20,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर दुनिया में सबसे ऊंचा जंग का मैदान है. यहां भारतीय सेना के जवानों को जमा देने वाली बर्फीली और सर्द हवा से जूझना पड़ता है. यहां पीने के पानी के लिए भी सैनिकों को जद्दोजहद करनी पड़ती है. ऐसे में लेह में स्थित रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की एक लैब सैनिकों की कुछ मुश्किलों को आसान करने में जुटी हुई है. लेह में जहां सर्दियों के मौसम में घास का एक तिनका नजर नहीं आता, वहां डीआरडीओ की लैब की बदौलत सैनिकों के लिए ताजे फल और सब्जियां मुहैया कराई जा रही हैं.
डीआरडीओ की एक छोटी, लेकिन अनूठी प्रयोगशाला भारतीय सशस्त्र बलों और लद्दाख की स्थानीय आबादी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम कर रही है. DRDO की इस लैब में ऐसी तकनीक विकसित की गई है, जिससे लेह में भी अच्छी कृषि की जा सके. इस तकनीक से सौर ऊर्जा का उपयोग कर ठंड में अच्छी कृषि की जा सकती है. वहीं, लैब हीटिंग सॉल्यूशन खोजने के लिए सीधे सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करके मदद कर रही है. सियाचिन ग्लेशियर पर लड़ने वाले भारतीय सैनिकों की भूख को दूर करना, इस लैब की एक बड़ी उपलब्धि है.
क्या-क्या कर रही DRDO की लैब
- DRDO की लैब 20,773.70 करोड़ रुपये की कुल अनुमानित लागत पर लद्दाख में 13 गीगावॉट सौर विद्युत संयंत्र स्थापित करने में मदद कर रही है.
- भारतीय सेना के लिए शून्य डिग्री से नीचे के तापमान में हीटिंग सॉल्यूशन प्रदान करने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है.
- डिफेंस लैब ने यह सुनिश्चित किया है कि लद्दाखी और भारतीय सैनिकों को ताजे फल और सब्जियां मिलें.
- युद्ध में हथियारों को फिट रखने के लिए सौर ऊर्जा से गर्म किए गए हैंगरों पर शोध किया जा रहा है.
लेह में डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च (डीआईएचएआर) की स्थापना 1962 में 'एल' सेक्टर में तैनात सशस्त्र बलों की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए की गई थी. स्थापना के बाद से संस्थान ताजा खाद्य उत्पादन के संबंध में लद्दाख को उचित रूप से हरित और आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनुसंधान एवं विकास आधारित योगदान दे रहा है. इसलिए, वर्षों से संस्थान रणनीतिक लद्दाख क्षेत्र में तैनात सैनिकों के भोजन, स्वास्थ्य और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने की दिशा में प्रयास कर रहा है.