करगिल युद्ध ने वीरता की कईं कहानियां अमर कर दी हैं. शहीदों की शहादत पूरे देश का सीना गर्व से चौड़ा कर देती हैं. उन वीरों के परिजनों का जज्बा भी कम नहीं है. इन्ही में एस नाम लांस नायक राजेंद्र यादव का भी है, जो जंग के दौरान शहीद हो गए थे. जब वो जंग पर जा रहे थे तो उनकी पत्नी प्रतिभा गर्भवति थीं. राजेंद्र यादव 30 मई 1999 को शहीद हुए. प्रतिभा को अपने शहीद पति पर गर्व है. एनडीटीवी सहयोगी राजीव रंजन ने उनसे खास बातचीत की है.
प्रतिभा यादव ने करगिल दिवस की दी बधाई
शादी के दो साल बाद ही प्रतिभा यादव के पति और जवान राजेंद्र यावद करगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "सबसे पहले सभी देशवासियों को 25वें विजय दिवस की बहुत-बहुत बधाई हो. करगिल दिवस को 25 वर्ष हो गए हैं. राजेंद्र जी मेरे हसबैंड भी करगिल युद्ध में शहीद हुए थे. उनको गोली लगी थी. मेरी शादी को उस वक्त 2 ही साल हुए थे. 1997 में मेरी शादी हुई थी. मेरी शादी जिस वक्त हुई थी तब राजेंद्र जी पचमढ़ी मे थे. वहां से उनकी पोस्टिंग करगिल हो गई थी. उसी दौरान वह छुट्टी पर आए हुए थे. वह 20 मार्च को आए थे और 13 मई को उनकी छुट्टी खत्म हो गई थी."
बताया 13 मई 1999 को उन्हें छुट्टी के बाद वापस जाना था
प्रतिभा यादव ने बताया कि उन्हें पोस्टिंग पर वापस जाने से तीन दिन पहले ही पता चला था कि वो पापा बनने वाले हैं. उनकी पत्नी प्रतिभा ने कहा, "उनको पता लग गया था जंग छिड़ने वाली है या छिड़ चुकी है. 13 मई को जब वो जाने वाले थे, उससे तीन दिन पहले ही उन्हें पता चला था कि वो पापा बनने वाले हैं. वो बोल कर गए थे कि देखो बेटा हो या बेटी हो, मैं जा रहा हूं. भविष्य में क्या होता है मैं नहीं कह सकता. क्योंकि हमने वर्दी देश की रक्षा करने के लिए पहनी है और जंग छिड़ चुकी है. अब या तो मैं आऊंगा , या तो तिरंगे में लिपट के आऊंगा. वो ये बोलते थे, कि एक सैनिक का सबसे बड़ा सपना यही होता है कि देश पर अपना सर्वोच्च न्यौछावर कर दे. तिरंगे में लिपट के आना, वो सबसे बड़ा अपना गर्व समझते हैं. वो बोल कर गए थे अपना बच्चा जो भी हो, उसे आर्मी में ही भेजना. कोशिश यही करना कि बच्चे का आर्मी में सेलेक्शन हो."
जाने से पहले शहीद राजेंद्र ने कही थी ये बात
प्रतिभा ने बताया कि जब वह जा रहे थे तो उन्होंने कहा, "मैंने उनसे बोला कि आप ऐसी बातें क्यों कर रहे हो, तो उन्होंने एक ही चीज़ बोली थी कि मैंने तो तुम्हे पहले ही बोला था कि मैं वर्दी पहना हूं. देश की सीमाओं पर मैं तैनात हूं और वहां कुछ भी हो सकता है. तो सर्वोपरि हमारे लिए राष्ट्र धर्म है और मातृभूमि है. कुछ भी हो सकता है. तो मैंने उनसे बोला था कि आप आइए और अपना बच्चा होगा. तो उन्होंने बोला ठीक है, आ गया तो ठीक है. नहीं तो फिर तिरंगे में आऊंगा, यही अपने बच्चे को कहानी सुनाना."
