उत्तराखंड के जोशीमठ के मकानों में मोटी-मोटी दरारें आने और प्राकृतिक आपदा के पीछे लोग एनटीपीसी के हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को एक बड़ा कारण मान रहे हैं. इस प्रोजेक्ट्स को बंद कराने की मांग भी हो रही है. इस बीच केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने एनटीपीसी के प्रोजेक्ट का बचाव किया है. NDTV से खास बातचीत में आरके सिंह ने कहा कि जोशीमठ में धंसाव की घटनाओं को एनटीपीसी के पावर प्रोजेक्ट से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. जोशीमठ में प्राकृतिक आपदा एकदम से नहीं आई और न ही एनटीपीसी प्रोजेक्ट से इसका कोई कनेक्शन है.
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने गुरुवार को कहा, "जोशीमठ के घरों में दरारें अनियोजित रूप से उभरीं. ये समस्या 70 के दशक में ही सामने आ गई थी. यानी 1975 से. एनटीपीसी परियोजना 2009 में शुरू हुई थी, जबकि समस्या दशकों पहले शुरू हुई थी. इसलिए समस्या इस परियोजना के कारण नहीं है." आरके सिंह ने स्विट्जरलैंड के दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मौके पर एक खास इंटरव्यू में ये बातें कही.
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री का बयान एनटीपीसी के लिए अब तक का सबसे बड़ा समर्थन है. एनटीपीसी ने पिछले सप्ताह कहा था कि इसके सुरंग निर्माण और अन्य कार्यों को लगभग 20,000 लोगों की आबादी वाले जोशीमठ के घरों में दरारों के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
जोशीमठ को लेकर स्थानीय लोगों के अत्यधिक दबाव में उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने कहा है कि वह जांच करेगी कि जोशीमठ में धंसावके लिए एनटीपीसी जिम्मेदार थी या नहीं. दरअसल, स्थानीय लोगों का आरोप है कि 520 मेगावाट की तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना के लिए 12 किलोमीटर लंबी सुरंग खोदने से इलाके में धंसाव और गहरा गया. जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति (जेबीएसएस) और स्थानीय लोगों के एक दबाव समूह ने इस प्रोजेक्ट्स को रद्द करने की मांग की है.
केंद्रीय मंत्री ने तथ्यों का हवाला देते हुए कहा कि एनटीपीसी प्रोजेक्ट साइट के पास के गांव में कोई असर नहीं हुआ है. बल्कि इस क्षेत्र में कई दशकों से ऐसी समस्याएं हैं. हालांकि, जोशीमठ के शीर्ष जिला अधिकारी हिमांशु खुराना ने कहा कि एनटीपीसी प्लांट पर काम अब बंद हो गया है और केंद्र और राज्य सरकारों ने इस प्लांट के नुकसान के आरोपों पर ध्यान दिया है.
खुराना ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, 'कई सरकारी एजेंसियां और संस्थान जैसे कि भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण (जीएसआई), राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान इस मुद्दे पर अध्ययन कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि वे एक एक्सपर्ट ओपिनियन के साथ आएंगे. हम विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई करेंगे."
बता दें कि जोशीमठ में लगभग 700 इमारतों में दरारें आई हैं. अब तक हजारों लोगों को वहां से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है. पिछले हफ्ते अधिकारियों ने खतरनाक तरीके से पीछे की तरफ झुक गए दो होटलों को ढहा दिया है.
ये भी पढ़ें:-
जोशीमठ भू-धंसाव: आंदोलनकारियों ने मोदी को पत्र लिखा, नगर की रक्षा के लिए महायज्ञ शुरू