क्या राम मंदिर BJP को दिला रहा है वोट, अयोध्या की आसपास की 5 सीटों का पूरा गणित समझिए

लोकसभा चुनाव के पांचवे चरण में जिन सीटों पर चुनाव होगा उनमें फैजाबाद (अयोध्या) सीट भी शामिल है. अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद से यह पहला चुनाव है. इसके साथ ही कैसरगंज, लखनऊ, अमेठी और रायबरेली में भी इसी चरण में मतदान कराया जाएगा. आइए जानते हैं इन सीटों का सियासी गुणा-भाग.

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नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव (LokSabha Election 2024) के पांचवें चरण में उत्तर प्रदेश की 14 सीटों पर 20 मई को मतदान कराया जाएगा. इसमें फैजाबाद (अयोध्या) सीट भी शामिल है. अयोध्या में राम मंदिर (Ram Temple Ayodhya) बनने के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है. फैजाबाद के आसपास की कई सीटों पर भाजपा का कब्जा है. इनमें कैसरगंज, अमेठी और लखनऊ की सीट शामिल है.इस चरण में उत्तर प्रदेश में इन सीटों के अलावा  मोहनलाल गंज, जालौन, झांसी, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, बाराबंकी, रायबरेली और गोण्डा सीट पर मतदान कराया जाएगा.आइए जानते हैं कि फैजाबाद और उसके आसपास की सीटों का गणित क्या है.इन सीटों का इतिहास क्या रहा है.

राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहला चुनाव

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद फैजाबाद में यह पहला लोकसभा चुनाव हैं. इस सीट पर 2019 में भाजपा के लल्लू सिंह ने जीत दर्ज की थी.भाजपा ने एक बार फिर उन पर भरोसा जाताया है. वहीं इंडिया गठबंधन से समाजवादी पार्टी इस सीट पर चुनाव लड़ रही है. इस सामान्य सीट पर सपा ने अनुसूचित जाति के अवधेश प्रसाद को मैदान में उतारा है. वहीं बसपा के टिकट पर सच्चिदानंद पांडेय चुनाव मैदान में हैं. इंडिया गठबंधन में शामिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी इस सीट पर अपना उम्मीदवार उतार दिया है.उसकी टिकट पर अरविंद सेन यादव चुनाव लड़ रहे हैं.वे फैजाबाद से तीन बार सांसद रहे मित्रसेन यादव के बेटे हैं.साल 2019 के चुनाव में अरविंद सेन यादव के भाई आनंद सेन यादव सपा के उम्मीदवार थे.वो लल्लू सिंह से 65 हजार से अधिक वोटों से हार गए थे.

यह सीट पिछले दो बार से भाजपा के कब्जे में है. साल 2019 में भाजपा के लल्लू सिंह ने सपा के आनंद सेन यादव को 65 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था. भाजपा को जहां 48.7 फीसदी वोट मिले थे,वहीं सपा उम्मीदवार को 42.6 फीसदी वोट मिले थे. इसी तरह 2014 के चुनाव में लल्लू सिंह ने आनंद सेन यादव के पिता और सपा उम्मीदवार मित्रसेन यादव को दो लाख 82 हजार से अधिक वोटों के भारी अंतर से हराया था.वहीं 2009 के चुनाव में यह सीट कांग्रेस ने जीती थी.कांग्रेस के निर्मल खत्री ने सपा के मित्रसेन यादव को 54 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था.

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अगर 2024 की लड़ाई की बात करें तो भाजपा के लिए राह आसान नहीं दिखती है,क्योंकि 2014 की तुलना में उसकी जीत का अंतर 2019 में काफी घट गया था. यानी की सपा से उसे काफी चुनौती मिली.वहीं इस बार चुनाव में सीपीआई के आने से सपा के लिए मुश्किलें पैदा हो गई हैं. सीपीआई उम्मीदवार अरविंद सेन यादव 2019 के चुनाव में उम्मीदवार रहे आनंद सेन यादव के भाई हैं. राम मंदिर का मुद्दा भाजपा को वोट दिलाने में कामयाब होता है या नहीं, इसका पता तो चार जून के बाद ही चल पाएगा.

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क्या कैसरगंज में कायम रहेगा बृजभूषण शरण सिंह का दबदबा?

वहीं कैसरगंज सीट की चर्चा इस बार काफी हुई. कैसरगंज के सांसद और बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलावानों से बदसलूकी के आरोप लगे.इन आरोपों के बाद भाजपा ने इस बार उनका टिकट काटकर उनके बेटे करन भूषण सिंह को दे दिया. इस सीट से बृजभूषण सिंह लगातार तीन बार सांसद रह चुके हैं.साल 2009 के चुनाव में वो कैसरगंज से सपा के टिकट पर जीते थे.उन्होंने बसपा के सुरेंद्र नाथ अवस्थी को 72 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था.सपा को 34.7 और बसपा को 21.9 फीसदी वोट मिले थे.साल 2014 के चुनाव में वो एक बार फिर भाजपा में शामिल हो गए. इस बार उनकी जीत के अंतर में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया. 

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उन्होंने सपा के विनोद कुमार सिंह ऊर्फ पंडित सिंह को 78 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया. लेकिन वो अपना वोट शेयर बढ़ाने में कामयाब रहे.भाजपा को 40.4 फीसदी और सपा को 32.1 फीसदी वोट मिले.भाजपा ने 2019 के चुनाव में उन पर फिर भरोसा जताया. यह चुनाव सपा और बसपा ने मिलकर लड़ा था.कैसरगंज बसपा के खाते में गई थी.बृजभूषण शरण सिंह ने बसपा के चंद्रदेव राम यादव को दो लाख 61 हजार के अधिक वोटों के अंतर से हराया. इस बार बृजभूषण अपना वोट शेयर करीब 19 फीसदी बढ़ाने में सफल रहे.भाजपा को 59.2 फीसदी और बसपा को 32.6 फीसदी वोट मिले थे. कैसरगंज में 2024 के चुनाव में करन भूषण सिंह का मुकाबला सपा के भगत राम मिश्र और बसपा के नरेंद्र पांडेय से है.

