आखिर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया नोएडा के ट्विन टॉवर को गिराने का आदेश...?

नोएडा के सेक्टर-93 में स्थित सुपरटेक के ट्विन टावरों (Supertech Twin Towers) को ढ़हाए जाने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. ट्विन टावर को 28 अगस्‍त, रविवार को करीबन दोपहर ठीक ढाई बजे गिराया जाएगा.  लेकिन सवाल है कि करीबन 17 करोड़ रूपए खर्च कर इस ट्विन टावर को क्यों गिराया जा रहा है?

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नोएडा:

नोएडा के सेक्टर-93 में स्थित सुपरटेक के ट्विन टावरों (Supertech Twin Towers) को ढ़हाए जाने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. ट्विन टावर को 28 अगस्‍त, रविवार को करीबन दोपहर ठीक ढाई बजे गिराया जाएगा.  इस विशालकाय इमारत को गिराने के लिए लगभग 3,700 किलो विस्फोटक लगाया गया है. ट्विन टावर गिराए जाने से पहले उसके पास की सुपर टेक एमरल्‍ड और एटीएस विलेज सोसाइटी के निवासियों की सांसें उपर-नीचे हो रही हैं. सुपर टेक एमराल्‍ड के दो रिहायशी टावर ऐसे हैं जिनकी ट्विन टावर से दूरी करीब 10 मीटर है. नोएडा की 93 ए सेक्‍टर की सुपर एमरल्‍ड सोसाइटी के ठीक बगल में ट्विन टॉवर को गिराया जाना है. 28 तारीख को सुबह सात बजे इन सभी को फ्लैट छोड़ना है.

सुपरटेक ट्विन टावरों को क्यों गिराया जा रहा है?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने जांच में पाया था कि सुपरटेक ने इन टावरों को बनाते समय निर्माण शर्तों का जमकर उल्लंघन किया था. इस ट्विन टावर का निर्माण 2009 में शुरू हुआ था. इस दोनों टावर में कुल 950 से ज्यादा फ्लैट्स बनाए जाने थे. बहरहाल, कई खरीददारों ने यह आरोप लगाया कि बिल्डिंग के प्लान में बदलाव किया गया है और साल 2012 में वे इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए थे.

आंकड़ों के मुताबिक, इसमें 633 लोगों ने फ्लैट बुक कराए थे. इनमें 248 लोगों ने रिफंड ले लिया और करीबन 133 खरीददारों को दूसरे प्रोजेक्ट में मकान दिए गए. लेकिन तमाम खरीददारों में 252 ऐसे लोग हैं जिन्होंने न तो रिफंड लिया है और न ही उन्हें किसी दूसरे प्रोजेक्ट में शिफ्ट किया गया, मतलब उनका निवेश इस प्रोजेक्ट में बना रहा.   

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साल 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्विन टावर को अवैध घोषित करते हुए उन्हें गिराने का आदेश दे दिया था. उन्होंने नोएडा प्राधिकरण को भी जोरदार फटकार लगाया था. मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया. पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दिया था लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे गिराने का आदेश दिया.

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कब क्या हुआ... अदालती प्रक्रिया में सुनवाई औऱ फैसले तक का सफरनामा  

- 23 नवंबर 2004 में नोएडा विकास प्राधिकरण ने सुपरटेक को नोएडा के सेक्टर-93ए में एक हाउसिंग सोसाइटी के निर्माण के लिए जमीन आवंटित किया था.

- साल 2005 में सुपरटेक को कुल 14 टावरों और एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के निर्माण की इजाजत मिल गई. नक्शों के मुताबिक, सभी टावर ग्राउंड फ्लोर के साथ 9 मंजिल तक पास किए गए.

- नवंबर 2005 में सुपरटेक लिमिटेड ने एमराल्ड कोर्ट (Emerald Court) नाम से एक ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी का निर्माण शुरू किया.

- इसके बाद जून 2006 में सुपरटेक को नोएडा प्राधिकरण की तरफ से फिर अतिरिक्त जमीन आवंटित की गई

- सुपरटेक ने दिसंबर 2006 में 11 फ्लोर के 15 टावरों में कुल 689 फ्लैट्स के निर्माण के लिए प्लान में बदलाव किया .

- इसके बाद 2009 में सुपरटेक और नोएडा प्राधिकरण की मिलीभगत से ट्विन टावर का निर्माण शुरू कर दिया. ये T-16 और T-17 (Apex और Ceyane) टावर थे.

