चंद्रयान-3 के बाद अगला कदम कौनसा? जानें- ISRO की टाइमलाइन में अब और क्या-क्या है?

चंद्रयान-3 को बनाने में चार साल का वक़्त लगा. इसरो के वैज्ञानिकों ने कोविड महामारी के दौरान भी इस प्रोजेक्ट पर काम जारी रखा. क़रीब एक हज़ार इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की टीम इस मिशन पर दिन-रात जुटी रही.

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो)

नई दिल्ली:

भारत का चंद्रयान-3 मिशन देश के अंतरिक्ष विज्ञान को एक नई दिशा में, एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा. चंद्रयान-1 से भारत ने ही सबसे पहले ये पता लगाया था कि चांद की सतह पर पानी भी मौजूद है. बाद के चंद्रयान-2 और अब ये मिशन उसी सबको आगे बढ़ाने की कोशिश है.

वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ नरेंद्र भंडारी ने कहा कि चंद्रयान-1 के ऑब्जेक्टिव को पूरा करने के लिए चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 बनाया गया. चंद्रयान-1 में हमने दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव पर पानी की खोज की थी. पानी का कितना वॉल्यूम और मिनरल है, इसको देखने के लिए चंद्रयान-2 बनाया गया. उसमें रोवर और लैंडर लगाया गया. चंद्रयान-1 में केवल ऑरबिटर था. ऑरबिटर अभी भी काम कर रहा है. वहीं यूज करके हमने चंद्रयान-3 के रोवर और लैंडर को भेजा है. लैंडर ने चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से कॉन्टेक्ट कर लिया है. अब जब ये लैंड करेगा तो पानी की खोज को आगे बढ़ाएगा.

मंज़िलें अभी और भी हैं. भारत सूर्य के अध्ययन की ओर भी एक मिशन पर आगे बढ़ रहा है. एक क्लाइमेट ऑब्ज़र्वेशन सैटलाइट INSAT-3DS लॉन्च करने वाला है. अंतरिक्ष में भारत अपने पहले मानव मिशन गगनयान की ओर भी बढ़ रहा है. इसके अलावा भारत और अमेरिका सिंथेटिक एपर्चर रेडार NISAR के लॉन्च की भी तैयारी है. तो ISRO की टाइमलाइन में आराम की कोई गुंजाइश नहीं हैं.

पीआरएल के निदेशक अनिल भारद्वाज ने बताया कि चंद्रयान-3 मिशन से जो जानकारियां मिलेंगी. फिर हम चंद्रयान-4 के बारे में बात करेंगे. ये इंडिया और जापान का मिशन है. वहां पर हमारा आइडिया है, हम उन रीजन में जाएं जहां सूर्य की किरणें नहीं पहुंचती है. इसका कारण है कि ये वो इलाके हैं, जहां हमें पानी की ज्यादा मात्रा मिल सकती है. इसका अध्ययन करने के लिए चंद्रयान-4 पर काम कर रहे हैं. अगर लैंडिंग सफल हो जाती है तो फिर हम अनेक प्रकार के मिशन के बारे में सोच सकते हैं.

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चंद्रयान-3 को बनाने में चार साल का वक़्त लगा. इसरो के वैज्ञानिकों ने कोविड महामारी के दौरान भी इस प्रोजेक्ट पर काम जारी रखा. क़रीब एक हज़ार इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की टीम इस मिशन पर दिन-रात जुटी रही.

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मिशन को पूरा करने में 700 करोड़ रुपये से भी कम लागत आई है. ये रकम हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म Oppenheimer को बनाने में आई लागत से भी कम है. Oppenheimer फिल्म बनाने में क़रीब 830 करोड़ रुपये लगे हैं और हाल ही में रिलीज़ हुई एक और फिल्म Barbie तो चंद्रयान-3 की लागत से क़रीब दोगुने, क़रीब 1200 करोड़ रुपये में बनी है. 

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ये हम सबके लिए गर्व की बात है कि भारत इस तरह के कई अंतरिक्ष मिशन पर काम कर रहा है और इसके बारे में सोच रहा है. हमें यकीन है कि बुधवार को अपनी गलतियों से सीखकर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर चंद्रयान-3 मिशन के तहत चांद की सतह पर सौफ्टली लैंड करेगा.

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