अमेरिका और चीन से दोस्ती का नया दौर, जानिए कैसे मिशन में लगे रहे विदेश मंत्री एस जयशंकर

एस जयशंकर (S Jaishankar) ने दुनिया भर में चल रहे तमाम उठापटक के बीच भारत की नीतियों को विश्वस्तर पर मजबूती से रखा है. चीन और अमेरिका के साथ हाल के दिनों में हुए रिश्ते में सुधार उनकी बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखी जा रही है.

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नई दिल्ली:

दुनिया के कई हिस्से जब युद्ध की चपेट में हैं ऐसे दौर में भारत अपने हीतों के साथ बिना समझौता किए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मजबूती से अपने पक्ष को रखता रहा है.  तमाम उठापटक के बीच भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवायी है. साथ ही हाल के दिनों में चीन और अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों में एक नई शुरुआत देखने को मिली है. चीन के साथ पिछले लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद पर भी दोनों देश समझौते के बेहद करीब पहुंचे हैं और कई मुद्दों पर सहमति बनने के बाद डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया भी शुरू हुई. भारत की विदेश नीति को नई धार देने के मिशन पर एक शख्स जो लगातार कभी पर्दे के पीछे से और कभी फ्रंट में आकर काम करता रहा है वो रहे हैं विदेश मंत्री एस जयशंकर. जयशंकर के प्रयासों ने विश्व मंच पर भारत को एक अलग जगह दी है. 

चीन के साथ कूटनीतिक संबंध की स्थापना बड़ी उपलब्धि
चीन के साथ भारत के संबंध हमेशा से जटिल रहे हैं, खासकर सीमा विवाद के कारण. हालांकि, एस जयशंकर ने चीन के साथ कूटनीतिक संबंधों को सुधारा और दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के लिए सक्रिय रूप से बातचीत की. लद्दाख में भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव बढ़ने के बाद, एस जयशंकर ने कई उच्चस्तरीय बैठकें कीं. उन्होंने कूटनीतिक चैनल्स के माध्यम से चीन के साथ बातचीत जारी रखी, जिससे सीमा पर स्थिरता बनी रही. 

चीन और भारत दोनों ही SCO के सदस्य हैं, और एस. जयशंकर ने इस मंच पर दोनों देशों के बीच साझेदारी को बढ़ावा दिया। इस संगठन के माध्यम से, भारत ने चीन के साथ सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम किया. 

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चीन के साथ रिश्ते सुधारने के लिए, एस जयशंकर ने उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया, जहां दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ सकता था, जैसे जलवायु परिवर्तन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और वैश्विक स्वास्थ्य.

चीन के साथ कैसे बदले हालात

  • चीन के साथ आर्थिक सहयोग: हालांकि सीमा विवाद के कारण व्यापारिक संबंधों में कुछ ठहराव था, फिर भी एस. जयशंकर ने चीन के साथ भारत के वाणिज्यिक संबंधों को बनाए रखने की कोशिश की. रिश्ते में सुधार के पीछे यह एक अहम कारण साबित हुआ.
  • चीन-भारत कूटनीतिक वार्ताएं: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोनों देशों के बीच संवाद जारी रखा गया. यहां दोनों देशों के नेताओं ने अपनी चिंताओं को साझा किया और सामरिक एवं कूटनीतिक मुद्दों पर चर्चा की. 
  • जलवायु परिवर्तन: भारत और चीन दोनों ही जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक मंचों पर सहयोग करते हैं. एस. जयशंकर ने इस पहलू पर चीन के साथ भारत के रिश्तों को सहयोगात्मक बनाने के लिए कदम उठाए.
  • सैन्य वार्ता और तनाव कम करना: चीन के साथ सैन्य संबंधों को बेहतर बनाने के लिए, दोनों देशों ने सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता की और सीमा पर सैन्य तैनाती में कमी की दिशा में प्रयास किए.
  • रणनीतिक संतुलन: एस. जयशंकर ने चीन के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के साथ-साथ भारत की सुरक्षा हितों का भी ध्यान रखा, खासकर भारत-चीन सीमा पर स्थिरता बनाए रखने के लिए.

