विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा कि भारत के समुद्री हितों के बारे में बातचीत करते समय हिंद महासागर के बारे में बात करना और प्रशांत महासागर के बारे में बात नहीं करना, सीमित सोच को दर्शाता है. भारत को सोचने के ऐतिहासिक तौर-तरीकों से आगे जाना होगा. जयशंकर ने कहा, ‘‘हिंद-प्रशांत एक नयी रणनीतिक अवधारणा है जो दुनिया में चल रही है.''
अपनी पुस्तक ‘द इंडिया वे: स्ट्रटेजीस फॉर एन अनसर्टेन वर्ल्ड' के गुजराती अनुवाद के विमोचन समारोह में विदेश मंत्री ने कहा कि इस तरह का विचार एक तरह की हठधर्मिता है कि भारत को दूसरे देशों के मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत को विश्वास प्रदर्शित करना चाहिए, जिसकी कि कमी है क्योंकि हमारी आदतें हमें रोकती हैं.
जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत की विदेश नीति में 'सबका साथ और सबका विश्वास' में ‘अमेरिका को सहभागी बनाना, चीन को संभालना, यूरोप से संबंध बढ़ाना, रूस को समझाना और जापान को शामिल करना' निहित है.
उन्होंने कहा, ‘‘अभी तक हम जब समुद्रों के बारे में सोचते हैं तो हिंद महासागर के बारे में ही सोचते हैं. यह हमारी सीमित सोच है. हमारा 50 प्रतिशत से अधिक व्यापार पूर्व की तरफ, प्रशांत महासागर की तरफ होता है. हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच केवल नक्शे पर रेखा है, लेकिन वास्तविकता में ऐसी कोई चीज नहीं है.''
जयशंकर ने कहा, ‘हमें हमारी सोच में शामिल ऐतिहासिक नजरिये से परे सोचना चाहिए, क्योंकि हमारे हित बढ़े हैं. हिंद-प्रशांत इस दुनिया में एक नयी रणनीतिक अवधारणा है.'' चीन के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उसकी प्रगति से तथा भारत और उसके हितों पर उसके प्रभाव से सीखना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘‘चीन हमारा पड़ोसी देश है और एक तरीके से यह हमारा बड़ा पड़ोसी देश है. अगर हम इसकी शक्ति को, इसकी अर्थव्यवस्था को देखें, इसके विकास को देखें तो यह हमारा सबसे बड़ा पड़ोसी है. हमें यह भी देखना होगा कि उसकी प्रगति में और हम पर, हमारे हितों पर उसके प्रभाव में हमारे लिए कोई सबक तो नहीं है.''
जयशंकर ने कहा, ‘‘चीन की अर्थव्यवस्था हमारी अर्थव्यवस्था से चार गुना से ज्यादा है. मुझे लगता है कि हमारी सोच नकारात्मक के बजाय प्रतिस्पर्धी होनी चाहिए.''