रूस-यूक्रेन और ईरान-इजराइल युद्धों में एक समानता स्पष्ट दिखाई देती है, जिस पक्ष ने बैलिस्टिक मिसाइलों का प्रभावी उपयोग किया, वही दुश्मन को अधिक नुकसान पहुंचाने या जीत हासिल करने में सफल रहा. इस सबक को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना अपने मिसाइल बेड़े को और सशक्त बनाने में जुट गई है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर ये मिसाइलें दुश्मन को निर्णायक रूप से नष्ट कर सकें. इसी उद्देश्य के तहत, सेना की स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (SFC) ने दो बैलिस्टिक मिसाइलों—अग्नि-1 और पृथ्वी-2—का सफल परीक्षण किया. ये मिसाइलें लॉन्च होने के बाद सीधे ऊपर आकाश की ओर जाती हैं और फिर नीचे उतरते हुए अपने लक्ष्य पर सटीक निशाना साधती हैं.
ओडिशा के चांदीपुर इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज में अग्नि-1 और पृथ्वी-2 मिसाइलों का परीक्षण किया गया, जिसमें सभी तकनीकी और परिचालन मानकों को सफलतापूर्वक पूरा किया गया. ये परीक्षण SFC के तत्वावधान में हुए, जो भारत के परमाणु हथियारों की देखरेख भी करता है. दोनों मिसाइलें परमाणु और पारंपरिक विस्फोटकों को ले जाने में सक्षम हैं. बैलिस्टिक मिसाइलों का एक प्रमुख लाभ यह है कि ये भारी मात्रा में विस्फोटक (पेलोड) ले जा सकती हैं. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित ये मिसाइलें अपने लक्ष्य को पूरी तरह नष्ट करने की क्षमता रखती हैं.
अग्नि-1 मिसाइल की रेंज लगभग 1,000 किलोमीटर है और यह 1,000 किलोग्राम तक का पेलोड ले जा सकती है. वहीं, पृथ्वी-2 की रेंज 250 से 350 किलोमीटर है, और यह 500 से 1,000 किलोग्राम तक का विस्फोटक ले जाने में सक्षम है. दोनों मिसाइलों की मारक क्षमता अत्यंत प्रभावी है. ये मिसाइलें पहले से ही भारतीय सेना में शामिल हैं, लेकिन वास्तविक युद्ध में उपयोग से पहले इनका समय-समय पर परीक्षण आवश्यक है.
पश्चिम एशिया और यूरोप में चल रहे युद्धों ने यह स्पष्ट किया है कि अब युद्ध का स्वरूप बदल चुका है. पारंपरिक आमने-सामने की लड़ाई की जगह मिसाइल युद्ध ने ले ली है, जिसमें लंबी दूरी से सटीक हमले किए जाते हैं. भारत द्वारा इन मिसाइलों का सफल परीक्षण इस बात का संकेत है कि सेना किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है.