महाभियोग कोई मामूली शब्द नहीं होता. ये शब्द किसी पर आरोप लगाने की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है. जब आरोपों का बोझ इतना बढ़ जाता है कि और कोई उपाय नहीं रह जाता, तब किसी के खिलाफ महाभियोग लगाया जाता है. प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पार्टी पर ऐसा ही एक महाभियोग लगाया है. जाहिर है इसकी राजनीतिक व्याख्या भी होगी. आज हम वही करेंगे. लोकतंत्र में जनता के हाथ में एक मज़बूत हथियार होता है. ये हथियार है मतदान का अधिकार. हर पांच साल में वोटर अपनी ताकत का इस्तेमाल करता है. इसके जरिये वो अच्छे कार्यों का सम्मान करता है. गैर-जरूरी बातों को खारिज करता है. और साजिश करने वालों को सबक भी सिखाता है. क्या हरियाणा के नतीजों के जरिये वहां के वोटर्स ने ऐसा ही कोई जवाब दिया है. और क्या इसीलिए प्रधानमंत्री इस तरह से महाभियोग लगा रहे हैं.
भारत के राजनीतिक नक्शे पर जब बीजेपी का विस्तार हो रहा है और कांग्रेस सिमट रही है. तो जाहिर है सत्ताधारी पार्टी के लिए ये तस्वीर बेहद खास है. कांग्रेस का कमजोर पड़ना बीजेपी के लिए अहम है क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद मोदी की जीत को भी कांग्रेस हार बता रही थी. और 52 से 99 सीटों का आंकड़ा छूने के बाद विजेता वाला आत्मविश्वास दिखा रही थी. मंच भी था और मौका भी. इसलिए प्रधानमंत्री ने इतिहास के पन्नों से फिर एक बार वो बयान निकाला. जिसमें महात्मा गांधी की तरफ से कांग्रेस पार्टी को दी गई नसीहत का जिक्र है.
पीएम मोदी ने कहा, "कांग्रेस नफरत फैलने की सबसे बड़ी फैक्ट्री बनने वाली है. ये गांधी जी ने आजादी के बाद ही समझ लिया था. इसलिए गांधी जी ने कहा था कि कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए. कांग्रेस खुद खत्म नहीं हुई, लेकिन आज देश को खत्म करने पर तुली हुई है. इसलिए हमें सावधान रहना है सतर्क रहना है."
हरियाणा में हैट्रिक जीत के बाद 24 घंटों के भीतर प्रधानमंत्री मोदी के दो भाषण हुए. पहला भाषण हुआ दिल्ली में बीजेपी के मुख्यालय पर और दूसरा भाषण महाराष्ट्र के लिए अलग-अलग परियोजनाओं की लाॉन्चिंग पर. दोनों ही भाषणों में प्रधानमंत्री के निशाने पर कांग्रेस थी. और दोनों ही भाषणों में पीएम ने कांग्रेस पर जो आरोप लगाए, उसमें एक बात समान थी. आरोप ये कि कांग्रेस साजिश कर रही है.
पीएम मोदी ने कहा, "साथियों बीते कुछ समय से भारत के खिलाफ भांति-भांति के षडयंत्र चल रहे हैं. भारत के लोकतंत्र, भारत के अर्थतंत्र और सामाजिक ताने बाने को कमजोर करने के लिए भांति-भांति की साजिशें हो रही हैं. अंतरराष्ट्रीय साजिशें हो रही हैं. कांग्रेस का पूरा इकॉसिस्टम अरबन नक्सल का पूरा गिरोह जनता को गुमराह करने में जुटा था. लेकिन कांग्रेस की सारी साजिशें ध्वस्त हो गईं."
प्रधानमंत्री के भाषण में तीन शब्द सुनने को मिले 'भारत के लोकतंत्र को, भारत के अर्थतंत्र को, सामाजिक ताने बाने को कमजोर करने के षडयंत्र किए जा रहे हैं.' इस आरोप का आधार क्या है? षडयंत्र के तार किधर हैं? ये हम आगे बताते हैं.
