पढ़ें, आखिर भारत की सिलिकॉन सिटी बेंगलुरु, कैसे झेल रही है शहरी विकास का दंश

नेविगेशन सॉफ्टवेयर डेवलपर टॉमटॉम ने पिछले साल बेंगलुरु शहर को भारत में सबसे अधिक ट्रैफिक जाम वाली जगह बताया था

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नई दिल्ली:

भारत की सिलिकॉन वैली (Silicon Valley) के नाम से दुनिया भर में विख्यात बेंगलुरु (Bengaluru) शहर तेजी से बदल रहा है. 30 साल पहले तक इस शहर को एक सुकून वाले जगह के तौर पर देखा जाता था. जहां कई लोगों ने रिटायर होने के बाद अपनी जिंदगी को बिताने का फैसला लिया था. यह शहर लगभग 200 झीलें और अनगिनत नहरों से जुड़ी हुई थीं. छोटे-छोटे घर थे. पार्क थे.  लोग बाइक से आसानी से एक जगह से दूसरे जा सकते थे. इस बीच आर्थिक विकास की शुरुआत हुई. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 194 बिलियन डॉलर के आईटी सेवा उद्योग ने बेंगलुरु को देश की सिलिकॉन वैली बना दिया.

जनसंख्या में तीन गुना से भी अधिक की हुई बढ़ोतरी

आर्थिक उछाल के साथ, 1990 के बाद से जनसंख्या तीन गुना से भी अधिक बढ़कर 13 मिलियन हो गई है. 1970 के दशक में पेड़ों की छतरी बेंगलुरु के लगभग 70% हिस्से को कवर करती थी. भारतीय विज्ञान संस्थान के डेटा के अनुसार आज यह 3% से भी कम है.  नेविगेशन सॉफ्टवेयर डेवलपर टॉमटॉम ने पिछले साल शहर को भारत में सबसे अधिक ट्रैफिक जाम वाली जगह (और विश्व स्तर पर नंबर 5) का दर्जा दिया था.  

बेंगलुरु शहर के कई नहर अवैध निर्माण के कारण भर गए हैं. जिससे बारिश के दौरान भयंकर बाढ़ आ जाती है. मई में, अचानक आई बाढ़ में आईटी सेवाओं की दिग्गज कंपनी इंफोसिस लिमिटेड के एक कर्मचारी की मौत हो गई और एक साल पहले भारी बारिश के बाद, स्थानीय समाचार चैनल और सोशल मीडिया जलमग्न लक्जरी घरों और रुके हुए वाहनों को पानी में धकेलते लोगों की तस्वीरों को दिखाया था.  तूफान के कारण आउटर रिंग रोड को बंद करना पड़ा, जहां गोल्डमैन सैक्स ग्रुप इंक और माइक्रोसॉफ्ट कॉर्प जैसी कंपनियों के परिसर हैं. 

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कर्नाटक के राजस्व मंत्री का क्या कहना है? 

कर्नाटक के राजस्व मंत्री, कृष्णा बायर गौड़ा, इस अराजकता के लिए भ्रष्टाचार को दोषी मानते हैं.  उन्होंने कहा कि डेवलपर्स को सड़कों, स्वच्छता और पानी के बुनियादी ढांचे के बिना आवास परियोजनाओं का निर्माण करने की अनुमति दी गई है.  वे कहते हैं, ''बिल्डर नियामक चैनल या आवश्यक अनुमोदन से नहीं गुजरते हैं.'' उन्होंने कहा कि बिल्डर शॉर्ट कर्ट रास्ता अपनाते हैं. 

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विश्व बैंक से 30 अरब रुपये की आर्थिक सहायता की मांग

बायर गौड़ा ने विश्व बैंक से 30 अरब रुपये (362 मिलियन डॉलर) का ऋण मांगा है, उनका कहना है कि बेंगलुरु को अपने नालों को साफ करना शुरू करना होगा. सीवेज सफाई के लिए  बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होगा और जलवायु परिवर्तन के खतरों से बेहतर ढंग से निपटना होगा. उन्होंने आगाह किया कि शहर की समस्याएं असंख्य हैं और उन्हें हल करना आसान नहीं होगा. मंत्री ने कहा कि ''हम अपनी योजना में काफ़ी पीछे रह गए हैं.''

