केंद्र सरकार ने खेलकूद से जुड़ी तमाम योजनाओं का एकीकरण कर खेलो इंडिया (Khelo India) का नामकरण तो कर दिया है, लेकिन योजनाएं मंथर गति से आगे बढ़ पा रही हैं. देश के सबसे बड़े उत्तर प्रदेश की ही बात करें तो खेलो इंडिया योजना के तहत प्रदेश से 114 प्रस्ताव दिए गए थे, इनमें से 30 प्रस्तावों को ही मंजूरी मिल पाई. इन 30 परियोजनाओं की लागत करीब 182.4 करोड़ रुपये थे, लेकिन पिछले पांच सालों में सिर्फ 56 फीसदी धनराशि (लगभग 95.32 करोड़ रुपये) ही खर्च हो पाई हैं. सिर्फ दो स्टेडियम का निर्माण कार्य पूरा हो पाया है. जबकि 5-6 ऐसे स्टेडियम ऐसे भी हैं, जहां अभी भी निर्माण कार्य शुरू भी नहीं हो पाया है.
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, खेल मंत्रालय ((Indoor Outdoor Stadium) ने खेलो इंडिया योजना के तहत देश भर में विभिन्न श्रेणियों की 267 खेल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को मंजूरी दी है. इनकी कुल अनुमानित लागत 2249.57 करोड़ रुपये थी. इसमें 101 बहुउद्देशीय हॉल/इनडोर स्टेडियम (Indoor Outdoor Stadium) का निर्माण शामिल हैं. इसी के तहत यूपी से 114 प्रस्ताव भेजे गए थे, जिनमें 30 को मंजूरी मिली थी. पूर्व नौसैनिक और आरटीआई एक्टिविस्ट संदीप पांडेय का कहना है कि देश में 2017-18 में ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों के लिए प्रशिक्षण केंद्र, इनडोर-आउटडोर स्टेडियम के लिए राज्य सरकारों को सहायता प्रदान करने के लिए खेलो इंडिया स्कीम का शुभारंभ किया गया था. देश में पहली बार खेलों के महत्व को समझते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों को बढ़ावा देने के लिये 2008-09 में 'पाइका योजना' की शुरुआत की गई थी.
इसके अंतर्गत चयनित गांवों में एक संतुलित खेल का मैदान उपलब्ध कराना, बच्चों को खेलकूद सिखाने हेतु गांवों में एक कोच की नियुक्ति और सरकारी कोष से खेलने के लिये खेल सामग्री उपलब्ध कराना था. फरवरी 2014 में यूपीए सरकार ने 'पायका योजना' का नाम बदल कर 'राजीव गाँधी खेल अभियान' कर दिया था. लेकिन 2017 से जब खेलो इंडिया स्कीम योजना का शुभारंभ हुआ, तब राजीव गांधी खेल योजना का इसी में विलय कर दिया गया, या फिर ये समझ लीजिये राजीव गाँधी खेल योजना का नाम बदल कर खेलो इंडिया स्कीम कर दिया गया.
पांडेय के मुताबिक, एक उदाहरण उन्नाव का श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्टेडियम है, जो 1995-96 के दौरान बना था, लेकिन कुछ सालों में उपेक्षा के कारण खंडहर हो गया. खेलो इंडिया स्कीम के तहत 30 जुलाई 2018 को इस मैदान के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव भेजा गया था. लेकिन यह एक साल बाद 30 जुलाई 2019 को यह प्रस्ताव केंद्रीय खेलकूद मंत्रालय को भेजा गया.
फरवरी 2021 को स्टेडियम का निरीक्षण कर वित्तीय मदद की सिफारिश की गई. लेकिन 14 सितंबर 2021 तक योजना का कार्य शुरू नहीं हो पाया था. उन्नाव से भी पांच योजनाओं का प्रस्ताव था, लेकिन एक योजना पर भी मोहर नहीं लग पाई. पिछले 5 वर्षों में सिर्फ 2 प्रस्ताव (लखनऊ एवं सोनभद्र में 6.4 करोड़ की लागत से) ही सफलतापूर्वक पूरी हो सके.