गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा के बाद पुलिस इसी कोशिश में है कि जल्द से जल्द बॉर्डर पर मौजूद किसानों को हटाया जाए. इसी के तहत पुलिस ने बिजली पानी और टॉयलेट हटाने शुरू कर दिए. इसके बाद गाजीपुर और सिंघु बॉर्डर पर तनाव का माहौल है. इसी बीच कुमार विश्वास (Kumar Vishwas) ने चार लाइनें शेयर की हैं, जिसमें आंदोलन या किसी का नाम तो नहीं लिया गया, लेकिन ये एक गहरा संदेश जरूर दे रही हैं. उन्होंने लिखा है- चटखे हुए गिलास को ज़्यादा न दाबिए, पैरों तले की घास को ज़्यादा न दाबिए, ऐसा न हो कि ख़ून ये दामन पे जा लगे, ज़ख़्मों के आसपास को ज़्यादा न दाबिए ! ये लाइनें डॉ कुंअर बेचैन ने लिखी हैं. हालांकि उन्होंने इस ट्वीट के साथ कुछ लिखा नहीं है, इसलिए कुछ भी पुख्तातौर पर नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने ये ट्वीट किसके बारे में लिखा है.
बता दें कि इससे पहले कुमार विश्वास ने लालकिला में हुई हिंसा को लेकर भी ट्वीट किया था. उन्होंने लिखा था कि संविधान की मान्यता के पर्व पर देश की राजधानी के दृश्य लोकतंत्र की गरिमा को चोट पहुंचाने वाले हैं. याद रखिए देश का सम्मान है तो आप हैं. हिंसा लोकतंत्र की जड़ों में दीमक के समान है.जो लोग मर्यादा के बाहर जा रहे हैं वे अपने आंदोलन व अपनी मांग की वैधता व संघर्ष को खत्म कर रहे हैं. सोचकर और देखकर मन बहुत ख़राब है ! हमें क्षमा करना पुण्य-पूर्वजों हमारी सोच,हमारे काम व हमारी व्यवस्था ने आपके बलिदानों से अर्जित गणतंत्र दिवस को दुख का दिन बना दिया. कोई एक पक्ष नहीं, एक देश के नाते हम सब ज़िम्मेदार हैं, हम सबने एक दूसरे को दुख पहुंचाया ! दुनिया हम पर हंस रही है.
इसके साथ ही उन्होंने एक ट्वीट और किया था कि
आंदोलनों की सफलता इन चार बातों पर निर्भर होती हैं-
(1)आंदोलन का उद्देश्य आख़री आदमी तक सही-सही समझा पाना
(2)आंदोलन के कुछ सर्वसम्मति से बने मानक चेहरे होना
(3)आंदोलन की गति सत्ता विरोध से किसी भी हाल में देश-विरोधी न होने देना
(4)राष्ट्रीय सम्पत्ति,राष्ट्रीय मनोबल पर चोट न करना
बता दें कि कुमार विश्वास आम आदमी पार्टी से अलग हो चुके हैं और देश के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी राय रखते रहते हैं. कुमार विश्वास की लिखी कविता कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है... आज भी उनकी सबसे अधिक प्रचलित कविता है.