NDA या 'INDIA' : 2014 के बाद से लगातार कमजोर होती BSP के 'एकला चलो' से किसे नफा-किसे नुकसान?

मायावती 4 बार यूपी की सीएम रही हैं.  पार्टी ने 2009 में 27 फीसदी से ज्यादा मत हासिल किए और उसके 20 सांसद लोकसभा में पहुंचे. .वो ना तो 2014 में इस प्रदर्शन को दोहरा पाई और ना ही 2019 में गठबंधन के बाद भी उस आंकड़े तक पहुंच पायी.

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नई दिल्ली:

हिंदी पट्टी के राज्यों में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) ही एक मात्र राज्य है जहां अधिकतर सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. बाकी लगभग सभी राज्यों में इंडिया गठबंधन और एनडीए (NDA) बीच सीधा मुकाबला है. उत्तर प्रदेश में बीएसपी (BSP) ने बिना किसी दलों के साथ गठबंधन किए चुनाव में उतरने का फैसला लिया है. हालांकि सवाल यह उठ रहा है कि साल 2024 के चुनाव के बाद क्या बहुजन समाज पार्टी बचेगी? साथ ही जानकार यह भी सवाल उठा रहे हैं कि मायावती के इस फैसले से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान होगा. 

आंकड़ों में यूपी में एक दिलचस्प समीकरण दिखाई देता है. वह यह है कि बीएसपी का हाल बीजेपी की चाल पर निर्भर करता है. जब बीजेपी ऊपर जाती है तो बीएसपी का ग्राफ गिरता है. और जब बीएसपी का ग्राफ चढ़ता है तो बीजेपी पिछड़ती है.

क्या मायावती को गठबंधन से नहीं होता है लाभ? 
पिछला चुनाव  बीएसपी ने समाजवादी पार्टी के साथ लड़ा था तब उसे 10 सीटें मिली थी. इस बार बीएसपी अकेले ही मैदान है. बीएसपी ये एकला चलो की नीति उसको ऊर्जा देगी या चुनौती को और बढ़ाएगी. सवाल ये भी है कि बीएसपी इस बार अकेले क्यों लड़ रही है जबकि पिछली बार गठबंधन में उसे फायदा हुआ था. हालांकि मायावती ने मीडिया के सामने कहा था कि बसपा को किसी भी दल के साथ गठबंधन करने पर कोई फायदा नहीं होता रहा है. 

बीजेपी को मिली बढ़त तो बसपा को हुआ नुकसान
पिछले 6 चुनावों के आंकड़ों को अगर देखे तो जब-जब बीजेपी को अधिक सीटें मिली है तब-तब बसपा का प्रदर्शन खराब हुआ है. साल 1998 के लोकसभा चुनाव में बसपा को 4 सीटें मिली थी वहीं बीजेपी ने 52 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 1999 के चुनाव में बसपा के प्रदर्शन में सुधार हुआ बसपा को 14 सीटों पर जीत मिली तो बीजेपी को नुकसान हुआ बीजेपी को महज 25 सीटों पर जीत मिली. 2004 में बसपा बढ़कर 19 पर पहुंच गया वहीं बीजेपी की सीट घटकर मात्र 10 रह गयी. 2009 में भी बसपा ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी को मात्र 10 सीटें मिले. 2014 में बीजेपी ने वापसी की बसपा को एक भी सीट नहीं मिली बीजेपी ने 71 सीटों पर जीत दर्ज की. 2019 में एक बार फिर बसपा के प्रदर्शन में सुधार देखने को मिला बसपा ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी को सीटों का नुकसान हुआ बीजेपी को 62 सीटें मिली. 

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एक्सपर्ट की क्या है राय
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि यह चुनाव बीएसपी की वजूद की लड़ाई है. पिछले चुनाव में सपा के साथ मिलकर बसपा ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. यह चुनाव बसपा के अस्तित्व की लड़ाई है. इस चुनाव में सबसे अहम यह होगा कि क्या बसपा किसी गठबंधन का खेल बिगाड़ सकती है. उन्होंने कहा कि बीएसपी की राजनीति हमेशा से समाजवादी पार्टी के खिलाफ रही है. बीजेपी पहले उसके लिए चुनौती नहीं थी. ऐसे में बसपा को लगता रहा है कि किसी भी तरह का गठबंधन का फायदा समाजवादी पार्टी को न मिल जाए. 

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वहीं वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह ने कहा कि बीजेपी अगर बढ़ी है तो उसका सबसे अहम कारण है कि ओबीसी उसके पास आया है. मंडल आंदोलन के बाद जो छोटी-छोटी आबादी वाली जातियां थी वो बीजेपी के साथ आ गयी. बीएसपी के कोर वोटर्स में भी बिखराव हुआ है.

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बसपा के वोट बैंक में तेजी से गिरावट
मायावती 4 बार यूपी की सीएम रही हैं.  पार्टी ने 2009 में 27 फीसदी से ज्यादा मत हासिल किए और उसके 20 सांसद लोकसभा में पहुंचे. .वो ना तो 2014 में इस प्रदर्शन को दोहरा पाई और ना ही 2019 में गठबंधन के बाद भी उस आंकड़े तक पहुंच पायी. पार्टी के वोट बैंक में तेजी से गिरावट देखने को मिली है. 2022 के चुनाव में पार्टी का वोट शेयर घटकर मात्र 13 प्रतिशत के करीब रह गया.

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क्या मायावती तय करेगी यूपी में जीत हार? 
उत्तर प्रदेश की कई ऐसी सीटे हैं जहां  बसपा मुख्य मुकाबले हो या नहीं लेकिन वो बीजेपी और सपा का खेल बिगाड़ सकती है. वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह ने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ सीट पर अखिलेश यादव को जीत मिली थी क्योंकि मायावती और अखिलेश यादव के बीच गठबंधन था. लेकिन बाद में हुए उपचुनाव में कम वोट लाकर भी बीजेपी इस चुनाव में जीत गयी. इसलिए यह बात बेहद अहम है कि कौन कितनी सीटें जीत रहा है लेकिन अहम यह है कि कौन कितनी सीटों पर हार और जीत को प्रभावित कर रहा है. 

कई सीटों पर दोनों गठबंधन का समीकरण बिगाड़ रही है BSP
लोकसभा चुनाव की शुरुआत से पहले यह कयास लगाए जा रहे हैं कि बीएसपी अधिकतर जगहों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतार कर विपक्षी गठबंधन के लिए चुनौती बनेगी. हालांकि समय के साथ दोनों गठबंधन के लिए बसपा कई सीटों पर चुनौती बनी है. कुछ जगहों पर बसपा के उम्मीदवार से कांग्रेस और सपा को नुकसान हो रहा है वहीं कुछ जगहों पर इसका लाभ भी उन्हें मिल रहा है. बसपा के दलित और ब्राह्मण उम्मीदवार बीजेपी के वोट बैंक में कई जगह सेंध लगा रहे हैं. 

क्या आकाश आनंद लगा पाएंगे बेड़ा पार? 
जानकारों का मानना रहा है कि बीएसपी इस चुनाव के माध्यम से अपनी सेकंड लाइन की लीडरशिप को धीरे-धीरे तैयार कर रही हैं. पार्टी ने आकाश आनंद को कई राज्यों का प्रभारी बनाया है. मायावती ने अपने भतीजे को राजनीति में आगे बढ़ा दिया है. ऐसे में बसपा के साथ-साथ आकाश आनंद के लिए भी यह चुनाव बेहद अहम माना जा रहा है. 

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