एक कंपनी के संस्थापकों ने दावा किया है कि इस्तेमाल की गई कांच की बोतलों के पुनर्चक्रण में अधिक ऊर्जा की खपत होती है और कार्बन उत्सर्जन होता है, लिहाजा कंपनी ने इस्तेमाल की गईं ऐसी वस्तुओं को दोबारा उपयोग करने योग्य बनाने के लिये एक रचनात्मक तरीका ढूंढा है.'कवि - द पोएट्री-आर्ट प्रोजेक्ट' कंपनी ने अब तक छह लाख से अधिक बोतलों को पर्यावरण के अनुकूल, टिकाऊ प्रसंस्करण के माध्यम से घरेलू सजावट की वस्तुओं में परिवर्तित किया है.वर्ष 1973 से पांच जून को दुनिया भर में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य ‘ग्लोबल वार्मिंग' और पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाले जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक स्थायी जीवन शैली के प्रति जागरूकता बढ़ाना है.
कंपनी के सह-संस्थापक अमित सिंह (39) ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया, 'हमारी पहल 2012 के आसपास शुरू हुई. यह काफी हद तक कला एवं कविता के प्रति हमारे झुकाव से प्रेरित थी. फिर हम शराब, केचप और घरों में इस्तेमाल होने वाली कांच की बोतलों के पर्यावरण के अनुकूल टिकाऊ पुनर्चक्रण के काम में लग गए.''
कंपनी की सह-संस्थापक माधुरी बालोदी (34) ने कहा, 'इस पहल के माध्यम से, हमने अब तक छह लाख से अधिक कांच की बोतलों को दोबारा उपयोग योग्य बनाया है और 1,500 पेड़ों को बचाया है.'वैज्ञानिक अध्ययनों का हवाला देते हुए, उन्होंने दावा किया कि छह टन कांच के पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) से एक टन कार्बन वातावरण में उत्सर्जित होता है.
सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में नोएडा, गाजियाबाद, दिल्ली और गुरुग्राम से इस्तेमाल की गई बोतलें कबाड़ की दुकान वालों और कूड़ा बीनने वालों के माध्यम से नोएडा सेक्टर 6 स्थित कंपनी तक पहुंचती हैं.
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