिकट बंटवारे के विवाद में दोबारा झगड़ा ऐसा शुरू हुआ कि मुलायम सिंह यादव ने 30 दिसंबर 2016 को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (बेटे) और पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव (भाई) को समाजवादी पार्टी से निकाला दे दिया. इसके बाद अखिलेश ने तब 212 विधायकों संग शक्ति प्रदर्शन करते हुए गेंद अपने पाले में कर लिया था और 2017 के नए साल के पहले दिन पार्टी में तख्तापलट कर दिया.

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इस तख्तापलट में रामगोपाल यादव ने पार्टी के संविधान को अपना हथियार बनाया था. पार्टी संविधान में यह उल्लेख था कि पार्टी महासचिव भी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुला सकता है. लिहाजा, उन्होंने अधिवेशन बुलाया था. यादव को पता था कि तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव अधिवेशन में नहीं आएंगे, लिहाजा उन्होंने पार्टी उपाध्यक्ष किरणमय नंदा को अधिवेशन में आमंत्रित किया था. रामगोपाल और अखिलेश यादव ने आंकड़ों के खेल पर ये उलटफेर किया था.

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इस तख्तापलट के बाद पार्टी पर वर्चस्व की लड़ाई चुनाव आयोग तक भी पहुंची लेकिन जीत अखिलेश यादव (घरेलू नाम टीपू) की हुई. इस घटनाक्रम के बाद मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच बातचीत बंद हो गई थी.

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