भारत अमेरिका संबंध में धीरे-धीरे आ रही है ठोस मजबूती
भारत और अमेरिका के संबंध पिछले कुछ दशकों में कई उतार-चढ़ाव से गुजरे हैं.  1990 के दशक के बाद, इन दोनों देशों के रिश्तों में उल्लेखनीय बदलाव आया है. अब भारत और अमेरिका एक-दूसरे के लिए वैश्विक रणनीतिक साझीदार के रूप में उभर रहे हैं. हालांकि मोदी सरकार में इस रिश्तों को बेहद मजबूती मिली. 

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मोदी सरकार में कैसे सुधरे भारत और अमेरिका के रिश्ते?

  • क्वाड (QUAD) का गठन: भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच गठित होने वाला क्वाड (Indo-Pacific) गठबंधन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देने के लिए बना था. मोदी सरकार ने इस गठबंधन के माध्यम से भारत और अमेरिका के रिश्तों को और मजबूत किया है. 
  • भारत को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति: अमेरिका ने भारत को कई रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी प्रदान की, जिससे भारत की सैन्य ताकत को मजबूत किया. इसके तहत, भारत ने अमेरिकी हथियारों और रक्षा उत्पादों की खरीद भी की, जैसे एच-1 विमान और रक्षा उपकरण. 
  • कोरोना संकट का मिलकर किया सामना : COVID-19 महामारी के दौरान, भारत और अमेरिका ने एक-दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाया. भारत ने अमेरिका को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन जैसी दवाइयां भेजी, जबकि अमेरिका ने भारत को टीके और स्वास्थ्य आपूर्ति उपलब्ध कराई.

ट्रंप की वापसी से और बदलेंगे हालात, जयशंकर लगे रहे मिशन पर
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और अमेरिका के रिश्तों में कई महत्वपूर्ण बदलाव होने की संभावना है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ फोन  पर बात की. इस दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग को और गहरा करने और इंडो-पैसिफिक, मध्य पूर्व और यूरोप में सुरक्षा समेत अन्य अहम मुद्दों पर चर्चा की.  20 जनवरी को ट्रंप के शपथ लेने के बाद दोनों के बीच फोन पर यह पहली बातचीत थी. इसके बाद ट्रंप ने मीडिया को बताया कि प्रधानमंत्री मोदी फरवरी में अमेरिका के दौरे पर आएंगे. 

मेरी उनसे लंबी बातचीत हुई. वह अगले महीने, फरवरी में व्हाइट हाउस आने वाले हैं. भारत के साथ हमारे बहुत अच्छे रिश्ते हैं.

- डोनाल्ड ट्रंप

वहीं पीएम मोदी ने कहा, "हम अपने लोगों के कल्याण और वैश्विक शांति, समृद्धि और सुरक्षा के लिए मिलकर काम करेंगे." भारत की तरफ से कहा गया कि दोनों नेताओं ने पश्चिम एशिया और यूक्रेन में हालात समेत वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की और वैश्विक शांति, समृद्धि और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता दोहराई. दोनों नेताओं ने संपर्क में बने रहने और जल्दी ही मुलाकात करने पर सहमति जताई.

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जयशंकर के विदेश नीति का क्या है मूल आधार? 
जयशंकर का मानना है कि भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए और आत्मनिर्भर होना चाहिए. इसका मतलब है कि भारत को अपनी सुरक्षा, व्यापार और सामरिक ताकत को मजबूत करना चाहिए ताकि वह वैश्विक मामलों में प्रभावी भूमिका निभा सके.एस जयशंकर ने अपनी विदेश नीति में सुरक्षा को एक अहम पहलू माना है. खासकर भारतीय उपमहाद्वीप और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर ध्यान दिया गया है. साथ ही, भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को भी और सशक्त किया गया है. उन्होंने भारतीय पड़ोसियों के साथ बेहतर कूटनीतिक रिश्ते बनाए रखने और क्षेत्रीय संगठनों जैसे SAARC, BIMSTEC, और SCO के साथ सहयोग को मजबूत करने की दिशा में काम किया है.

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