J&K और हरियाणा में 'एकला चलो रे' के बाद आखिर झारखंड में क्यों बदली रणनीति, समझिए BJP का SWOT एनालिसिस

झारखंड विधानसभा चुनाव में BJP जातीय समीकरण को साधना चाहती है. इसके लिए आदिवासी वोट पर फोकस किया जा रहा है. उसके लिए BJP के पास 3 चेहरे हैं- अर्जुन मुंडा, बाबू लाल मरांडी और चंपई सोरेन. जबकि BJP के पास OBC नेतृत्व में रिक्तता है, क्योंकि रघुवर दास को राज्यपाल बनाकर ओडिशा भेज दिया गया है

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नई दिल्ली/रांची:

झारखंड की 24 जिलों की कुल 81 विधानसभा सीटों (Jharkhand Assembly Elections 2024) के लिए चुनाव आयोग (EC) ने मंगलवार को विधानसभा चुनाव 2024 का ऐलान कर दिया है. राज्य में 2 फेज में 13 नवंबर और 20 नवंबर को वोटिंग होनी है. 23 नवंबर को रिजल्ट आएगा. राज्य में अभी झारखंड मुक्ति मोर्च (JMM) की अगुवाई में महागठबंधन की सरकार है. हेमंत सोरेन (Hemant Soren) मुख्यमंत्री हैं. भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस आदिवासी बहुल राज्य में फिर से सरकार बनाने की कोशिश में लगी है. BJP ने हाल में संपन्न हुए जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ा था. पार्टी 2019 में हुए झारखंड चुनाव में भी अकेले उतरी थी. लेकिन इस बार BJP किसी ओवर कॉन्फिडेंस में नहीं रहना चाहती. पार्टी  AJSU और नीतीश कुमार की JDU के साथ गठबंधन की संभावनाओं पर बात कर रही है. यहां तक की सीट शेयरिंग फॉर्मूला भी तैयार है. हालांकि, इस पर फाइनल फैसला लेना बाकी है.

आइए समझते हैं कि जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनावी रण में अकेले उतरने वाली BJP को झारखंड में आखिर गठबंधन की क्यों जरूरत पड़ रही है? ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन यानी AJSU और JDU के अगर गठबंधन हुआ, तो सीट शेयरिंग फॉर्मूला क्या होगा? झारखंड में BJP का कमजोर और मजबूत पक्ष क्या है?:-

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झारखंड के पिछले चुनाव में BJP और AJSU का गठबंधन नहीं हो पाया था. क्योंकि AJSU 11-12 सीटें मांग रही थी. BJP इतनी सीटें देने को तैयार नहीं थी. BJP चुनाव हार गई. नतीजों के बाद BJP का आकलन था कि AJSU से गठबंधन नहीं होने से पार्टी को नुकसान हुआ है. ओवर कॉन्फिडेंस उसे ले डूबा. इस बार BJP का खुद का आकलन है कि उसे राज्य में 5 साल की सत्ता विरोधी लहर यानी एंटी इंकमबेंसी का फायदा मिल सकता है. इसलिए पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. BJP ने 'एकला चलो रे' की पॉलिसी को फिलहाल साइड में रख दिया है.

जातीय समीकरण को साधने में जुटी BJP
झारखंड विधानसभा चुनाव में BJP जातीय समीकरण को साधना चाहती है. इसके लिए आदिवासी वोट पर फोकस किया जा रहा है. उसके लिए BJP के पास 3 चेहरे हैं- अर्जुन मुंडा, बाबू लाल मरांडी और चंपई सोरेन. जबकि BJP के पास OBC नेतृत्व में रिक्तता है, क्योंकि रघुवर दास को राज्यपाल बनाकर ओडिशा भेज दिया गया है. इसलिए BJP को लगता है कि सहयोगियों के साथ चुनाव लड़ने से इस समीकरण को भी साधा जा सकता है. 

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क्या है BJP की रणनीति?
BJP झारखंड में NDA यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के तौर पर चुनाव लड़ रही है. इससे वो NDA में मजबूती और सहयोगी पार्टियों के बीच एकता का मैसेज देना चाहती है. सीट शेयरिंग के लिए AJSU और JDU से बात की जा रही है. इसके अलावा चिराग पासवान से बात हो रही है कि उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) यानी LJP(R) अलग से चुनाव न लड़े. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, BJP इस बार झारखंड में 68 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. AJSU के 1-2  उम्मीदवारों को BJP अपनी टिकट पर चुनाव लड़ा सकती है, जबकि JDU को 2 सीटें दी जा सकती है.

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BJP शासित असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा झारखंड चुनाव के को-इंचार्ज हैं. उन्होंने कहा कि BJP का केंद्रीय नेतृत्व सीट शेयरिंग को लेकर आखिरी फैसला लेगा. सरमा ने कहा कि चिराग पासवान की पार्टी से भी बात की जा रही है.

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झारखंड में BJP का SWOT एनालिसिस?
झारखंड चुनाव को लेकर BJP का SWOT एनालिसिस यानी Strengths (क्षमता), Weaknesses (कमजोरियां), Opportunities (अवसर) और Threats (खतरे) का विश्लेषण समझते हैं:-

क्षमता
-झारखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा समेत अन्य BJP नेताओं का आक्रामक चुनावी अभियान है. उन्होंने वोटर्स को आकर्षित करने के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं का वादा किया है. BJP ने 2014 के चुनाव में 31.8 प्रतिशत वोट के साथ 37 सीट जीती थीं, लेकिन 2019 में ये घटकर 25 रह गईं. 

