"26/11 के बाद भारत के संयम से पाकिस्तान को गलत संदेश गया" : पूर्व राजनयिक अजय बिसारिया

पूर्व राजनयिक अजय बिसारिया ने कहा कि विश्वास न केवल देश और इसकी क्षमता में विश्वास से आता है, बल्कि इसके नेतृत्व और इन राजनयिकों के लिए उपलब्ध स्पष्ट जनादेश से भी आता है.

विज्ञापन
Read Time: 28 mins
नई दिल्ली:

मुंबई में 26/11 के हमलों पर भारत की प्रतिक्रिया और सर्जिकल स्ट्राइक तथा बालाकोट स्ट्राइक के बाद क्या बदलाव आया है? इस सवाल पर कड़ी टिप्पणी करते हुए, पूर्व राजनयिक अजय बिसारिया ने कहा है कि भारत 2008 में कूटनीति, जबकि हाल के वर्षों में प्रतिक्रियाओं पर ज्यादा निर्भर है. भारत ने ये सुनिश्चित कर लिया है कि अब उसके पास पाकिस्तान के उप-पारंपरिक युद्ध का जवाब है.

एनडीटीवी से खास बात करते हुए बिसारिया ने कहा कि भारतीय राजनयिकों के आत्मविश्वास का स्तर बदल गया है, क्योंकि उनके पास स्पष्ट जनादेश और नेतृत्व में विश्वास है. 

अजय बिसारिया फरवरी 2019 में बालाकोट हवाई हमले के समय पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त थे.

पूर्व राजनयिक ने अपनी नई किताब 'एंगर मैनेजमेंट : द ट्रबल्ड डिप्लोमैटिक रिलेशनशिप बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान' में लिखा है कि जब आतंकवाद से निपटने की बात आई तो नीतिगत दुविधा थी और भारत के संयम ने शायद पाकिस्तान में आतंकवादियों और उनके समर्थकों को गलत संदेश दिया था.

उन्होंने लिखा, "यदि भारत ने 2008 में उसी तरह प्रतिक्रिया की होती जैसे उसने 2016 या 2019 में सर्जिकल स्ट्राइक के साथ की थी, तो एक मजबूत भारतीय प्रतिक्रिया पाकिस्तान को भी समझ आती और पाकिस्तानी सेना के उग्रवादी समूहों को समर्थन देने का नतीजा पता चल जाता.''

Advertisement

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव बिसारिया ने कहा, "मुझे लगता है कि ये भारत के लिए तीन दशकों से एक दुविधा रही है, जब से हमने आतंकवाद का सामना करना शुरू किया है. भारत और भारतीय नीति निर्माताओं के सामने सवाल ये था कि इस पर कैसी प्रतिक्रिया दी जाए.''

Advertisement
पूर्व राजनयिक ने कहा, "मैं जो तर्क देता हूं वो ये है कि, शायद 2008 में भारत की प्रतिक्रिया पर्याप्त नहीं थी. वो कूटनीति पर अत्यधिक निर्भर थी और शक्ति के उपयोग पर ज्यादा निर्भर नहीं थी. मैं एक गहरी बात कहता हूं कि भारत ने अस्सी के दशक में पंजाब में और फिर 80 और 90 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद का सामना किया है. अगर हमने पाकिस्तान के इस उप-पारंपरिक युद्ध का जवाब पहले ही तैयार कर लिया होता, तो शायद हम खुद को बहुत सारे रक्तपात और जनहानि से बचा सकते थे.

पाकिस्तान से निपटना
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि उस समय सरकार राजनयिकों पर बहुत अधिक भरोसा करती थी, बिसारिया ने कहा कि ये अतिसरलीकरण होगा और मुद्दा ये है कि क्या कूटनीति से परे देखने की क्षमता और इच्छाशक्ति थी.

Advertisement

उन्होंने कहा, "तर्क ये है कि भारत के पास अब पाकिस्तान के उप-पारंपरिक युद्ध का जवाब है, जैसा कि 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में हवाई हमलों के साथ दिखा है, कि वह उप-पारंपरिक क्षेत्र में काम कर रहा है, जहां ये एक तरह का युद्ध के पारंपरिक दायरे से नीचे छद्म युद्ध है और मुझे लगता है कि ये कुछ ऐसा है जो पाकिस्तान के मुद्दों से निपटने में भारत की अच्छी मदद करेगा."

