पिता सड़क किनारे लगाते हैं दुकान, बेटी ने जीता गोल्ड मेडल... खो-खो खिलाड़ी नसरीन शेख की प्रेरणादायक कहानी

International Women's Day : नसरीन शेख ने कहा कि मैं 2019 से 2023 तक भारतीय महिला खो-खो टीम की कप्तान रही और देश के लिए कई मेडल जीते. मेरा सफर काफी कठिन रहा, क्योंकि मेरी 7 बहनें हैं और मेरे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी.

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8 मार्च को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं के योगदान, उनके त्याग और साहस को समर्पित है. यह दिन महिलाओं की उपलब्धियों और उनके अधिकारों का प्रतीक है, जो हर उस महिला को समर्पित है, जो अपने संघर्षों के बल पर सफलता के मुकाम पर पहुंची है. भारत में करोड़ों ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने हर बाधा का सामना निडरता से किया है. उनकी कहानियां समाज के लिए प्रेरणादायक हैं. आज हम आपको ऐसी ही एक महिला से रूबरू कराएंगे, जिन्होंने देश और समाज में अपना योगदान दिया है और सकारात्मक संदेश भी दिया है.

नसरीन शेख भारतीय खो-खो खिलाड़ी हैं, जो भारतीय महिला खो-खो टीम की कप्तान भी रह चुकी हैं. साथ ही वह अर्जुन पुरस्कार पाने वाली दूसरी खो-खो खिलाड़ी भी बनीं.
 

"मैं मानती हूं कि अगर महिलाओं को रोका नहीं जाता है और टोका नहीं जाता है, तो वे सफलता हासिल कर सकती हैं. हमें अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए और खुद को मजबूत रखना चाहिए. समस्याएं जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उससे बाहर आना जीवन की कला है."

नसरीन शेख

पूर्व खो-खो खिलाड़ी

2016 में भारत का प्रतिनिधित्व किया

खो-खो खिलाड़ी नसरीन शेख (Kho-Kho Player Nasreen Shaikh) ने एनडीटीवी से अपने जीवन के संघर्षों के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में डबल मेहनत करनी पड़ती है. एक अपने परिवार से लड़ना होता है और दूसरा समाज के साथ. नसरीन ने कहा कि वह एक मुस्लिम परिवार से आती हैं, इसलिए उनके लिए संघर्ष तीन गुना अधिक था.

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उन्होंने आगे कहा कि अगर महिलाओं को रोका नहीं जाता है, तो वे सफलता प्राप्त कर सकती हैं. नसरीन ने बताया कि उनके भाई ने उन्हें शॉट्स पैंट पहनने से रोका था, जिसके कारण उन्होंने 5 साल तक अपने भाई से बात नहीं की. लेकिन 2016 में जब उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया, तो उनके करियर की अच्छी यात्रा शुरू हुई.

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नसरीन शेख ने कहा कि मैं 2019 से 2023 तक भारतीय महिला खो-खो टीम की कप्तान रही और देश के लिए कई मेडल जीते. मेरा सफर काफी कठिन रहा, क्योंकि मेरी 7 बहनें हैं और मेरे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. मेरे पिता रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाते हैं और उस वक्त भी शाम की कमाई से मेरे लिए डाइट का सामान लेकर आते थे. उनका सपना था कि मैं गोल्ड मेडल जीतूं. मैंने उनके सपने को पूरा करने के लिए मेहनत की.
 

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