Analysis: क्या 2019 वाला प्रदर्शन दोहरा पाएगी BJP? तीसरे चरण में भी कम वोटिंग के क्या हैं मायने?

देश में लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में मंगलवार को 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 93 निर्वाचन क्षेत्रों में वोट डाले गए. अब तक के आंकड़ों के अनुसार 61.45 प्रतिशत वोट इन सीटों पर डाले गए हैं.

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नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok sabha election 2024) के लिए तीसरे चरण का मतदान मंगलवार को संपन्न हो गया. 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की 93 सीटों पर मतदान के साथ ही. अब देश में 283 सीटों पर मतदान संपन्न हो गए हैं. जबकि एक सीट सूरत में बीजेपी उम्मीदवार को निर्विरोध जीत मिल चुकी है. पहले चरण में 102 और दूसरे चरण में 87 सीटों पर मतदान हुए थे. ऐसे में आधी से अधिक सीटों पर मतदान संपन्न हो जाने के बाद राजनीति के जानकार इस बात की समीक्षा में लगे हैं कि देश का मूड क्या है? पहले 2 चरण की ही तरह ही अब तक के आंकड़ों के अनुसार तीसरे चरण में भी वोटिंग परसेंट में गिरावट देखने को मिली है. 

भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चरण बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा था. इस चरण में गुजरात की सभी सीटों पर कर्नाटक की 14 सीटों पर महाराष्ट्र की 11 सीटों पर चुनाव हुए हैं. ये वो सीटें थी जहां बीजेपी ने पिछले चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था.

असम और महाराष्ट्र में सबसे अधिक गिरावट
चुनाव आयोग की तरफ से जारी प्रोविजनल डेटा के अनुसार मत प्रतिशत में तीसरे चरण में सबसे अधिक गिरावट दादर और नगर हवेली में 11 प्रतिशत के देखने को मिले हैं. वहीं  महाराष्ट्र और असम में भी मतदान प्रतिशत में भारी कमी हुई है. महाराष्ट्र में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में लगभग 10 प्रतिशत मतों की गिरावट हुई है. वहीं असम में भी 10 प्रतिशत वोट कम पड़े हैं. सभी 93 सीटों पर 6.3 प्रतिशत कम वोट पड़े हैं. गुजरात में 8.5 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है. वहीं पश्चिम बंगाल में 7.8 प्रतिशत की कमी हुई है. 

उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक में वोट प्रतिशत में सुधार
उत्तर प्रदेश, बिहार और कर्नाटक में वोट प्रतिशत में पिछले चरणों की तुलना में कुछ सुधार की संभावना जतायी जा रही है. प्रोविजनल डेटा के अनुसार यूपी में लगभग 4 प्रतिशत, बिहार में लगभग पांच प्रतिशत और कर्नाटक में लगभग 2.5 प्रतिशत की कमी है हालांकि अंतिम डेटा सामने आने पर उम्मीद जतायी जा रही है कि वोट प्रतिशत पिछले चुनाव के आसपास तक पहुंच सकती है. 

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बंगाल और असम में वोट परसेंट में बड़ी गिरावट
बंगाल और असम में वोट परसेंट में पिछले चुनाव की तुलना में बड़ी गिरावट देखने को मिली है. असम में लगभग 10 और बंगाल में 8 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली है. ये दो ऐसे राज्य हैं जहां भारी मतदान होती रही है. इन दोनों ही राज्यों से बीजेपी को बेहद उम्मीदे हैं. बंगाल में बीजेपी ने इस चुनाव में मिशन 35 का लक्ष्य रखा है. 

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मतदाताओं में 2019 और 2014 वाला नहीं दिख रहा उत्साह
भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंता बढ़ सकती है क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में मोदी युग के उदय के बाद वोट प्रतिशत में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली थी. 2014 और 2019 में मत प्रतिशत अच्छे रहे थे. तीसरे चरण में जिन सीटें पर चुनाव हुए हैं उनमें 80 प्रतिशत से अधिक सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा था. हालांकि वोट परसेंट में गिरावट देखने को मिली है. खासकर उन राज्यों और उन सीटों पर भी गिरावट हुई है जहां बीजेपी पिछले चुनावों में बड़े अंतर से जीतने में सफल रही थी. 