- इन दोनों टावरों को लेकर लोगों में काफी नाराजगी थी...फ्लैट खरीददारों का कहना था कि जिस इलाके को ग्रीन बेल्ट घोषित किया गया था वहां बिल्डर और ऑथोरिटी की मिलीभगत की वजह से विशालकाय टावर खड़े होने वाले हैं.

- सुप्रीम कोर्ट ने अपनी जांच में पाया कि इन ट्विन टावरों के निर्माण के दौरान अग्नि सुरक्षा मानदंडों (Fire Safety Standard) और खुले स्थान (Open Space) के मानदंडों का भी उल्लंघन किया गया था. साधारणतया बिल्डिंगों के निर्माण के दौरान बिल्डिगों के बीच एक निश्चित दूरी होती है. लेकिन इन ट्विन टावरों के निर्माण के दौरान इन बातों का बिल्कुल ही ध्यान नहीं रखा गया था.

- बिल्डिंग निर्माण को लेकर नेशनल बिल्डिंग कोड (NBC), 2005 का प्रावधान है जिसके तहत ऊंची इमारतों के आसपास खुली जगह होनी चाहिए. जांच में पाया गया कि टावर T-17 से सटे इलाके में 9 मीटर से भी कम का स्पेस गैप पाया गया जबकि नियम के मुताबिक यह जगह लगभग 20 मीटर होनी चाहिए थी.

- ये भी कहा गया कि सुपरटेक ट्विन टावर्स (T-16 और T-17) का निर्माण यूपी अपार्टमेंट्स एक्ट को नजरअंदाज कर के किया गया था. बिल्डरों ने मूल योजना में बदलाव तो कर दिया लेकिन बिल्डरों ने मूल योजना के खरीदारों की सहमति नहीं ली थी.

- जांच में यह भी कहा गया कि सुपरटेक ने ग्रीन बेल्ट वाले इलाके में दो बड़े टावर खड़े कर दिए. सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि यह दरअसल ग्राहकों के साथ ठगी है जो ग्रीन बेल्ट देखकर फ्लैट खरीदने का मन बनाया था.

इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा मामला

बहरहाल साल 2009 में एमराल्ड कोर्ट के फ्लैट-ओनर्स ने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया. एमराल्ड कोर्ट के रेजिडेंट ने साल 2010 में इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी. मामले में किसी तरह की कार्रवाई न होने से लोगों ने 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) जाने का निर्णय ले लिया. इसके बाद करीबन डेढ़ साल तक हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई चलती रही. फिर 11 अप्रैल 2014 में हाईकोर्ट ने विवादित टावर ध्वस्त करने का आदेश दिया था, उस आदेश में कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी के आरोपी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई का आदेश दिया था.

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सुप्रीम कोर्ट में 7 साल चली सुनवाई

हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई करीबन 7 साल तक चला. 31 अगस्त 2021 को सप्रीम कोर्ट ने रेजिडेंट्स के पक्ष में फैसला सुनाया और सुपरटेक को जबरदस्त झटका दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि तीन महीने के अंदर दोनों टावर को ध्वस्त कर दिया जाए. लेकिन उस समय के अंदर इसे गिराया नहीं जा सका. इशके बाद इसकी तारीख बढ़ाकर 22 मई 2022 कर दिया गया, लेकिन तब भी तैयारियां पूरी नहीं हो पाई.  सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में टावर गिराने वाली कंपनी को 3 महीने का समय और दिया. इस समय फ्रेम के  मुताबिक उन टावरों को 21 अगस्त 2022 को गिराया जाना था लेकिन तब टावर गिराने वाली कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग को एनओसी नहीं मिली थी. इसलिए एक हफ्ते और बढ़ा दिया गया और 28 अगस्त को टावर गिरा दिया जाएगा.

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सुप्रीम कोर्ट ने खरीदारों को इंसाफ दिलाया?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बिल्डकर को यह कहा गया कि कि वो दो महीने के भीतर फ्लैट खरीदारों को 12 फीसदी सालाना ब्याज के साथ सभी राशि वापस करे. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर को कहा कि वो रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को 2 करोड़ का भुगतान करे. लेकिन मार्च 2022 में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT)  ने सुपरटेक कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया था. फिलहाल कंपनी पर करीब 1200 करोड़ रुपये का कर्ज है.