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क्या लखनऊ में जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे राजनाथ?

अगर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की बात करें तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जीत की हैट्रिक लगाने के लिए चुनाव मैदान में हैं. लखनऊ सीट भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती है. भाजपा इस सीट पर पहली बार 1991 में जीती थी. उसके बाद से लखनऊ में उसे कोई हरा नहीं पाया है.अगर पिछले तीन चुनावों की बात करें तो 2009 में यहां से लालजी टंडन जीते थे. उन्होंने कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को 40 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था. भाजपा को 34.9 और कांग्रेस को 27.9 फीसदी वोट मिले थे.

वहीं 2014 के चुनाव में भाजपा ने राजनाथ सिंह को इस सीट पर चुनाव लड़ने के लिए भेजा. उस समय वो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. उन्होंने कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को पौने तीन लाख से अधिक वोटों के अंतर से हराया. भाजपा का वोट शेयर 54.3 फीसदी और कांग्रेस का 27.9 फीसदी था. वहीं 2019 के चुनाव में राजनाथ सिंह की जीत का अंतर और बढ़ गया. उन्होंने सपा की पूनम शत्रुघ्न सिन्हा को करीब साढ़े तीन लाख वोट के अंतर से हराया. भाजपा का वोट शेयर 56.7 तो सपा का वोट शेयर 25.6 फीसदी था.

इस बार भाजपा ने एक बार फिर राजनाथ सिंह पर ही भरोसा जताया है. सपा ने उनके सामने लखनऊ मध्य विधानसभा सीट से विधायक रविदास मल्होत्रा को उम्मीदवार बनाया है.वहीं बसपा ने मोहम्मद सरवर मलिक को उम्मीदवार बनाया है.

कांग्रेस के गढ में कितनी चुनौती दी पाएगी बीजेपी?

रायबरेली और अमेठी को कांग्रेस की परंपरागत सीट माना जाता है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी 2019 में अमेठी से चुनाव हार गए थे.वहीं उनकी मां और कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी रायबरेली से चुनाव जीतने में कामयाब रही थीं.

अमेठी सीट की बात करें तो 2009 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के राहुल गांधी जीते थे.उन्होंने बसपा के आशीष शुक्ला को तीन लाख 70 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था.कांग्रेस का वोट शेयर 71.8 फीसदी तो बसपा का 14 .5 फीसदी था. वहीं 2014 के चुनाव में चली मोदी लहर में भी राहुल गांधी अपनी सीट बचा पाने में कामयाब रहे. लेकिन उनकी जीत का अंतर काफी घट गया था. उन्होंने भाजपा के स्मृति ईरानी को एक लाख सात हजार से अधिक वोटों से मात दी थी. कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 46.7 फीसदी रह गया तो भाजपा का वोट शेयर 34.4 रहा. वहीं 2019 के चुनाव में इस सीट पर राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा.उन्हें भाजपा की स्मृति ईरानी ने 52 हजार के अधिक वोटों के अंतर से हराया.भाजपा का वोट शेयर बढ़कर 49 फीसदी था तो कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 43.9 फीसदी रह गया था. 

क्या सीट बदलने से जीत जाएंगे राहुल गांधी?

इस साल कांग्रेस ने अमेठी में अपना उम्मीदवार बदल दिया है.कांग्रेस ने तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए किशोरी लाल शर्मा को उम्मीदवार बनाया है.वहीं भाजपा ने स्मृति ईरानी पर फिर भरोसा जताया है.वहीं बसपा की ओर से नन्हें सिंह चौहान चुनाव मैदान में हैं.पूरे देश की नजरें इस सीट पर लगी हुई हैं.

आइए अब बात करते हैं रायबरेली सीट की. यह भी कांग्रेस की परंपरागत सीट है.बीते चुनाव में इस सीट से कांग्रेस की सोनिया गांधी जीती थीं. लेकिन अब वो राज्य सभा चली गई हैं. कांग्रेस ने इस बार राहुल गांधी को उम्मीदवार बनाया है. उनका मुकाबला भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह से है. 

रायबरेली में 2009 के चुनाव में कांग्रेस की सोनिया गांधी ने बसपा के आरएस कुशवाहा को तीन लाख 72 हजार के अधिक अंतर से हराया था. कांग्रेस को 72.2 फीसदी तो बसपा को 16.4 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2014 के चुनाव में सोनिया ने भाजपा के अजय अग्रवाल को मात दी.यह चुनाव सोनिया गांधी साढ़े तीन लाख वोटों से अधिक के अंतर से जीत तो गईं, लेकिन उनका वोट शेयर कम हो गया. कांग्रेस का वोट शेयर 46.7 फीसदी रह गया तो भाजपा का वोट शेयर 21.1 फीसदी रहा. साल 2019 के चुनाव में सोनिया गांधी भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह को एक लाख 67 हजार से हराने में कामयाब रही.लेकिन कांग्रेस का वोट शेयर एक बार फिर घटकर 55.8 फीसदी रह गया. वहीं भाजपा का वोट शेयर बढ़कर 384 फीसदी हो गया. 

राहुल गांधी के चुनाव लड़ने से रायबरेली सीट काफी महत्वपूर्ण हो गई है. यहां उनका मुकाबला भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह और बसपा के ठाकुर प्रसाद यादव से है. 

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