Advertisement
कुछ विशेषज्ञों के इस दावे पर कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पाकिस्तान से निपटने के तरीके से भारत में आतंकवादी कृत्यों में कमी आई है, पूर्व राजनयिक ने एक बार फिर क्षमता और इच्छाशक्ति का जिक्र किया और कहा कि अब ये दोनों बदल गए हैं. उन्होंने कहा कि, पाकिस्तान के आतंकवाद के जवाब के रूप में, भारत ने 2016 (उरी में सेना शिविर पर हमले के बाद) और 2019 पुलवामा हमले के बाद पहले की तुलना में कहीं अधिक मजबूत कदम उठाने का फैसला किया.

बिसारिया ने ये भी बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी कूटनीति का प्रयास किया था. 2014 और 2015 याद करें, वो अवधि थी जब उन्होंने नवाज शरीफ के साथ संबंध बेहतर करने कोशिश की थी. नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण के लिए भारत बुलाया था, और प्रधानमंत्री मोदी ने खुद 2015 के अंत में पाकिस्तान का दौरा किया था. लेकिन अब हम आतंकवाद को लेकर उसी रूप में प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार हैं. ये पाकिस्तान के समझ में भी आ गया है, कि उसे भी ऐसी ही कीमत चुकानी होगी.''

अलग-अलग दृष्टिकोण
ये पूछे जाने पर कि क्या नरेंद्र मोदी का दृष्टिकोण मनमोहन सिंह और वाजपेयी जैसे उनके पूर्ववर्तियों से अलग है, पूर्व राजनयिक ने कहा कि प्रत्येक प्रधानमंत्री को समय की मजबूरियों से निपटना पड़ता है.

पूर्व प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव रहे बिसारिया ने कहा, "प्रधानमंत्री वाजपेयी के समय में भारत 1998 में परमाणु शक्ति संपन्न हो गया था और पाकिस्तान से जुड़े मुद्दे से निपटने तथा दुनिया से निपटने के लिए एक मजबूत परमाणु शक्ति होनी चाहिए थी. प्रधानमंत्री वाजपेयी ने जो किया वो पाकिस्तान की परमाणु सीमा को समझने की एक कोशिश थी.''

बिसारिया ने कहा, "मुझे लगता है कि, 2008 तक वो सीमा रेखाएं स्पष्ट थीं और इसलिए हमें शायद बहुत मजबूत प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी, जिसके अभाव में शायद आतंकवाद के अधिक कृत्य हुए, पाकिस्तान की ओर से अधिक दुस्साहस हुआ. तथ्य ये है कि इस सरकार ने जोखिम उठाया और एक कदम आगे बढ़ाया तथा आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की, जो आतंकवाद से निपटने में भारत को अच्छी स्थिति में खड़ा करेगा."

'आत्मविश्वास, आक्रामकता नहीं'
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस बयान पर कि पश्चिमी राजनयिकों ने उन्हें बताया है कि भारतीय समकक्ष बहुत आक्रामक हो गए हैं और उनमें काफी हद तक अहंकार है, बिसारिया ने कहा कि ये बदलाव वास्तव में एक बड़े स्तर का आत्मविश्वास है.

उन्होंने कहा, "ये विश्वास न केवल देश और इसकी क्षमता में विश्वास से आता है, बल्कि इसके नेतृत्व और इन राजनयिकों के लिए उपलब्ध स्पष्ट जनादेश से भी आता है. इसलिए अब मुझे लगता है कि भारतीय राजनयिकों के पास स्पष्ट जनादेश है कि वे अपने समकक्षों के साथ क्या करते हैं, क्या कहते हैं और कैसे बातचीत करते हैं. वे इसे अधिक आत्मविश्वास के साथ करते हैं. इसलिए मैं किसी अन्य विशेषण का उपयोग करने के बजाय इसे आत्मविश्वास कहूंगा."

Photo Credit: Twitter

भारत की प्रशंसा
ये पूछे जाने पर कि पाकिस्तान की सड़कों से आ रहे वीडियो में भारत के प्रति अरुचिकर प्रशंसा का संकेत मिलता है और क्या 2019 में देश छोड़ने से पहले उन्हें यही धारणा मिली थी, पूर्व राजनयिक ने कहा कि मूड में बदलाव है. उन्होंने कहा, "जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा युवा है और युवा लोगों की काफी सामान्य आकांक्षाएं हैं. आपको पाकिस्तान में आधिकारिक कथन और सोशल मीडिया पर आप जो कैप्चर करेंगे, उसके बीच एक बड़ा अंतर दिखाई देगा और निश्चित रूप से वहां रहा है. हाल के दिनों में भारत की प्रशंसा और उनकी सरकार पर सवाल उठाने के सबूत मिले हैं, जिसने पाकिस्तान को आर्थिक संकट में डाल दिया है."

Topics mentioned in this article