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बढ़ते शहरीकरण के प्रभाव से कुछ हिस्से वहां के लोगों के प्रयासों से अभी भी बचे हुए हैं. कब्बन पार्क, बचे हुए कुछ हरे-भरे स्थानों में से एक है. 198 एकड़ के आसपास के क्षेत्र में अभी ट्रेफिक की समस्या कम ही है. इस क्षेत्र को आम लोगों के प्रयासों से संरक्षित किया गया है. आम लोगों ने इस क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण के प्रयास को रोका है. इसके लिए उनलोगों के कई बार इसके लिए अदालत का दरवाजा भी खटखटाना पड़ा है.  

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सैंकी टैंक के आसपास के लोगों ने पर्यावरण को बचाने के लिए शुरू किया आंदोलन

बेंगलुरु शहर में शहरी करण के गलत प्रभाव से बचा हुआ एक हिस्सा सैंकी टैंक के आसपास का भी है. लेकिन अब वहां के लोग भी परेशान हैं. जनवरी के महीने में स्थानीय निवासी किम्सुका अय्यर ने देखा कि दर्जनों पेड़ों को लाल और काले एक्स और ओ से रंगा गया था. शहर में लंबे समय से रहने के कारण उन्हें यह समझने में अधिक परेशानी नहीं हुई कि  पेड़ों को काटा जाना था. उन्हें जल्द ही पता चला कि सरकार ने पानी के किनारे एक राजमार्ग ओवरपास के निर्माण को मंजूरी दे दी है.  सड़क के लिए रास्ता बनाने के लिए, पेड़ों को हटाने की योजना थी.  किसी ने भी आस-पास के निवासियों से उनकी राय पूछने की जहमत नहीं उठाई थी. अय्यर ने कहा कि सरकार की योजना से ''लोग नाराज़ हो गए.'' "एक बार जब पेड़ ख़त्म हो गए, तो वे भी ख़त्म हो जाएंगे."

सरकार को लिखा पत्र

कब्बन पार्क के क्षेत्र में नागरिक समूह की सफलताओं ने सैंकी टैंक के आसपास के निवासियों को प्रेरित किया है. सैंकी टैंक जिसका नाम ब्रिटिश कर्नल के नाम पर रखा गया था जिन्होंने 140 साल पहले इसका निर्माण किया था. जब ओवरपास योजना के बारे में खबर फैली, तो स्थानीय लोगों ने शहर की एजेंसियों और कर्नाटक के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर परियोजना को रोकने की मांग की.  इलाके में रहने वाली एक डांसर प्रीति सुंदरराजन का कहना है कि यह पता लगाना भी मुश्किल था कि ओवरपास के लिए कौन जिम्मेदार था क्योंकि "कोई नहीं जानता कि यहां कौन क्या कर रहा है. 

शिक्षाविदों ने जारी किया रिपोर्ट

सरकार की योजनाओं को समझने के बाद, स्थानीय शिक्षाविदों ने फरवरी में एक पर्यावरणीय प्रभाव रिपोर्ट प्रकाशित किया था.  जिसमें कहा गया कि 55 पेड़ काटे जाएंगे, जबकि शहर द्वारा प्रकाशित आधिकारिक रिपोर्ट में 39 पेड़ काटे जाने की ही बात कही गई.  उन्होंने कहा कि ओवरपास के निर्माण के लिए पेड़ों को काटने से हवा और पानी की गुणवत्ता खराब हो जाएगी और क्षेत्र में शोर बढ़ जाएगा, जिससे झील के पास रहने वाले पक्षियों की 88 प्रजातियों को खतरा हो जाएगा. निवासियों ने सुझाव दिया कि ओवरपास के बजाय, ट्रैफ़िक सिग्नलों को स्वचालित और सिंक्रनाइज़ करना, सार्वजनिक परिवहन में सुधार करना और पैदल मार्ग जोड़ना बेहतर होगा. 

