कोविड अस्पतालों में सुविधाओं की कमी, असहाय महसूस कर रहे बेंगलुरु के डॉक्टर

बेंगलुरु में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ने के कारण मेडिकल ऑक्सीजन और अस्पतालों में अधिक बेडों की जरूरत

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बेंगलुरु:

कर्नाटक (Karnataka) की राजधानी के सरकारी कोविड अस्पताल (COVID Hospital) में एक जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर डॉ शिल्पा कोरोना वायरस (Coronavirus) की दूसरी घातक लहर के बीच कई गंभीर मरीजों के बीच चुनौतियों का सामना कर रही हैं. तब जब अस्पताल में सिर्फ एक आईसीयू बेड खाली बचा है. वे कहती हैं कि "अधिकांश दिनों में हमारे पास केवल एक आईसीयू बेड खाली होता है और हमें 30 बीमार रोगियों के बीच यह तय करना होता है कि किस एक मरीज को आईसीयू में स्थानांतरित करना है, जबकि हम यह जानते हैं कि अन्य 29 मरीज अगले एक या दो दिन में मर जाएंगे.” 

कर्नाटक आज 47,563 नए मामलों के साथ बड़े पैमाने पर कोविड-19 के केसों में उछाल से जूझ रहा है. कुल माामले 18,86,448 हो गए हैं. यह किसी ऐसे राज्य में महामारी की घातक लहर में अपेक्षाकृत बड़ी संख्या है जिसने पिछले साल कोरोना मामलों का चरम नहीं देखा था. कर्नाटक में आज कोविड की वजह से कुछ 482 मौतें हुईं.

मामलों में वृद्धि के साथ राज्य के अन्य शहरों की तरह बेंगलुरु में भी मेडिकल ऑक्सीजन और अस्पताल में बेड की मांग तेजी से बढ़ रही है. बेंगलुरू में पॉजिटिविटी रेट या संक्रमित होने की संभावना लगभग 40 प्रतिशत है क्योंकि शहर में आज 21,534 मामले सामने आए और 285 मरीजों की मौतें हो गई.

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कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं जो इन दिनों शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से संघर्ष कर रहे हैं.

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डॉ. शिल्पा ने कहा कि "पिछले दो हफ्तों के दौरान, बेंगलुरु ने कोविड मामलों की एक रिकॉर्ड संख्या देखी है. मैंने पिछले एक सप्ताह में 170 रोगियों के वार्ड में काम किया है, जिनकी देखभाल के लिए सिर्फ दो डॉक्टर उपलब्ध थे. डॉक्टरों और रोगियों के अनुपात में गिरावट आई है. इतने निचले स्तर पर कि हमें अपने ही मरीजों की देखभाल करना लगभग असंभव लग रहा था. पहली लहर के मुकाबले इस बार स्थिति बहुत गंभीर है.

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बेंगलुरु के एक सरकारी अस्पताल के एक अन्य जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर डॉ जीवन ने कहा, हर हेल्थ प्रोफेशनल ओवरटाइम काम कर रहा है. सीधा कहें तो बिना किसी आराम के लगभग 48 घंटे. उन्होंने कहा कि "एक जूनियर या सीनियर डॉक्टर समान रूप से एक कोविड वार्ड में 6 से 8 घंटे सीधे पीपीई किट में काम कर रहे हैं, वह भी इस गर्मी में बिना भोजन, बिना पानी, बिना वॉशरूम का उपयोग किए. 80 से 100 मरीजों को देखने के लिए वार्डों के बीच चलते रहना... शारीरिक रूप से थकाने वाला है." 

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कई युवा डॉक्टरों ने मरीजों के परिवार के सदस्यों के दबाव के बारे में भी बात की. बानरघट्टा रोड पर अपोलो हॉस्पिटल की आपातकालीन सेवा के एक रेजिडेंट डॉक्टर डॉ नवीन जयराज ने कहा कि "उनमें से सभी नहीं, लेकिन अधिकांश रोगियों को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है. लेकिन हम उन सभी की मदद करने में सक्षम नहीं हैं. हम देख रहे हैं कि परिवार अपने प्रियजनों को पीड़ित देखकर व्यथित हो रहे हैं. और वे क्रोधित हो जाते हैं और कई बार बहुत आक्रामक होते हैं. पहले से तनावग्रस्त कर्मचारियों पर तनाव और बढ़ रहा है. हम संसाधनों की कमी के कारण भी बहुत असहाय महसूस कर रहे हैं."

डॉक्टरों ने उन जोखिमों के बारे में भी बात की जिनका उन्हें सामना करना पड़ रहा है.  देश में कोविड की वजह से स्वास्थ्य कर्मियों की बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं.

डॉ जीवन ने कहा कि "मुझे लगता है कि मेरी शिफ्ट के बाद कभी-कभी मुझे मेरा घर जाना बहुत डरावना होता है. मैं अपने बुजुर्ग माता-पिता और परिवार के लिए संक्रमण घर ले जाऊंगा." उन्होंने कहा कि "यह समय है जब हम एक साथ खड़े हैं, एक-दूसरे का समर्थन कर रहे हैं और इस महामारी से एक साथ लड़ रहे हैं."

कोरोना से निपटने के लिए कर्नाटक में 10 मई को सुबह 6 बजे से 24 मई तक दो सप्ताह के लॉकडाउन की घोषणा की गई है. ऑक्सीजन की कमी के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह कर्नाटक के लोगों को नहीं छोड़ सकता. उसने राज्य के रोज के ऑक्सीजन आवंटन को 965 टन से बढ़ाकर 1,200 टन करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

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