लाल, नीली, पीली, मां की साड़ी... जाह्नवी ही नहीं हर बेटी का इमोशन है ये

मां की साड़ी मजह एक कपड़ा नहीं बल्कि यादों का वो पुलिंदा है, जिसमें ढेर सारे प्यार और आशीर्वाद के साथ ही हजारों यादें छिपी होती हैं.जान्हवी कपूर भी अक्सर मां श्रीदेवी की साड़ियां फ्लॉन्ट करती नजर आती हैं.

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मां की साड़ी से बेटी का इमोशन जुड़ाव.
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  • जान्हवी कपूर ने अपनी मां श्रीदेवी की आठ साल पुरानी नीली साड़ी पहनी, जिसकी चर्चा जोरों पर है.
  • मां की साड़ी केवल कपड़ा नहीं, बल्कि बेटी के लिए प्यार, आशीर्वाद और यादों का अनमोल संग्रह होती है.
  • बेटियां मां को देखकर श्रृंगार और सजावट सीखती हैं, इसलिए मां की साड़ी उनके लिए खास होती है.
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नई दिल्ली:

बेटियां तो मां सी होती हैं. मां की साड़ी से ज्यादा खास उनके लिए कुछ भी नहीं होता. शायद तभी जान्हवी कपूर खुद को मां श्रीदेवी की उस अलमारी की ओर जाने से रोक नहीं पातीं, जिसमें उनकी रंग-बिरंगी और खूबसूरत साड़ियां रखी हैं. श्री देवी की 8 साल पुरानी वो नीली साड़ी एक बार फिर से चर्चा में है, जिसे पहनकर कभी वह गजब की लगी थीं. बेटी जाह्नवी ने मां की उस प्यारी सी साड़ी को फिर से पहनकर ये बता दिया है कि बेटियां मां की ही परछाई होती हैं. मां की साड़ी के साथ बेटी का भावात्मक जुड़ाव होता है. मां की साड़ियों को निहारते और खेल-खेल में उसे ओढ़कर ही वह बचपन से लेकर जवानी की दहलीज पर पहुंचती है.

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 "लकड़ी का वो पुराना बक्सा, जिसमें रखी है मां की साड़ी

रंग-बिरंगी, सितारों से सजी, मुझको लगती है बहुत प्यारी"

ये साड़ी नहीं मां का संसार है, इसके हर धागे में उनका का प्यार है."

मां की साड़ी मजह एक कपड़ा नहीं बल्कि यादों का वो पुलिंदा है, जिसमें ढेर सारे प्यार और आशीर्वाद के साथ ही हजारों यादें छिपी होती हैं. पाई-पाई बचाकर उस साड़ी को खरीदने से यादगार पलों में उसे पहनने तक, एक बेटी मां की साड़ी के उस सफर को तब से देखती है, जब उसमें इसे समझने की समझ भी नहीं होती. लेकिन नन्हीं सी हर बेटी ये जरूर सोचती रहती है कि कब मां उसे उतारकर बक्से में रखे और वह चुपके से उसे निकालकर ओढ़ ले.

"मां की साड़ी हाथ में आई तो

आंखें बरबस ही नम हो आईं

याद आया कितना कुछ!"

बेटियां को मां की परछाई यूं ही नहीं कहा जाता है. वह मां को देखकर ही श्रृंगार करना सजना संवरना सीखती हैं. जब मां मलमल की उस सुर्ख लाल साड़ी को पहनती है तो वह साड़ी बेटी का भी सपना बन जाती है. वह भी सोचने लगती है कि मां की साड़ी मुझे कब मिलेगी. लेकिन मां तो चली गई रह गई तो बस उसकी वो लाल साड़ी. साड़ी के साथ कभी न भूलने वाली वो अनगिनत यादें, जिनको देखकर आंखें न चाहते हुए भी नम हो उठीं. ऐसा लगता है कि वक्त फिर से वहीं लौट जाए और मां फिर से अपनी उसी लाल साड़ी में बड़ी सी बिंदी लगाए खिलखिलाए.

"मेरी मां की साड़ी

उनकी खुशबू, वो बचपन की यादें

इससे सुंदर एहसास और कुछ भी नहीं"

साड़ी में मां की कहानी और अनगिनत यादें छिपी होती हैं जो बेटी के लिए अनमोल उपहार से कम नहीं है. वह जब उस साड़ी को पहनती है तो उसे मां के करीब होने और उनकी यादों का हिस्सा बनने का एहससा होता है. शायद तभी बहुत सी बेटियां अपने खास पलों को और खास बनाने के लिए मां की सालों पुरानी साड़ी पहनती हैं. आपको ईशा अंबानी की शादी को वो सफेद- लाल डिजाइनर लहंगा तो याद ही होगा, जिसे उनकी मां नीता अंबानी की 35 साल पुरानी साड़ी का एक हिस्सा जोड़कर बनाया गया था. ईशा के लिए वह सिर्फ लहंगा नहीं बल्कि मां-बेटी का भावात्मक जुड़ाव का प्रतीक था.उनकी तरह ही जान्हवी भी अक्सर खास मौकों पर मां श्रीदेवी की साड़ियां पहने नजर आती हैं.

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