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कम वोटिंग परसेंट के क्या हैं कारण? 
पहले दो चरण में जहां वोटिंग परसेंट को लेकर दावे किए गए थे कि भीषण गर्मी का भी असर मतदाताओं पर रहा और वो घरों से नहीं निकले. हालांकि इस चरण के चुनाव से पहले कुछ पूर्वी राज्यों में बारिश हुई और मौसम अच्छी बनी रही. पूर्वोत्तर के राज्यों में पिछले 2 दिनों में अच्छी बारिश हुई हालांकि असम में मतदान प्रतिशत में भारी कमी देखने को मिली. बिहार में भी लोगों को हीटवेव से राहत मिली है.

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बंगाल असम में कम मतदान से किसे नुकसान? 
बंगाल की जिन 4 सीटों पर मंगलवार को वोट डाले गए हैं उनमें से 2 पर टीएमसी, एक पर बीजेपी और एक पर कांग्रेस का कब्जा था. ऐसे में कम मतदान को लेकर कई तरह की अटकलें लगायी जा रही है. पहले 2 चरण के चुनाव में मुस्लिम बहुल सीटों पर मतदान प्रतिशत अच्छे रहे थे हालांकि इस बार बंगाल की मुस्लिम बहुल सीटों पर भी वोट परसेंट में गिरावट हुई है. वहीं असम की कोकराझार (एसटी), धुबरी, बारपेटा और गुवाहाटी में आज वोट डाले गए ये वो सीटें रही हैं जहां मुस्लिम वोटर्स का दबदबा रहा है. 

मतदान प्रतिशत में गिरावट का चुनाव परिणाम पर क्या रहा है असर? 
मतदान प्रतिशत में गिरावट या बढ़ोतरी को लेकर जानकारों का मानना है कि मतदान में कुछ प्रतिशत मतों की गिरावट या बढ़ोतरी का बहुत अधिक असर चुनाव परिणाम पर नहीं होता है. हालांकि पिछले 12 में से 5 चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखने को मिले है. जब-जब मतदान प्रतिशत में कमी हुई है 4 बार सरकार बदल गयी है. वहीं एक बार सत्ताधारी दल की वापसी हुई है. 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत में गिरावट हुई और जनता पार्टी की सरकार सत्ता से हट गयी. जनता पार्टी की जगह कांग्रेस की सरकार बन गयी. वहीं 1989 में एक बार फिर मत प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गयी और कांग्रेस की सरकार चली गयी. विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी. 1991 में एक बार फिर मतदान में गिरावट हुई और केंद्र में कांग्रेस की वापसी हो गयी.  1999 में मतदान में गिरावट हुई लेकिन सत्ता में परिवर्तन नहीं हुआ. वहीं 2004 में एक बार फिर मतदान में गिरावट का फायदा विपक्षी दलों को मिला.

AAP-कांग्रेस गठबंधन की थी पहली परीक्षा
इस चरण के चुनाव को लेकर सबकी नजर गुजरात की 25 सीटों पर हो रहे मतदान पर थी. वहीं गोवा की भी दोनों ही सीटों पर मंगलवार को ही वोट डाले गए. गोवा और गुजरात को लेकर सबसे अधिक चर्चा इस बात की थी कि यह पहली बार हुआ जब इन दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) और कांग्रेस गठबंधन कर के मैदान में हैं. अपनी स्थापना के बाद से आप गोवा में लगातार वोट पाती रही है. हालांकि इस बार उसने कांग्रेस को समर्थन का ऐलान किया है. ऐसे में इन दोनों राज्यों में वोट प्रतिशत में गिरावट का क्या असर चुनाव परिणाम पर होगा यह देखना बेहद रोचक होगा. 

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