क्या एग्जिट पोल के नतीजों से बढ़ा है कुमारी शैलजा का सीएम पद पर दावा, क्या हैं समीकरण

हरियाणा विधानसभा चुनाव के मतदान के बाद आए एग्जिट पोल में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलता हुआ दिख रहा है. उसकी सरकार बनती हुई नजर आ रही है. लेकिन क्या कांग्रेस के लिए हरियाणा में मुख्यमंत्री चुनना उतना आसान होगा. क्या कुमारी शैलजा का सीएम पद पर दावा अभी भी है.

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नई दिल्ली:

हरियाणा विधानसभा चुनाव का मतदान आज पूरा हुआ. चुनाव आयोग के मुताबिक 61.61 फीसदी मतदान हुआ है.इसके साथ ही विभिन्न सर्वे एजेंसियों ने अपने एग्जिट पोल के नतीजे भी जारी किए.इनके पोल्स ऑफ पोल्स के मुताबिक राज्य में बहुमत के साथ सरकार बनाती हुई नजर आ रही है. उसे 55 सीटें मिलती हुई नजर आ रही हैं. इससे उसे वहां सरकार बनाने में कोई परेशानी नहीं पेश आएगी. हरियाणा में सरकार बनाना भले ही कांग्रेस के लिए आसान हो,लेकिन मुख्यमंत्री चुनना उसके लिए कठिनाई लेकर आएगा क्योंकि राज्य में मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हैं. 

कौन बनेगा हरियाणा का अगला मुख्यमंत्री

हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हैं. वो राज्य में लगातार दो बार कांग्रेस की सरकार चला चुके हैं. इस बार भी उन्होंने काफी मेहनत की है. इसमें उनके बेटे दिपेंद्र हुड्डा का भी साथ मिला है. बाप-बेटे की इस जोड़ी ने इस बार जमकर पसीना बहाया है. लेकिन हुड्डा परिवार के लिए मुख्यमंत्री के कुर्सी तक जाने की राह आसान नहीं है. क्योंकि उनको कई लोगों से चुनौती मिल सकती है. इसमें एक बड़ा नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा का है. दलित समाज से आने वाली शैलजा राज्य की वरिष्ठ नेता हैं. 

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राज्य में चुनाव प्रचार के जोर पकड़ने से पहले शैलजा इस बात से नाराज थीं कि उनके समर्थकों को टिकट बंटवारे में तवज्जो नहीं दी गई. सारा का सारा टिकट हुड्डा के कहने पर दिए गए.सिरसा की सांसद खुद विधानसभा का टिकट मांग रही थीं, लेकिन उन्हें टिकट मांग रही थीं. लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. इस बात से वो काफी नाराज थीं. इस बीच रही-सही कसर हुड्डा के एक समर्थक ने उनके खिलाफ जातिगत टिप्पणी करके पूरी कर दी. शैलजा को मनाने के लिए कांग्रेस आलाकमान तक को दखल देना पड़ा. यहां तक की कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन ने अपनी दो रैलियों को स्थगित कर दिया. शैलजा को मनाने के लिए राहुल गांधी ने हरियाणा में अपने चुनावी दौरे की शुरूआत उस असंध सीट से की, जहां से शैलजा का समर्थक कांग्रेस उम्मीदवार था. दरअसल शैलजा विधानसभा चुनाव इसलिए लड़ना चाहती थीं ताकि मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी मजबूत हो सकी.विधानसभा चुनाव में एक और बड़ा नेता टिकट का दावेदार था. वह हैं रणदीप सिंह सुरजेवाला. वो अभी राज्य सभा के सदस्य हैं. शैलजा और सुरजेवाला हुड्डा विरोधी खेमे के नेता माने जाते हैं. 

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हरियाणा में कांग्रेस को कितनी सीटें मिल सकती हैं

एग्जिट पोल में जितनी सीटें कांग्रेस को मिलती दिखाई गई हैं, वो अकेले हुड्डा के जाट बिरादरी के बल पर नहीं मिल सकती हैं. आजकल हरियाणा में हुड्डा जाट बिरादरी के निर्विवाद नेता हैं. हरियाणा में जाट बिरादरी की आबादी करीब 27 फीसदी है. वहीं दलित वोट भी 20 फीसदी से अधिक है. इसके बाद करीब 30 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग का वोट है. ओबीसी हरियाणा में बीजेपी का वोटर है. लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद से दलित भी कांग्रेस से जुड़े हैं. इसी वजह से 2019 के लोकसभा चुनाव में शून्य सीटें जीतने वाले कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में नौ सीटों पर लड़कर पांच सीटें जीतने में कामयाब रही. कांग्रेस की इस जीत में जाट के साथ-साथ दलितों का भी योगदान माना गया.

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हरियाणा में दलित वोट और कांग्रेस

हरियाणा में दलित वोट कांग्रेस के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इसलिए इस तरह समझ सकते हैं कि कांग्रेस पिछले दो दशक से वहां अपना अध्यक्ष पद दलित को ही सौंप रही है. इस क्रम में फूलचंद मुलाना, अशोक तंवर, कुमारी शैलजा और अभी के प्रदेश अध्यक्ष उदय भान का नाम आता है. कांग्रेस अभी राष्ट्रीय राजनीति में जिस हालात में है, वह अपना कोई भी समर्थक वर्ग नहीं खोना चाहती है. इसलिए मतदान से 48 घंटे पहले कांग्रेस ने बीजेपी के दलित नेता अशोक तंवर को अपने पाले में कर लिया. हालांकि तंवर ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से ही की थी. लेकिन हुड्डा से मतभेद की वजह से कांग्रेस छोड़ गए थे. वो फिर कांग्रेस में वापस आ गए हैं. कांग्रेस के इस कदम को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता मनोहर लाल खट्टर को जवाब माना जा रहा है, जो नाराजगी की खबरों के बीच उन्होंने शैलजा को बीजेपी में आने का न्योता दिया था. कांग्रेस हर चुनाव में संविधान को खतरे का मुद्दा या आरक्षण के खतरे का मुद्दा दलितों को अपने पाले में ही करने के लिए उठा रही है.

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कुमारी शैलजा की दावेदारी

इस राजनीतिक हालात को देखते हुए कुमारी शैलजा हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद की प्रमुख दावेदार मानी जा रही हैं. अभी यह पता नहीं चल पाया है कि वो किन शर्तों पर अपनी नाराजगी छोड़ के चुनाव प्रचार करने आई हैं. लेकिन मतदान के दिन भी कुमारी शैलजा ने इशारों ही इशारों में मुख्यमंत्री पद पर  अपना दावा ठोक ही दिया. हिसार में जब उनसे यह पूछा गया कि हर नेता का वक्त आता है तो उनकी बारी आने में किसी को क्या परेशानी है? पार्टी नेतृत्व के फैसले से आपको कोई परेशानी है? इस पर शैलजा ने कहा कि किसी को कोई परेशानी नहीं हैं. हमारी पार्टी बड़ी पार्टी है. पार्टी हाईकमान जो फैसला करता है हम उसे मानता हैं. यह हमारी परंपरा है.शैलजा का यह बयान बताता है कि मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा उन्होंन अभी छोड़ा नहीं है.आगे-आगे देखिए होता है क्या. 

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