जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा को लेकर सरकार बना रही है नई रणनीति, जमीन से लेकर आसमान तक होगी निगरानी

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार "कश्मीर घाटी से नज़र नहीं हटा सकती, लेकिन साथ ही, हमें जम्मू क्षेत्र को भी सुरक्षित करने की भी ज़रूरत है."

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नई दिल्ली:

केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) की सुरक्षा के लिए नए सुरक्षा मैट्रिक्स तैयार कर रही है. हाल के दिनों में जम्मू के क्षेत्र में हुए आतंकी वारदातों के बाद सरकार सुरक्षा को लेकर अर्लट है. गौरतलब है कि पिछले दो महीनों में आतंकी वारदातों में बढ़ोतरी हुई है. खासकर पीर पंजाल के दक्षिणी इलाकों में कई वारदात हुए हैं. बताते चलें कि पिछले तीन साल की तुलना में इस साल सुरक्षा बलों की संख्या दोगुनी हो गई है. एनडीटीवी के को मिले डेटा के अनुसार इस साल 17 सुरक्षाकर्मी और इतने ही नागरिक मारे गए हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनडीटीवी को बताया कि सैन्य हताहतों की बढ़ती संख्या बलों की प्रमुख चिंता है. 

घुसपैठ को रोकना पहली चुनौती
विभिन्न एजेंसियों द्वारा सुरक्षा ऑडिट से संकेत मिलता है कि आतंकवादी - गाइडों की मदद से, जिनमें से कुछ स्थानीय हैं. घाटी में नियंत्रण रेखा और जम्मू क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करने के लिए विभिन्न मार्गों का उपयोग करते हैं. लगभग दो दर्जन सेक्टरों की पहचान की गई है जहां घुसपैठ की घटनाएं होती रही हैं.

इसके अलावा, ड्रोन के जरिए हथियारों की तस्करी की जा रही है या उन्हें गिराया जा रहा है. सरकार ने सीमाओं पर बाड़ लगाने की परियोजना शुरू कर दी है, लेकिन जम्मू में अब तक 180 किमी में से केवल 70 किमी पर ही बाड़ लगाई गई है, जबकि फ्लड लाइटनिंग का काम केवल 40 किमी में ही पूरा हो सका है. चुनौती में यह तथ्य शामिल है कि बरसात के मौसम में हाथी घास वाली नदी के रूप में चिह्नित क्षेत्रों में गश्त करना मुश्किल है.

अब, बीएसएफ या सीमा सुरक्षा बल की दो बटालियनों के 2,000 कर्मियों वाले सैनिकों को ओडिशा से हवाई मार्ग से भेजा गया है. वे सांबा सेक्टर में रहेंगे और जम्मू-पंजाब सीमा पर खामियों को दूर करेंगे. संयोग से, यह तब हुआ जब जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक आरआर स्वैन ने पंजाब को जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ के मुख्य मार्गों में से एक के रूप में पहचाना. 

सड़कों को सुरक्षित करने पर बल
सेना को खुफिया जानकारियों से पता चला है कि आतंकवादी राजमार्गों पर भी हमले कर सकते हैं. सुरक्षा बल इसे लेकर बेहद गंभीर हैं. यही कारण है कि सरकार ने स्थानीय पुलिस के साथ सीआरपीएफ, या केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को तैनात करने का निर्णय लिया है. सभी सैन्य टुकड़ियों की आवाजाही आम तौर पर राजमार्गों पर होती रहेगी. एक अधिकारी ने एनडीटीवी को बताया कि राजमार्गों और आसपास के इलाकों की मैपिंग की जा रही है और आतंकवादियों और/या समर्थकों की गतिविधियों का पता लगाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है. 

लॉजिस्टिक्स पर ध्यान दे रही है सरकार
बेहतर संचार और लॉजिस्टिक्स भी सरकार के लिए प्राथमिकता वाला क्षेत्र है. गृह मंत्रालय में हुई बैठकों में जमीनी सुरक्षा एजेंसियों को इन प्रणालियों को बढ़ाने के लिए कहा गया है. सरकार एक वायुरोधी सुरक्षा ग्रिड चाहती है और क्षेत्र के किसी भी क्षेत्र में किसी भी गतिविधि का पता चलने पर उसकी सूचना दी जाए और त्वरित प्रतिक्रिया दी जाए. अधिकारी ने कहा, बेहतर सहयोग से हताहतों की संख्या भी कम की जा सकती है. 

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 असम राइफल्स की जम्मू में होगी तैनाती
असम राइफल्स को जम्मू में तैनात किया जाना है. यह पहली बार नहीं है कि यह विशिष्ट बल जम्मू-कश्मीर में काम करेगा क्योंकि उन्हें अमरनाथ यात्रा के दौरान सुरक्षा व्यवस्था में शामिल किया गया था. हालांकि, अब वे नई तैनाती में भी शामिल होंगे और नए सुरक्षा ग्रिड में सक्रिय तौर पर इन्हें शामिल किया जाएगा. सेना के परिचालन नियंत्रण के तहत कम से कम 1,500 सैनिकों को तैनात किया जाएगा. 

पैरा-कमांडो भी होंगे तैनात
सरकार की योजना है कि विदेशी मूल के आतंकवादियों से निपटने के लिए एक बार फिर पैरा-कमांडो को तैनात करने की योजना है. अनुमान के मुताबिक, लगभग 80 ऐसे आतंकवादियों का एक समूह पीर पंजाल के ऊपरी इलाकों में छोटे-छोटे समूहों में घूम रहा है. पैरा-कमांडो की नजर इनपर रहेगी. संसाधन को बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार ने 200 एपीवी, या कवच-संरक्षित वाहनों के उपयोग को मंजूरी दे दी है. यह 5 जुलाई को कठुआ जिले में एक सैन्य काफिले पर दोहरे हमले के बाद हुए हमले के बाद हुआ है जिसमें पांच सैनिक मारे गए थे और पांच अन्य घायल हो गए थे. 

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ह्यूमन इंटेलिजेंस पर रहेगा फोकस
पिछले पांच वर्षों में सबसे सफल आतंकवाद-रोधी अभियान तकनीकी खुफिया-आधारित जानकारी के कारण थे. हालांकि, एनआईए का मानना ​​है कि आतंकवादी अब सुरक्षा एजेंसियों को गुमराह करने के लिए एन्क्रिप्टेड ऐप्स का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह तकनीक के उपयोग को चुनौती देने के लिए हो रहे हैं. 

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