सिद्धारमैया-डीके शिवकुमार की क्या हैं ताकत और कमजोरी? कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के पास 3 फॉर्मूले

कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटें जीती थीं. बीजेपी के खाते में 66 सीटें आईं. वहीं, जेडीएस को19 सीटें मिली. प्रचंड बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री को लेकर कांग्रेस में मंथन चल रहा है. सीएम पद के लिए सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार ने दावेदारी पेश की है.

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नई दिल्ली:

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 (Karnataka Assembly Elections Result 2023) में कांग्रेस (Congress) ने प्रचंड बहुमत तो हासिल कर लिया, लेकिन मुख्यमंत्री को लेकर दिल्ली में आलाकमान की माथापच्ची जारी है. सिद्धारमैया (Siddaramaiah) और डीके शिवकुमार (DK Shivkumar) दोनों ने ही सीएम पद के लिए मजबूती से दावेदारी पेश की है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के घर एक अहम बैठक भी हुई. इसमें राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और केसी वेणुगोपाल शामिल हुए. मीटिंग में 3 फॉर्मूले पर चर्चा हुई है. अब देखना है कि कर्नाटक में कांग्रेस किस फॉर्मूले पर आगे बढ़ेगी. क्या ढाई-ढाई साल के सीएम का फॉर्मूला होगा या कर्नाटक को एक सीएम और एक डिप्टी सीएम मिलेगा. 

फॉर्मूला-1 एक सीएम, एक डिप्टी सीएम 
फॉर्मूला नंबर 1 के तहत कर्नाटक का एक सीएम और एक डिप्टी सीएम होगा. सिद्धारमैया मुख्यमंत्री हो सकते हैं और डीके शिवकुमार उनके डिप्टी. डीके शिवकुमार को डिप्टी पद के साथ ही दो अहम मंत्रालय भी दिए जा सकते हैं. वहीं, उनकी पसंद से 3 मंत्री भी बनेंगे.

फॉर्मूला-2 ढाई-ढाई साल का मुख्यमंत्री
इस फॉर्मूले के तहत सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच सत्ता की साझेदारी होगी. दोनों नेता ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनेंगे. पहले कौन मुख्यमंत्री बनेगा, ये कांग्रेस आलाकमान तय करेगी.

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फॉर्मूला-3 संतुलन बनाने का काम
ये फॉर्मूला ऊपर के दो फॉर्मूले से कुछ अलग है. इसके तहत सभी समुदायों को प्रतिनिधित्व देकर सत्ता में संतुलन बनाने की कोशिश होगी. अगर इस फॉर्मूले को लागू किया जाता है, तो कुरुबा गौड़ा नेता सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनेंगे. वोक्कालिगा नेता डीके शिवकुमार को ऐसे में डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है. डीके शिवकुमार के साथ 2 और उप मुख्यमंत्री बनेंगे. दूसरा उप मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय से होगा. तीसरा उप मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक समुदाय से होगा

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सिद्धारमैया के बारे में जानिए:- 
कर्नाटक चुनाव में सिद्धारमैया ने वरुणा विधानसभा सीट से जीत हासिल की है. ये सीट सिद्धारमैया का गढ़ है. वह 2013-18 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे. दो बार डिप्टी सीएम भी रह चुके हैं. सिद्धारमैया कुरुबा गौड़ा समाज से आते हैं. वह पहली बार 1983 में चामुंडेश्वरी से विधायक बने. तब वो भारतीय लोकदल में थे. इसके अलावा वह जनता पार्टी और जनता दल सेक्युलर में भी रह चुके हैं.

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डीके शिवकुमार के बारे में जानिए:- 
डीके शिवकुमार कर्नाटक की राजनीति के संकटमोचक कहे जाते हैं. उन्होंने कनकपुरा विधानसभा सीट से चुनाव जीता. वह वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं. शिवकुमार दो बार कर्नाटक में मंत्री रहे हैं. सात बार विधायक रह चुके हैं. शिवकुमार कनकपुरा सीट से 2008, 2013 और 2018 का चुनाव जीत चुके हैं. 1989 में वह पहली बार सतनुर से विधायक बने थे. सतनुर से वह चार बार विधायक रह चुके हैं.

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डीके शिवकुमार का मजबूत पक्ष:- 
-पार्टी के संकटमोचक
-सोनिया गांधी-प्रियंका गांधी के करीबी
-संगठन पर अच्छी पकड़
-कांग्रेस के पुराने नेताओं और पार्टी अध्यक्ष का समर्थन

कमज़ोर पक्ष
-आय से अधिक संपत्ति केस में ED,IT,CBI का शिकंजा
-सिद्धारमैया के मुकाबले कम अनुभव
-सिर्फ पुराने मैसूर इलाके में ज़्यादा पकड़

कुल मिलाकर कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते डीके शिवकुमार का दावा मज़बूत है. उनके वोक्कालिगा समुदाय से होने के नाते पार्टी को नया वोट बैंक मिलेगा. इसके साथ ही उन्हें पार्टी में किए गए मेहनत का इनाम मिलना चाहिए.


सिद्धारमैया का मज़बूत पक्ष
- कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय जननेता 
-राहुल गांधी से करीबी
-सभी क्षेत्रों और राजनीतिक दलों में प्रभाव
-मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यकाल पूरा करने का अनुभव

कमज़ोर पक्ष:-
-JDS से आए, कांग्रेस में बाहरी
-कांग्रेस के पुराने नेताओं से दूरी
-2018 में कांग्रेस को सत्ता में वापस नहीं ला पाए
-बढ़ती ऊम्र

शिवकुमार पर कई केस हैं. इस स्थिति में सिद्धारमैया की दावेदारी मजबूत हो जाती है. उन्हें सीएम बनाने से 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को फायदा हो सकता है. सिद्धारमैया ने इसे आखिरी चुनाव बताया था. यानी अगले चुनाव में वो नहीं लड़ेंगे. इसलिए उनके पास अंतिम बार सीएम बनने का मौका है.

अतीत से सबक ले कांग्रेस
कांग्रेस आलाकमान के लिए कर्नाटक के सियासी नाटक पर जल्द पर्दा डालकर उसे सुलझाना इसलिए ज़रूरी है, ताकि कुछ अन्य राज्यों जैसी स्थिति कर्नाटक में भी पैदा न हो जाए. मसलन कांग्रेस पंजाब में सिद्धू बनाम कैप्टन की लड़ाई में तीसरा खिलाड़ी लाकर अपने हाथ जला चुकी है. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य बनाम कमलनाथ की लड़ाई का नतीजा ये हुआ कमलनाथ की सरकार गिर गई और ज्योतिरादित्य समर्थकों सहित बीजेपी में चले गए. 

वहीं, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल बनाम टीएस सिंहदेव की लड़ाई जितनी बार सामने आई, उतनी बार उसे डिफ़्यूज़ करने की कोशिश हुई. लेकिन वो लड़ाई अब भी जारी है. वही हाल राजस्थान का है, जहां गहलोत बनाम पायलट की लड़ाई बढ़ती जा रही है. साल के अंत में राज्य में चुनाव हैं और पायलट अपनी ही गहलोत सरकार के खिलाफ आंदोलन पर उतारू हैं.


 

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