मुंबई में 26/11 के हमलों पर भारत की प्रतिक्रिया और सर्जिकल स्ट्राइक तथा बालाकोट स्ट्राइक के बाद क्या बदलाव आया है? इस सवाल पर कड़ी टिप्पणी करते हुए, पूर्व राजनयिक अजय बिसारिया ने कहा है कि भारत 2008 में कूटनीति, जबकि हाल के वर्षों में प्रतिक्रियाओं पर ज्यादा निर्भर है. भारत ने ये सुनिश्चित कर लिया है कि अब उसके पास पाकिस्तान के उप-पारंपरिक युद्ध का जवाब है.
एनडीटीवी से खास बात करते हुए बिसारिया ने कहा कि भारतीय राजनयिकों के आत्मविश्वास का स्तर बदल गया है, क्योंकि उनके पास स्पष्ट जनादेश और नेतृत्व में विश्वास है.
अजय बिसारिया फरवरी 2019 में बालाकोट हवाई हमले के समय पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त थे.
उन्होंने लिखा, "यदि भारत ने 2008 में उसी तरह प्रतिक्रिया की होती जैसे उसने 2016 या 2019 में सर्जिकल स्ट्राइक के साथ की थी, तो एक मजबूत भारतीय प्रतिक्रिया पाकिस्तान को भी समझ आती और पाकिस्तानी सेना के उग्रवादी समूहों को समर्थन देने का नतीजा पता चल जाता.''
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव बिसारिया ने कहा, "मुझे लगता है कि ये भारत के लिए तीन दशकों से एक दुविधा रही है, जब से हमने आतंकवाद का सामना करना शुरू किया है. भारत और भारतीय नीति निर्माताओं के सामने सवाल ये था कि इस पर कैसी प्रतिक्रिया दी जाए.''
पाकिस्तान से निपटना
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि उस समय सरकार राजनयिकों पर बहुत अधिक भरोसा करती थी, बिसारिया ने कहा कि ये अतिसरलीकरण होगा और मुद्दा ये है कि क्या कूटनीति से परे देखने की क्षमता और इच्छाशक्ति थी.
उन्होंने कहा, "तर्क ये है कि भारत के पास अब पाकिस्तान के उप-पारंपरिक युद्ध का जवाब है, जैसा कि 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में हवाई हमलों के साथ दिखा है, कि वह उप-पारंपरिक क्षेत्र में काम कर रहा है, जहां ये एक तरह का युद्ध के पारंपरिक दायरे से नीचे छद्म युद्ध है और मुझे लगता है कि ये कुछ ऐसा है जो पाकिस्तान के मुद्दों से निपटने में भारत की अच्छी मदद करेगा."
बिसारिया ने ये भी बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी कूटनीति का प्रयास किया था. 2014 और 2015 याद करें, वो अवधि थी जब उन्होंने नवाज शरीफ के साथ संबंध बेहतर करने कोशिश की थी. नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण के लिए भारत बुलाया था, और प्रधानमंत्री मोदी ने खुद 2015 के अंत में पाकिस्तान का दौरा किया था. लेकिन अब हम आतंकवाद को लेकर उसी रूप में प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार हैं. ये पाकिस्तान के समझ में भी आ गया है, कि उसे भी ऐसी ही कीमत चुकानी होगी.''
अलग-अलग दृष्टिकोण
ये पूछे जाने पर कि क्या नरेंद्र मोदी का दृष्टिकोण मनमोहन सिंह और वाजपेयी जैसे उनके पूर्ववर्तियों से अलग है, पूर्व राजनयिक ने कहा कि प्रत्येक प्रधानमंत्री को समय की मजबूरियों से निपटना पड़ता है.
पूर्व प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव रहे बिसारिया ने कहा, "प्रधानमंत्री वाजपेयी के समय में भारत 1998 में परमाणु शक्ति संपन्न हो गया था और पाकिस्तान से जुड़े मुद्दे से निपटने तथा दुनिया से निपटने के लिए एक मजबूत परमाणु शक्ति होनी चाहिए थी. प्रधानमंत्री वाजपेयी ने जो किया वो पाकिस्तान की परमाणु सीमा को समझने की एक कोशिश थी.''
'आत्मविश्वास, आक्रामकता नहीं'
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस बयान पर कि पश्चिमी राजनयिकों ने उन्हें बताया है कि भारतीय समकक्ष बहुत आक्रामक हो गए हैं और उनमें काफी हद तक अहंकार है, बिसारिया ने कहा कि ये बदलाव वास्तव में एक बड़े स्तर का आत्मविश्वास है.
उन्होंने कहा, "ये विश्वास न केवल देश और इसकी क्षमता में विश्वास से आता है, बल्कि इसके नेतृत्व और इन राजनयिकों के लिए उपलब्ध स्पष्ट जनादेश से भी आता है. इसलिए अब मुझे लगता है कि भारतीय राजनयिकों के पास स्पष्ट जनादेश है कि वे अपने समकक्षों के साथ क्या करते हैं, क्या कहते हैं और कैसे बातचीत करते हैं. वे इसे अधिक आत्मविश्वास के साथ करते हैं. इसलिए मैं किसी अन्य विशेषण का उपयोग करने के बजाय इसे आत्मविश्वास कहूंगा."
भारत की प्रशंसा
ये पूछे जाने पर कि पाकिस्तान की सड़कों से आ रहे वीडियो में भारत के प्रति अरुचिकर प्रशंसा का संकेत मिलता है और क्या 2019 में देश छोड़ने से पहले उन्हें यही धारणा मिली थी, पूर्व राजनयिक ने कहा कि मूड में बदलाव है. उन्होंने कहा, "जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा युवा है और युवा लोगों की काफी सामान्य आकांक्षाएं हैं. आपको पाकिस्तान में आधिकारिक कथन और सोशल मीडिया पर आप जो कैप्चर करेंगे, उसके बीच एक बड़ा अंतर दिखाई देगा और निश्चित रूप से वहां रहा है. हाल के दिनों में भारत की प्रशंसा और उनकी सरकार पर सवाल उठाने के सबूत मिले हैं, जिसने पाकिस्तान को आर्थिक संकट में डाल दिया है."