16 जून को मिली थी उन्हें अपने पति की शहादत की खबर
प्रतिभा ने आगे बताया, विदा तो करना ही था. क्योंकि एक राजा जैसे जंग पर जाता है. उसी तरह मेरे पति भी जंग पर जा रहे थे. तो वो तो हिम्मत वहीं देते थे. जब एक सैनिक वर्दी पहनता है तो उनमें वैसे ही हिम्मत आ जाती है. तो सैनिक की पत्नी को भी हिम्मत वही देते हैं. हमने उन्हें तिलक लगाकर ही विदा किया था. जब उनको गोली लगी तो मुझे पता नहीं था कि उनको 30 मई को गोली लगी है. मुझे पता चला 16 जून को. 30 मई को गोली लगी थी और 16 जून को उनका पार्थिव शरीर आया. तब पेपर में नाम आया था कि घुघरियाखेड़ी के राजेंद्र यादव शहीद हो गए हैं. तो जब मुझसे पूछा गया कि घुघरियाखेड़ी के कितने भाई लोग गए हैं सेना में. तब हमारे घर से दो ही गए हुए थे, एक राजेंद्र जी थे और एक इनके काकाजी का लड़का था. मैंने पूछा कि ऐसा क्यों पूछ रहे हैं. तो उन्होंने ये बोला कि राजेंद्र जी शहीद हो गए हैं. तब मुझे कुछ समझ में नहीं आया. क्योंकि उम्र भी कम थी और गर्भ से भी थी. तब मैं 18 साल की थी.
प्रतिभा के पैरों तले खिसक गई थी जमीन
उन्होंने आगे कहा, उस टाइम तो यही हालत थी कि पैरों तले से ज़मीन खिसक गई थी, कि पता नहीं क्या होगा. जैसे शून्य हो जाता है व्यक्ति, उसी तरह मैं शून्य हो गई थी. लेकिन जब मैं वहां गई, मैंने देखा, इतनी पब्लिक थी बहुत भीड़ थी. जैसे पहले टीवी में मूवी में देखते थे कि कोई आ रहा है, कोई नेता आ रहा है तो उसके पीछे इतनी भीड़ होती है. या कोई सैनिक आ रहा है तो इतनी भीड़ होती है. लेकिन उस दिन मैंने असल में देखा. इतनी भीड़ थी कि लाख डेढ़ लाख लोग थे. और सब यही कह रहे थे कि गुगरखेड़ी के छोटे से गांव से एक किसान का बेटा भारत माता की रक्षा करते हुए युद्ध में शहीद हो गया. उन्हें गोली लगी थी. ये हमारे निमाड़ के लिए बड़ी गर्व की बात थी कि आज हमारा निमाड़ पूरी दुनिया में छा गया. हमारे लिए बड़ी गर्व की बात है. एक चीज़ ऐसी होती थी कि कान में आकर वो यही कह कर गए थे कि मैं रहूं या न रहीं अदृश्य ही सही, लेकिन तुम्हारा साथ कभी नहीं छूटेगा. जो भी बच्चा होगा वो मेरा रूप ही समझ लेना. उसी को बड़ा करना. उसे आर्मी में भेजना. राजेंद्र जी शहीद होने के 6 महीने बाद मेरी बेटी मेघा का जन्म हुआ था. बेटी भी बिल्कुल पिता पर गई है. उसने एनसीसी किया हुआ है और वो भी एसएसबी की तैयारी कर रही है.
पति के बाद ऐसे संभाली प्रतिभा ने अपनी जिंदगी
अपने पति को खोने के बाद प्रतिभा जी ने खुद को कैसे संभाला इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "शादी के बाद पति और पत्नी के रिश्ते का मतलब जीवनभर का साथ होता है. यह साथ छूट जाता है तो व्यक्ति बहुत अकेला महसूस करता है लेकिन उसे एक अंदरूनी शक्ति भी मिलती है. एक परमात्मा अगर कुछ लेते हैं तो कुछ देते भी हैं. वही जो मेरे पति का गर्व था कि वो देश के लिए शहीद हो गए. उसकी ताकत, पति का आशीर्वाद और उन्हीं का अंश आना क्योंकि जीवन में कठिनाइयों का तो सामना करना पड़ा था लेकिन माता-पिता और बच्चे का साथ था. सरकार ने भी इस दौरान साथ दिया. हमें आर्मी से भी सपोर्ट मिला था. लेकिन हां, इन्हीं के बीच में परिस्थितियां विपरीत भी हुईं. लेकिन घरवालों का साथ रहा. राजेंद्र जी का नाम आज नीमाड़ में इतना है कि उनका जब शहादत दिवस आता है, 30 मई को बहुत बड़ा कार्यक्रम होत है. एसपी, कलेक्टर सारे लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने आते हैं. उनका स्मारक बना हुआ है. 30 मई को सारे लोग आते हैं. यही लगता है कि सभी इंसान दुनिया से जाने के लिए आए हैं, लेकिन भारत माता पर कोई अपना सर्वोच्च न्योछावर कर दे तो उसके कहीं न कहीं भागी हम भी बनेंगे".
