कोविड मरीज दो महीने से लंग सपोर्ट मशीन पर, रोज का खर्च 1.5 लाख रुपये

जीतपाल देहरादून के स्कूल, कोलकाता, ब्रिटेन और अमेरिका में रहे हैं, उनके दोस्तों की विशाल मंडली है जिसने उदारता से मदद की

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कोलकाता:

कोविड ने न केवल जिंदगियां छीन ली हैं, इसने हजारों परिवारों को आर्थिक रूप से तबाह कर दिया है. हजारों परिवार वायरस से प्रभावित अपने रिश्तेदारों के इलाज के लिए पैसे जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. कोलकाता में 30 वर्षीय जीतपाल सिंघा एक महीने से अधिक समय से ईसीएमओ (ECMO) के एक अस्पताल में एक लाइफ सपोर्ट मशीन पर हैं, जिसका खर्च डेढ़ लाख रुपये प्रतिदिन है. डॉक्टरों ने उनके परिवार से कहा है कि उसे अगले 30 दिन और उस मशीन पर रहने की जरूरत है. उनकी जमा पूंजी खत्म हो गई है. उनका परिवार उनके इलाज के लिए पैसे जुटाने के लिए संघर्ष कर रहा है.

उनकी मां अल्पना सिंघा यह भी नहीं सोच रही हैं कि आगे क्या हो सकता है. वह आईसीयू में उनसे थोड़ी देर मिलने के बाद अस्पताल छोड़ते हुए केवल उसके उनसे गुडबाय कहने के बारे में सोचती हैं. उन्होंने कहा "वह बोल नहीं सकता क्योंकि उसके गले में पाइप लगे हैं, लेकिन जैसे ही मैं जा रही थी, उसने संकेत दिया कि मुझे उसकी एक तस्वीर लेनी चाहिए. और उसने विक्ट्री साइन बनाया." 

उन्होंने कहा कि "जब भी मैं उसे देखती हूं तो वह मुझसे पूछता है कि आप कैसी हैं मां? मैं कहती हूं कि मैं ठीक हूं, लेकिन तुम्हें जल्दी ठीक होना है." उन्होंने कहा कि "वह रोज पूछता है, मैं घर कब जा रहा हूं मां?"

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मां अपने आंसुओं पर काबू पाने के लिए संघर्ष करती है. उसके पति इन हालात में कुछ दिनों के लिए एक आश्रम में जाने लगे हैं. उनका इकलौता बच्चा दो महीने से अस्पताल में है. ईसीएमओ मशीन पर अगले 30 दिनों के लिए रोजाना डेढ़ लाख रुपये, यानी कम से कम 40 लाख रुपये की जरूरत है.

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जीतपाल के चचेरे भाई देबंजन बर्मन उनके लिए दिल्ली से लड़ाई कर रहे हैं. पिछले दो महीने से वह और जीतपाल के दोस्त उसके इलाज के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे हैं.

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जीतपाल देहरादून के स्कूल, कोलकाता, ब्रिटेन और अमेरिका में रहे हैं और उनके दोस्तों की एक विशाल मंडली है जिन्होंने उदारता से मदद की है. उन्होंने लगभग 40 लाख रुपये जुटाए, लेकिन वे लगभग समाप्त हो गए हैं.

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देबंजन कहते हैं कि "इस समय मौजूदा फंडों के साथ, सब कुछ - चिकित्सा बीमा, परिवार ने जो फंड जमा किया है, फंडराइजर से पैसा - हम लगभग 10 दिनों में खाली हाथ हो जाएंगे."

देबंजन की मां देबजानी बर्मन के साथ जीतपाल के माता-पिता कोलकाता में रह रहे हैं, वे निराशा में हैं. कोलकाता में जीतपाल भर्ती है और परिवार यहां से तीन घंटे की दूरी पर मिदनापुर में रहता है.

वह कहती हैं कि "उनके पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. उनका एक छोटा सा व्यवसाय है. उनके पास कुछ संपत्ति है, लेकिन उन्हें इस समय उसे बेचना मुश्किल हो रहा है. डॉक्टरों ने कहा है कि हमारे पास लगभग 40 लाख रुपये और होने चाहिए. हमारे पास के पहले ही लगभग 40 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं. अब हम क्या कर सकते हैं?" 

इस परिवार की दुर्दशा अनोखी नहीं है. कोविड ने हजारों परिवारों को इन हालात से सामना करने को मजबूर किया है. बीमा चला गया, बचत चली गई, दोस्तों, रिश्तेदारों ने अपना काम किया, यहां तक ​​​​कि अजनबियों ने भी मिलाप जैसे क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म पर मदद की.

जीतपाल के बचपन के दोस्त नीतीश व्यास मिलाप क्राउडफंडिंग के प्रयासों को आगे बढ़ा रहे हैं. नीतीश बेंगलुरु में जीतपाल के पड़ोसी भी हैं जहां वह एक स्टार्ट-अप में काम करते हैं. उन्होंने कहा कि "कोई भी परिवार इन हालात के लिए तैयार नहीं है. यह एक कठिन परिदृश्य है, एक असंभव परिदृश्य है, जिसमें हम हैं, लेकिन हम हार नहीं मान रहे हैं." 

नीतीश ने कहा, "जीतपाल अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं. उनका परिवार और दोस्त उन्हें कैसे निराश कर सकते हैं."

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