UP के शाहजहांपुर में संपन्न हुआ होली के दिन परंपरा के तहत निकाले जाने वाला 'लाट साहब' का जुलूस

परंपरा के मुताबिक, लाट साहब के कोतवाली पहुंचने पर कोतवाल उन्हें सलामी देते हैं. वहीं, लाट साहब जब पूरे साल दर्ज किए गए आपराधिक मामलों का कोतवाल से ब्यौरा मांगते हैं तो वह (कोतवाल) उन्हें रिश्वत के रूप में नकद राशि और शराब की बोतल देते हैं.

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अपर पुलिस अधीक्षक संजय कुमार ने बताया कि लाट साहब के जुलूस में पुलिस उपाधीक्षक स्तर के 11 अधिकारी, 60 निरीक्षक तथा 300 उप निरीक्षक 1300 सिपाही एवं 800 होमगार्ड जवानों को तैनात किया गया था.
शाहजहांपुर (उप्र):

, 25 मार्च (भाषा) उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में होली के दिन एक परंपरा के तहत निकाले जाने वाला 'लाट साहब' का जुलूस सोमवार को अपने निर्धारित समय से दो घंटे पहले ही संपन्न हो गया. पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार मीणा ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया कि शहर में बड़े ‘लाट साहब' का जुलूस पूर्वाह्न नौ के बाद शुरू हुआ और दोपहर लगभग 12 बजे संपन्न हो गया. उनके अनुसार इसी तरह, आरसी मिशन क्षेत्र में निकाला जाने वाला छोटे ‘लाट साहब' का जुलूस भी पूर्वाह्न करीब नौ बजे शुरू होकर लगभग 11 बजे संपन्न हो गया.

उन्होंने बताया कि छोटे लाट साहब का जुलूस शहर के काफी संवेदनशील क्षेत्र से होकर गुजरा लेकिन कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं हुई.

शाहजहांपुर में निकाला जाने वाला लाट साहब का जुलूस एक अनूठी परंपरा पर आधारित है. इसमें एक व्यक्ति को प्रतीकात्मक लाट साहब बनाकर भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है. यह जुलूस फूलमती मंदिर पहुंचता है जहां लाट साहब माथा टेकते हैं.

परंपरा के मुताबिक, लाट साहब के कोतवाली पहुंचने पर कोतवाल उन्हें सलामी देते हैं. वहीं, लाट साहब जब पूरे साल दर्ज किए गए आपराधिक मामलों का कोतवाल से ब्यौरा मांगते हैं तो वह (कोतवाल) उन्हें रिश्वत के रूप में नकद राशि और शराब की बोतल देते हैं.

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पूर्व में यह जुलूस बड़ी तहजीब के साथ निकाला जाता था लेकिन समय के साथ इसका स्वरूप बदलता चला गया.

स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज में इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर विकास खुराना ने बताया कि शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान के घर 1729 में होली के त्योहार पर हिंदू और मुस्लिम, दोनों ही धर्मों के मानने वाले लोग होली खेलने गए थे और नवाब ने उनके साथ होली खेली थी.

खुराना के अनुसार, बाद में नवाब को ऊंट पर बैठाकर पूरे शहर में घुमाया गया था, तब से यह परंपरा बन गई.

खुराना ने बताया कि आजादी के बाद इस जुलूस का नाम 'लाट साहब का जुलूस' रख दिया गया.

उनके मुताबिक, ब्रिटिश शासन में आमतौर पर गवर्नर को 'लाट साहब' कहा जाता था. उन्होंने कहा कि संभवतः ब्रिटिश शासन के प्रति वितृष्णा की भावना के चलते, प्रतीकात्मक रूप से लाट साहब बनाये गए व्यक्ति को भैंसा गाड़ी पर बैठाने और जूते से पीटने का रिवाज शुरू हुआ तथा अब भी इसका अनुसरण किया जा रहा.

उन्होंने कहा कि इस रिवाज से जुड़ा मामला अदालत भी पहुंचा था, लेकिन उसने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, नतीजतन यह परंपरा अब भी जारी है.

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पुलिस अधीक्षक ने बताया कि इस जुलूस को उसके पुराने स्वरूप में वापस लाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं. उनके अनुसार, इस बार लाट साहब के जुलूस में कुछ जगह पर घरों से पुष्पवर्षा भी की गई जो एक अच्छी पहल है.

उन्होंने कहा कि जरूरी है कि भविष्य में इसे सभी लोग इसका अनुसरण करें ताकि इस जुलूस का सैकड़ों वर्ष पुराना स्वरूप लौट सके.

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मीणा ने बताया कि पुलिस प्रशासन ने जुलूस मार्ग पर पड़ने वाले घरों की छतों पर पत्थर न जमा करने की सख्त हिदायत दी थी और पूरे जलूस मार्ग की निगरानी के लिए सड़क के किनारे सीसीटीवी कैमरे भी लगवाए थे.

उन्होंने बताया कि इसके अलावा जुलूस मार्ग पर पड़ने वाली मस्जिदों को पॉलिथीन या तिरपाल से ढक दिया गया था.

अपर पुलिस अधीक्षक संजय कुमार ने बताया कि लाट साहब के जुलूस में पुलिस उपाधीक्षक स्तर के 11 अधिकारी, 60 निरीक्षक तथा 300 उप निरीक्षक 1300 सिपाही एवं 800 होमगार्ड जवानों को तैनात किया गया था. इसके अलावा, रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) की एक कंपनी और पीएसी की एक कंपनी भी तैनाती की गई थी.
 

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