शहीद राजेंद्र को याद कर कही ये बात
अपने पति और शहीद जवान राजेंद्र यादव के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "वो इतने अच्छे थे कि मैंने उनके जैसा स्वभाव शायद ही किसी का देखा होगा. देखने में बड़े नर्म स्वभाव के थे. बहुत अच्छे व्यक्ति थे. लेकिन उनकी कोई कमी पूरी नहीं कर सकता. उनकी कमी जो है वो रहेगी."
बेटी को फौज में भेजने का है सपना
अपनी बेटी को फौज में भेजने के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "मैं आज देशवासियों और नौजवानों को यही संदेश देना चाहूंगी कि सबसे पहले अपना राष्ट्र और देश भक्ति. अपने देश को बचाएंगे तो हम बचेंगे. देश की रक्षा सबको करनी चाहिए. सभी को आर्मी में भी जाना चाहिए." उन्होंने कहा, "ये मेरा बहुत बड़ा फैसला है कि बेटी को भी भेजना है लेकिन देश की सेवा के लिए. मुझे यह परंपरा जारी रखनी है. मेरे पति ने बहुत छोटी उम्र में देश की सेवा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया तो उसी नाते से भी मैं चाहूंगी कि उनका सपना पूरा करूं क्योंकि उन्होंने बोला था कि बच्चे को आर्मी में भेजना है. उनका सपना ज़रूर पूरा करूंगी अगर उसका एसएसबी में हो जाता है तो मैं ज़रूर उसे आर्मी में भेजूंगी."
समरसता मिशन में एमपी की संरक्षक हैं प्रतिभा
बेटी को सेना में भेजने के पति के सपने के बारे में बात करते हुए प्रतिभा यादव ने कहा, "जी, मैंने पूरी जिंदगी उनके सपने को पूरा करने में लगा दी है. देश के लिए अगर मुझे भी कुछ करना पड़ा तो मैं उसके लिए भी तैयार हूं. मैं एक समरसता मिशन से भी जुड़ी हुई हूं, जो 12 राज्यों में है और उत्तराखंड के राज्यपाल उसके राष्ट्रीय संयोजक हैं. मैं इस मिशन में मध्यप्रदेश की संरक्षक हूं और वहीं कितने ऐसे लोग हैं जो शहीद होते हैं और मैं उनका साथ देती हूं. उन्हीं के लिए मिशन के साथ जुड़ कर उनके घर की, बच्चों का, माता-पिता का साथ देती हूं. मैं उनके दुख को समझ सकती हूं. क्योंकि शहीद की पत्नी का शहीद के परिवार का दुख वही ज्यादा समझ सकता है जिस पर बीती हो."
बेटी की जिंदगी में पिता की कमी महसूस होने पर कही ये बात
बेटी की जिंदगी में पिता की कमी महसूस होने के बारे में बात करते हुए उन्होंने रोते हुए कहा, "जब कभी पैरेंट्स मीटिंग में भी जाते थे तो बच्चे को भी पिता की कमी महसूस होती थी. जब करवाचौथ होता था तो मुझे उनकी कमी महसूस होती थी. माता-पिता को भी अपना बच्चा याद आता है. बहनों को भी राखी पर भाई याद आता है. लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी गर्व है कि हां अगर जान गई है तो देश की ख़ातिर गई है. देश की ख़ातिर हमको भी कुछ करना पड़े तो हम ज़रूर करेंगे. क्योंकि हम ऐसे परिवार से आते हैं जिन्होंने एक सपना देखा कि मैं आर्मी में जाऊं. क्योंकि किसान परिवार से थे और उन्होंने सपना देखा था कि मैं आर्मी में जाऊं और देश की सेवा करूं. तो उनकी परंपरा भी हमें निभानी है. हमें आर्मी का सपोर्ट मिला, सरकार का सपोर्ट मिला और साथ में परिवार का भी सपोर्ट मिला. सास-ससुर का, माता-पिता का, सबका सपोर्ट मिला. और आज बच्ची इतनी बड़ी हो गई है. बच्ची का भी सपोर्ट है. बच्ची बिल्कुल उन्हीं के जैसी दिखती है. प्रकृति ने बेटी बनाया है, लेकिन चाल ढाल चेहरा बिल्कुल अपने पापा जैसा दिया है".