-इस बार BJP पुरानी सहयोगी AJSU पार्टी के साथ गठबंधन की कोशिश में लगी है. 2019 के इलेक्शन में 25 सीट के बावजूद BJP को 33.8 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि JMM को 19 प्रतिशत वोट मिले थे. JMM ने 30 सीटें जीती थीं.

-BJP बांग्लादेशी घुसपैठ और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर अपना प्रचार अभियान केंद्रित कर रही है, जिसमें JMM के नेतृत्व वाले गठबंधन के नेताओं के यहां ED और CBI की छापेमारी का हवाला दिया जा रहा है. इनमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी शामिल हैं, जिन्होंने कथित भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पांच महीने जेल में बिताए थे. 

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-BJP राज्य में हजारों करोड़ रुपये की परियोजनाओं का अनावरण करके अपने विकास के मुद्दे को भुनाना चाहती है. पार्टी अपनी रणनीति के तहत कानून-व्यवस्था के मुद्दों, महिलाओं के खिलाफ अपराध और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को भी उजागर कर रही है.

-JMM नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन हाल ही में BJP में शामिल हुए हैं. उनकी आदिवासी पट्टी में काफी पकड़ है. सिंहभूम (ST) निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की एकमात्र सांसद गीता कोड़ा ने भी BJP का दामन थाम लिया. इनके अलावा, जामा विधायक सीता सोरेन, बरकट्ठा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक अमित कुमार यादव और झारखंड में NCP के एकमात्र विधायक कमलेश सिंह भी भगवा पार्टी में शामिल हो गए.

कमजोरियां
-वोटर्स JMM के नेतृत्व वाले गठबंधन से प्रभावित हो सकते हैं, जिसने कथित भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद राज्य में हाल में पैदा हुए राजनीतिक संकट के लिए BJP को दोषी ठहराया है. सोरेन की पत्नी कल्पना औपचारिक रूप से JMM में शामिल हो गईं. गांडेय विधानसभा से उपचुनाव जीत चुकी हैं. वह एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरी हैं.

-BJP की आंतरिक कलह और नेताओं के बीच समन्वय की कमी चुनाव में नुकसान पहुंचा सकती है.

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अवसर
-भ्रष्टाचार और घुसपैठ के आरोपों का सामना कर रहे प्रतिद्वंद्वी के सामने भाजपा को विधानसभा की अधिकतर सीटें जीतने का मौका मिल सकता है.

खतरे
- राज्य विधानसभा की 81 सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं. विपक्षी गठबंधन ‘INDIA' हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को लेकर ‘विक्टिम कार्ड' खेल सकता है, जो आदिवासी समुदाय से हैं.

- झारखंड मंईया सम्मान कार्यक्रम और अबुआ आवास योजना समेत JMM नेताओं का आक्रामक प्रचार और कल्याणकारी कार्यक्रम भी BJP के लिए चिंता की बात हो सकती है.

-BJP के भीतर की अंदरूनी कलह पार्टी के लिए खेल बिगाड़ सकती है.

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JMM-कांग्रेस का मजबूत पक्ष?
-ED हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का मुद्दा आदिवासी भावनाओं को जगा सकता है, जहां JMM-कांग्रेस आदिवासी मतदाताओं के साथ ‘विक्टिम कार्ड' खेल रही हैं. आदिवासी वोटर्स बड़े पैमाने पर मानते हैं कि मुख्यमंत्री को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया गया था. सत्तारूढ़ गठबंधन भी BJP पर उनकी गिरफ्तारी को लेकर आरोप लगा रहा है.

- सत्तारूढ़ गठबंधन ने लोगों को सीधे लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से कई कल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं. जैसे महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली मंईया सम्मान योजना, आपकी योजना, आपकी सरकार-आपके द्वार, सार्वभौमिक पेंशन, खेल और शिक्षा योजनाएं, अबुआ आवास और खाद्य सुरक्षा योजनाएं. ये पहल मतदाताओं के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ा सकती हैं.

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-JMM के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने नवंबर 2020 में झारखंड विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर जनगणना में सरना को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने की मांग की. JMM ने एक अलग सरना धार्मिक संहिता की मान्यता के लिए केंद्र के हस्तक्षेप की मांग की है.

- ‘INDIA' गठबंधन के सहयोगी 1932-भूमि रिकॉर्ड आधारित मूल निवास नीति पर BJP को घेरने की कोशिश करेंगे, क्योंकि राज्य सरकार ने 1932-खतियान आधारित मूल निवास नीति पारित की है, जो राज्यपाल के पास पेंडिंग में है.

JMM-कांग्रेस का कमजोर पक्ष?
-पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, विधायक सीता सोरेन, राज्य में कांग्रेस की एकमात्र सांसद गीता कोड़ा और कुछ अन्य प्रमुख नेताओं के BJP में जाने का नुकसान हो सकता है.
- ‘INDIA' गठबंधन के सदस्यों के बीच अंदरूनी खींचतान भी JMM-कांग्रेस का एक कमजोर पक्ष है. यह गठबंधन अभी तक साझेदारों के बीच सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप नहीं दे पाई है.
- कांग्रेस और JMM के बीच मतभेद समय-समय पर स्पष्ट होते रहे हैं. इससे पहले 12 असंतुष्ट विधायकों में से 8 झारखंड मंत्रिमंडल में नए चेहरों को शामिल करने की मांग को लेकर दिल्ली पहुंचे थे.

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