भारत में नागरिकता कानून लागू हो तो विरोध होता है. भारत में 370 हटाया जाए तो विरोध होता है. कहने को जरूरतमंदों के लिए पैसे खर्च किए जाते हैं. लेकिन, हकीकत में भारत के खिलाफ प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए फंडिंग की जाती है. नेटवर्किंग इतनी तगड़ी होती है कि अमेरिका में रिपोर्ट पेश की जाती है. और उसके कुछ ही देर बाद बड़े सधे हुए अंदाज़ में भारत में सरकार के खिलाफ सवाल खड़े कर दिए जाते हैं. जैसा कि प्रधानमंत्री आरोप लगा रहे हैं. क्या भारत के विकास की रफ्तार रोकने के लिए एक नेटवर्क काम कर रहा है? और क्या भारत के खिलाफ साजिश को पब्लिक ओपिनियन के रूप में स्थापित करने की कोशिश की जा रही है?
हरियाणा चुनाव के नतीजों के बाद अलग-अलग राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया आ रही है. और प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर साजिश रचने के आरोप लगाए हैं.
किसी षडयंत्र को पब्लिक ओपिनियन के रूप में स्थापित करने की कैसे होती है कोशिश?
- सबसे पहले एक रिपोर्ट तैयार होती है
- फिर उस रिपोर्ट को पब्लिश कराया जाता है
- रिपोर्ट जैसे ही सार्वजनिक होती है उस पर डिबेट छिड़ जाती है
- और इसी के आधार पर जनमत बनाने की कोशिश होती है
- इसके साथ ही एक कानूनी प्रक्रिया या दांव-पेंच की भी शुरुआत हो जाती है
- और आखिर में किसी ऐसे संस्थान को टारगेट किया जाता है जो देश के आर्थिक विकास में योगदान कर रहा होता है
इस महीने की शुरुआत में इनकम टैक्स विभाग के छापे में देश के कुछ बड़े NGO की भूमिका को लेकर गंभीर खुलासे सामने आए थे. इंडियन एक्सप्रेस ने इन छापों से जुड़े आयकर विभाग के दस्तावेजों की गहन छानबीन करके एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिससे पता चला था कि कई NGO चैरिटी के नाम पर भारत विरोधी एजेंडा चलाते हैं.
क्या है इस रिपोर्ट में?
- 5 बड़े NGOs पर देश में विकास के विरोध में एजेंडा चलाने का आरोप लगाया गया
- रिपोर्ट में कहा गया कि 5 में से 4 NGO की 75% फंडिंग विदेशी स्रोतों से हुई
- इनके लिए फंड का इस्तेमाल कॉरपोरेट घरानों के प्रोजेक्ट्स के खिलाफ हुआ
- ये भी कहा गया कि पांचों NGO वित्तीय रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं
- इसके अलावा ये NGO अपने-अपने मिशन भी एक दूसरे से साझा करते हैं
- और जो प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं उन्हें रोकने की कोशिश भी करते हैं
- साथ ही इसके लिए प्रदर्शनों को हवा देने के अलावा वित्तीय मदद भी करते हैं.
ऐसी साजिशें क्यों की जाती हैं. इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि केंद्र की मौजूदा सरकार पहले ही ऐसे प्रयासों के खिलाफ सख्त हो चुकी है.
तो क्या ये मान लिया जाए कि चैरिटी के नाम पर विकास विरोधी एजेंडा चलाया जा रहा है. आयकर विभाग की कार्रवाई में जो खुलासे हुए, उनकी कुछ और जानकारियों पर ध्यान दीजिए.
- NGO ऑक्सफैम इंडिया के निशाने पर खासतौर पर अदाणी ग्रुप है
- ऑक्सफैम इंडिया ने ऑक्सफैम ऑस्ट्रेलिया के मिशन को सपोर्ट किया
- अदाणी ग्रुप को माइनिंग से रोकने के लिए कैंपेन चलाया
- अदाणी पोर्ट्स की डीलिस्टिंग में ऑक्सफैम इंडिया का सीधा हित जुड़ा था
- इसी तरह NGO एनवायरोनिक्स ने JSW के खिलाफ साजिश रची
- ओडिशा में JSW उत्कल स्टील प्लांट के खिलाफ मुहिम छेड़ी की गई
- JSW प्लांट का विरोध करने के लिए स्थानीय लोगों का इस्तेमाल हुआ
- विरोध में शामिल होने के लिए स्थानीय लोगों को पैसे दिए गए
किन पांच एनजीओ पर आरोप?
- सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च
- केयर इंडिया
- एनवायरोनिक्स ट्रस्ट
- LIFE
- ऑक्सफैम इंडिया
तो क्या भारत की ग्रोथ स्टोरी को रोकने की साजिश हो रही है. और क्या लोकतंत्र ये अवसर दे रहा है कि ऐसी ताकतों को जनता अपनी ओर से जवाब दे सके?
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