भारत-अमेरिका संबंधों (India-US relations) को लेकर वर्ष 2023 कई मायनों में ‘ऐतिहासिक' साबित हुआ. एक ऐसा वर्ष जब एक भविष्योन्मुख पहल शुरू की गई और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) ने एक दुर्लभ राजकीय यात्रा के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) की मेजबानी की और फिर भारत की अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उनकी नयी दिल्ली की यात्रा संपन्न हुई. हालांकि, साल का अंत एक निराशाजनक घटनाक्रम के साथ हुआ, जब बाइडन प्रशासन ने न्यूयॉर्क की अदालत में एक अमेरिकी नागरिक को इस देश की धरती पर एक अलगाववादी सिख नेता की हत्या की साजिश रचने के लिए एक भारतीय अधिकारी का नाम लेते हुए आरोपपत्र दाखिल किया.
तथ्य यह है कि एक तरफ तो अमेरिका कथित साजिश पर आरोप पत्र के साथ अदालती कार्यवाही की तरफ बढ़ गया जबकि सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले के लिए जिम्मेदार लोगों और अमेरिका में शीर्ष भारतीय राजनयिकों को खुले तौर पर धमकियां मिलने के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. यह एक स्पष्ट प्रतिबिंब है कि जब दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र के बीच ‘‘विश्वास'' की बात आती है तो बहुत कुछ करने की आवश्यकता है.
वर्ष 2023 में, मोदी और बाइडन दोनों ने कई प्रयास किए और ऐसे कदम उठाए जिनका उद्देश्य दोनों देशों के बीच एक विश्वसनीय साझेदारी स्थापित करना था, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने ‘क्रिटिकल एंड इमरजेंसी टेक्नोलॉजी' (आईसीईटी) की शुरुआत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में अपने प्रतिनिधिमंडल को भेजने से की.
आईसीईटी, अमेरिका-भारत साझेदारी में एक प्रमुख मील का पत्थर है, जिसे रणनीतिक सुरक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग के तहत अहम माना जा रहा है.
दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार नए रिकॉर्ड पर पहुंच गया है. भारत सरकार अमेरिकी कंपनियों को देश में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने और अपनी मौजूदगी बढ़ाने की सुविधा के लिए कई कदम उठा रही है.
दूसरी ओर, बाइडन ने न केवल भारत के साथ जेट इंजन विनिर्माण सौदे को अभूतपूर्व मंजूरी दी, बल्कि भारत के लिए निर्यात नियंत्रण नियमों में ढील देने के लिए कई प्रशासनिक कदम भी उठाए.
द्विपक्षीय संबंधों को अगले स्तर पर ले जाने के लिए अपना दृढ़ संकल्प दर्शाते हुए, बाइडन ने जून में भारतीय प्रधानमंत्री की दुर्लभ राजकीय यात्रा के लिए मोदी को आमंत्रित किया, जिसके दौरान उन्होंने (बाइडन) न केवल व्हाइट हाउस के लॉन को रिकॉर्ड 15,000 भारतीय अमेरिकियों के लिए खोला, बल्कि उनके साथ आठ घंटे से ज्यादा वक्त बिताया.
इसके बाद 100 दिनों से भी कम समय में अमेरिकी राष्ट्रपति सितंबर में जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए नयी दिल्ली पहुंचे.
ऐसे समय में जब दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध पर बुरी तरह विभाजित थी और चीन तथा रूस के नेता शिखर सम्मेलन में भाग नहीं ले रहे थे, बाइडन ने यह सुनिश्चित किया कि जी-20 शिखर सम्मेलन सफल रहे.
बाइडन प्रशासन के अधिकारियों की आम टिप्पणियां थीं, ‘‘भारत की सफलता, अमेरिका की सफलता है.''
इस वर्ष शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों द्वारा अभूतपूर्व स्तर पर भारत का दौरा भी देखा गया. वित्त मंत्री जेनेट येलेन और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन जैसे शीर्ष नेताओं ने भारत की कई यात्राएं कीं.
वहीं, मोदी के नेतृत्व में भारत ने बोइंग से वाणिज्यिक विमान खरीदने के अरबों डॉलर के ऐतिहासिक सौदे को हरी झंडी देने से लेकर लंबे समय से लंबित सशस्त्र ड्रोन सौदे को मंजूरी देने तक समान स्तर पर प्रतिक्रिया व्यक्त की.
अक्टूबर तक, ऐसा प्रतीत हुआ कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र अब विश्वसनीय भागीदार हैं.
अभी भी विश्वसनीय साझेदारी नहीं !इस सब के बीच वर्ष की अंतिम तिमाही में दो घटनाओं से स्पष्ट रूप से पता चला कि इस रिश्ते को अभी भी ‘‘विश्वसनीय'' साझेदारी के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता. पहली घटना के तहत, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत सरकार और वैंकूवर में खालिस्तान समर्थक अलगाववादी की हत्या के बीच ‘‘संभावित'' संबंध के बारे में लगाए गए आरोपों को खुला अमेरिकी समर्थन था.
अमेरिकी नागरिक को मारने की साजिश का आरोप
दूसरी घटना के तहत, कनाडा के आरोपों के 100 दिनों से भी कम समय में, न्याय विभाग ने न्यूयॉर्क की एक संघीय अदालत में अभियोग दायर किया और अमेरिकी धरती पर एक अमेरिकी नागरिक को मारने की साजिश रचने का आरोप लगाया है. अलगाववादी सिख नेता का नाम नहीं बताया गया, लेकिन मीडिया रिपोर्ट में उसकी पहचान भारत में प्रतिबंधित संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस' के नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू के रूप में की गई है.
भारत ने कनाडाई आरोपों से इनकार किया है और बार-बार कहा है कि ओटावा ने मामले पर सबूत साझा नहीं किए हैं. वहीं, अमेरिकी अभियोग पर भारत ने आरोपों की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है. नई दिल्ली सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में अमेरिका की असमर्थता और खुलेआम अलगाववादी सिखों को देश में भारत विरोधी और खालिस्तानी आंदोलनों को संगठित करने और प्रचार करने की इजाजत देने से भी नाखुश है.
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