जगन्नाथ मंदिर पर हमला करने वाले हिंदू से मुस्लिम बने अफगान जनरल काला पहाड़ की कहानी क्या है?

Kala Pahad attack on Jagannath temple : काला पहाड़ इतिहास के सबसे क्रूर लोगों में से एक माना जाता है. उसकी क्रूरता सिर्फ लोगों तक सीमित नहीं थी. वह मंदिरों को भी नष्ट करता था. जानें कौन था काला पहाड़ और क्यों करता था ऐसा...

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Afghan general Kala Pahad : काला पहाड़ ने जगन्नाथ मंदिर पर हमला कर उसे नष्ट करने की कोशिश की थी.

Kala Pahad attack on Jagannath temple : काला पहाड़ इतिहास का सबसे बदनाम किरदार रहा है. इतना बदनाम कि उसके बारे में जो भी लिखा गया, उसमें बदनामी के सिवा कुछ भी नहीं है. वो जहां जाता था, लोगों का कत्लेआम करता था. मंदिरों को लूटता था. यहां तक की उसने पुरी के ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर की अपार संपत्ति भी लूटी थी और जगन्नाथ मंदिर को भी नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. कोणार्क का भव्य सूर्य मंदिर आज अगर वीरान हालत में पड़ा नजर आता है तो इसके पीछे भी काला पहाड़ की काली करतूत है. असम में काला पहाड़ ने मां कामाख्या के पौराणिक मंदिर में भी जमकर लूटपाट की और जाते-जाते वहां भी अपनी हैवानियत के निशान छोड़ गया. इसके अलावा भी उसने कई मंदिरों में जमकर लूटपाट की और उन्हें नष्ट करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. इन बातों का उल्लेख मुगल साम्राज्य के रिकॉर्ड में किया गया है. जगन्नाथ मंदिर के रिकॉर्ड में भी काला पहाड़ के मंदिर पर हमले का रिकॉर्ड है. 

कौन था काला पहाड़? 

काला पहाड़ जन्म से एक हिंदू बताया जाता है. इसके असली नाम को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ इसे कालाचंद राय और कुछ राजीव लोचन राय बताते हैं. हालांकि, सभी इतिहासकारों का दावा है कि वह ब्राह्मण था. वह कलिंग (आज का ओडिशा) गजपति मुकंददेव की सेना में सेनापति था. वह बहुत बड़े शरीर का और ताकतवर था. उस समय अकबर का भारत के कई राज्यों पर शासन था. गजपति मुकंददेव की दोस्ती भूरीश्रेष्ट वंश के राजा रुद्रनारायण से थी. इनका शासन आज के बंगाल के हावड़ा, हुगली, बर्धवान, मिदनापुर जिले पर था. रुद्रनारायण की नौसेना बहुत मजबूत थी. रुद्रनारायण और कलिंग के राजा को बंगाल (आज के बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से) के शासक सुलेमान खान कर्रानी से डर था कि कहीं वह हमला न कर दे. अकबर भी चाहता था कि कर्रानी पर ये दोनों हमला कर दें. कर्रानी भी अकबर को टैक्स दिया करता था, लेकिन वह भी इस अफगानी शासक की बढ़ती ताकत से परेशान था. अकबर की सहमति से दोनों देशों के सेनाओं ने कर्रानी पर हमला करने की रणनीति बनाई और काला पहाड़ को दोनों राज्यों की सेना का सेनापति बना दिया. इस लड़ाई में कलिंग और रुद्रनारायण जीत गए. ईनाम में काला पहाड़ को इन दोनों ने कई जिलों का प्रशासक बना दिया. 

कैसे हुआ कर्रानी की बेटी से प्यार?

सुलेमान खान कर्रानी ने संधि के लिए कलिंग और रुद्रनारायण को अपने राज्य बुलाया तो इन दोनों ने काला पहाड़ को भेज दिया. यहीं उसकी बेटी गुलनाज से काला पहाड़ की मुलाकात हुई और वह उसके प्रेम में पागल हो गया. हालांकि, दावा यह भी किया जाता है कि कर्रानी ने जानबूझकर अपनी बेटी को काला पहाड़ को काबू में करने को कहा था. उसकी मंशा थी कि वह काला पहाड़ को अपने खेमे में ले आए और फिर अपनी हार का बदला ले. यह भी दावा किया जाता है कि कर्रानी ने काला पहाड़ के गुलनाज से शादी के प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर उसे अपने और वश में कर लिया.   

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कैसे हुआ बागी?

काला पहाड़ लौटकर कलिंग गया तो गुलनाज से शादी की इच्छा कलिंग के राजा को बताई. राजा नाराज हो गए और उन्होंने उसे ऐसा न करने के लिए पहले तो समझाया और फिर हिदायत भी दी. मगर काला पहाड़ पर तो गुलनाज का जादू चढ़ चुका था. उसने सोचा कि इस्लाम कुबूल कर गुलनाज से निकाह कर लेगा और बाद में फिर हिंदू बन जाएगा. उसने सभी के मना करने के बाद भी निकाह कर ली. मगर कलिंग के राजा सहित उसके सभी सगे-संबंधियों ने उससे रिश्ता तोड़ लिया. पहले तो काला पहाड़ ने सभी से मिन्नतें की और जब कोई नहीं माना तो वह कर्रानी के पास चला गया और उसकी सेना का सेनापति बन गया. 

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फिर शुरू हुआ बदले का सिलसिला

काला पहाड़ को कर्रानी ने खूब भड़काया और अपने राज्य में भी उसकी बेइज्जती के किस्से प्रचारित करवाए. इसके बाद काला पहाड़ की अगुवाई में सेना को कलिंग पर हमले के लिए भेज दिया. कर्रानी का बेटा बायाजिद भी उसके साथ गया था. काला पहाड़ ने मुकुंददेव को हराया. उसने कलिंग के लोगों को लूटा और फिर जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क मंदिर सहित कई मंदिरों को न सिर्फ लूटा, बल्कि नष्ट करने का प्रयास किया. इसके बाद भी उसकी आग शांत नहीं हुई और उसने कई हिंदू राजाओं पर हमले किए. वह हिंदुओं को अपना दुश्मन समझने लगा. अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए हिंदुओं को इस्लाम कुबूल करवाने के लिए प्रताड़ित करने लगा और मंदिरों को लूटने और तबाह करने लगा. बताया जाता है कि 1583 ई. में अकबर की फौजों से हार गया और मारा गया.

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