नई दिल्ली: उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि लोकतंत्र के तीन प्रमुख अंगों कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के बीच मुद्दे होंगे लेकिन उन्हें व्यवस्थित तरीके से सुलझाना होगा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विधायिका के साथ कुछ 'होमवर्क' करने की आवश्यकता है क्योंकि चर्चा और संवाद को व्यवधानों की जगह लेनी चाहिए.
आपातकाल लगाए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने इसे भारत के संवैधानिक इतिहास का ‘‘सबसे काला एवं शर्मनाक काल'' बताया. उन्होंने कहा, ‘‘हमारी शासन व्यवस्था में कभी भी ऐसे लोग नहीं थे जो इस स्तर तक गए हों कि लाखों लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया जाए और उन्हें जेल में डाला जाए.'' धनखड़ ने कहा कि यही वह समय था जब हमें उम्मीद थी कि राज्य का एक अन्य अंग ‘न्यायपालिका' ऐसे अवसर पर आगे आयेगी.
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन दुर्भाग्य से न्यायपालिका के लिए भी यह सबसे काला समय था. इस देश के नौ उच्च न्यायालयों ने एक स्वर में एक रुख अपनाया - आपातकाल हो या न हो, लोगों के मौलिक अधिकारों को रोका नहीं जा सकता, वे हमेशा जीवित हैं.''
उप राष्ट्रपति के मुताबिक, लोग चाहते थे कि काश, एडीएम, जबलपुर मामले (जो 1975 में भारत में लगाए गए आपातकाल से उत्पन्न हुआ) में उच्चतम न्यायालय ने नौ उच्च न्यायालयों के आदेश को पलटा नहीं होता. उन्होंने कहा कि उस फैसले का हिस्सा रहे दो न्यायाधीशों ने बाद में सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त किया था. धनखड़ ने कहा, ‘‘लेकिन जब संवैधानिक पदों पर बैठे लोग असफल हो जाते हैं तो कोई अफसोस नहीं किया जा सकता. जब हम संवैधानिक प्राधिकारी की स्थिति में होते हैं, तो हमारे पास कोई बहाना नहीं होता है, हमारे पास भागने का कोई रास्ता नहीं होता है. हमें संविधान द्वारा हम पर किए गए विश्वास पर खरा उतरना होगा.''
उपराष्ट्रपति कानून मंत्रालय के ‘‘हमारा संविधान हमारा सम्मान'' अभियान की शुरुआत के लिए आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘ संविधान ने हमें सब कुछ दिया है. यदि तीनों संस्थाएं - कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका - अपनी निर्धारित सीमा में रहें और उसके अनुसार कार्य करें, तो भारत के प्रतिभाशाली लोग चमत्कार कर सकते हैं.''
धनखड़ ने कहा कि हर कोई कानून की पहुंच में है, लेकिन कुछ लोग भ्रम की स्थिति में हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन घटनाओं से दुखी हूं, जब सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट किया जाता है. हम कानून प्रवर्तन एजेंसियों से मुकाबला करते हैं और घोषणा करते हैं कि हम जीत गए हैं.''
उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र के तीनों अंगों के बीच हमेशा मुद्दे रहेंगे क्योंकि हम एक गतिशील दुनिया में रहते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मुद्दों को सुलझाना होगा, नियंत्रित करना होगा. उनका सार्वजनिक मंच पर होना जरूरी नहीं है. उन्हें व्यवस्थित तरीके से होना चाहिए. लेकिन विधायिका के साथ हमें कुछ होमवर्क करने की जरूरत है.'' राज्यसभा के सभापति ने कहा कि संसद और राज्य विधानसभाओं में व्यवधानों की जगह चर्चा को लाना होगा.
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