योजना बनाते समय पर्यावरण का नहीं रखा गया ध्यान

निवासियों के लिए एक मंच पर, बी.एस. नगरपालिका इंजीनियर प्रहलाद ने कहा कि यातायात के बढ़ते स्तर के लिए "सड़क के ऊपर एक सड़क" की आवश्यकता है. फिर उन्होंने सुझाव दिया कि झील के पास बनने वाले ओवरपास से आस-पास भीड़भाड़ बढ़ सकती है, इसलिए वास्तविक समाधान ओवरपास की एक श्रृंखला होगी. अय्यर कहते हैं, "यह वास्तव में स्पष्ट हो गया कि उन्होंने इसके बारे में नहीं सोचा था." "परियोजना का वस्तुतः कोई मतलब नहीं है क्योंकि यह उस विशाल हिस्से में छह बाधाएं पैदा करेगा। यह पहले दिन से ही यातायात को बदतर बना देगा. 

आंदोलनकारियों को परेशान कर रहा है प्रशासन

निराश निवासियों ने फरवरी में सुबह झील के चारों ओर एक मौन मार्च आयोजित करने का निर्णय लिया था. शहर के केंद्र में एक छोटी सी जगह पर विरोध प्रदर्शन को प्रतिबंधित करने वाले नियमों से बचने के उद्देश्य से आम लोग झील के पास ही आंदोलन करना चाहते थे. आंदोलन कारियों को को पूरी तरह से काले कपड़े पहन कर आने के लिए कहा गया था. आयोजकों की तरफ से बैनर ले जाने या यातायात को अवरुद्ध करने से बचने की अपील आयोजकों की तरफ से की गई थी. इस बीच कुछ आयोजकों को पुलिस से फोन आया और उन्हें मार्च रद्द करने की सलाह दी गई. फिर, विरोध के एक महीने बाद, 70 प्रतिभागियों को पता चला कि उन पर गैरकानूनी ढंग से इकट्ठा हौने और खतरनाक बाधा उत्पन्न करने का आरोप लगाते हुए जांच की शुरुआत की गई. पुलिस आयुक्त को लिखे एक पत्र में नागरिकों की तरफ से कहा गया कि "यह समझ से परे है कि एक समुदाय के निवासियों द्वारा झील के चारों ओर चुपचाप टहलने को किसी भी अपराध के रूप में समझा जा सकता है. 

सरकार सार्वजनिक वाहनों को बढ़ाने की बना रही है योजना: मंत्री

राज्य सरकार के मंत्री गौड़ा ने राज्य द्वारा महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा की पेशकश के बाद सार्वजनिक परिवहन के उपयोग में वृद्धि की ओर इशारा किया है और कहा कि शहर ने सेवा का विस्तार करने के लिए अतिरिक्त 4,000 वाहन खरीदने का लक्ष्य रखा है. उनका कहना है कि हवाई अड्डे और यात्री यातायात से भरे आवासीय क्षेत्रों में मेट्रो प्रणाली के लंबे समय से विलंबित विस्तार को पूरा करने के लिए फंडिंग को अलग रखा गया है.

सरकार की योजनाओं में सबसे अधिक विवादास्पद लगभग 500 अरब रुपये की लागत से शहर को पार करने वाले भूमिगत राजमार्गों के नेटवर्क का प्रस्ताव है. जिसे लेकर शहरी योजनाकार सवाल खड़े कर रहे हैं. मंत्री गौड़ा का कहना है कि नए नेतृत्व ने सुरंगों के निर्माण से इनकार नहीं किया है, जिसका उपयोग सार्वजनिक परिवहन के लिए भी किया जाएगा. लेकिन उनका कहना है कि कोई भी बुनियादी ढांचा निवेश अगले साल के राष्ट्रीय चुनावों को ध्यान में रखकर किया जाएगा.  उनका कहना है, ''यह देश के बाकी हिस्सों के लिए एक उदाहरण  होगा.'' 

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