मध्य प्रदेश में 90 फीसदी किसान जब बेच चुके फसल तो सरकार ने मूंग खरीद का पंजीकरण शुरू किया

मध्यप्रदेश (Madhya Peadesh) में ग्रीष्मकालीन मूंग के लिये पंजीयन पिछले दिनों 18 जुलाई से शुरू हो गया है. लेकिन राज्य सरकार का यह फैसला आश्चर्यजनक है क्योंकि मूंग की फसल जून के पहले हफ्ते में ही कट गई थी और इसके बाद किसान उसे बेचने भी लगे. कई किसानों का कहना है कि वो मूंग खुले बाजार में बेच चुके हैं और वो भी MSP से बेहद कम कीमत पर.

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मध्यप्रदेश सरकार ने मूंग खरीद के लिए पंजीकरण 18 जुलाई से शुरू किया है. ( फाईल फोटो)
भोपाल:

मध्यप्रदेश (Madhya Peadesh) में ग्रीष्मकालीन मूंग के लिये पंजीयन पिछले दिनों 18 जुलाई से शुरू हो गया है. लेकिन राज्य सरकार का यह फैसला आश्चर्यजनक है क्योंकि मूंग की फसल जून के पहले हफ्ते में ही कट गई थी और इसके बाद किसान उसे बेचने भी लगे. कई किसानों का कहना है कि वो मूंग खुले बाजार में बेच चुके हैं और वो भी MSP से बेहद कम कीमत पर. किसानों का कहना है कि पिछले साल तो जून में ही मूंग की खरीदी शुरू हो गई थी, इस बार इतनी देरी क्यों. बहरहाल. ये एक हकीकत है कि इस देरी से किसानों (Farmers)  को खासा नुकसान हुआ है.

लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि किसानों का नुकसान नहीं होगा. पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने कहा,”मूंग के दाम काफी कम है… हमारी सरकार प्रधानमंत्री ( Prime Minsiter) जी के नेतृत्नव में काम कर रही है.... किसानों को न्याय देंगे और मूंग की खरीददारी एमएसपी पर ही करेंगे.”

बहरहाल, मुख्यमंत्री जो भी  दावा करें लेकिन वास्तविकता यह है कि 18 जुलाई से मध्यप्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग के लिये पंजीयन शुरू हुआ है और यह 28 जुलाई तक चलेगा. फिर दावों की जांच होगी और इसके बाद अगस्त में खरीदारी शुरू होगी. किसान संगठनों का कहना है तबतक 90 फीसद किसान फसल बेच चुके होंगे.

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कटनी में पडखुरी गांव से कृषि उपज मंडी में खुर्रा चौधरी मूंग बेचने आये हैं. उन्हें कीमत मिली है 5500 रु/ क्विंटल जबकि सरकार ने जो MSP तय किया हुआ है वो है 7275 रू/ क्विंटल. इसी तरह कैलवारा खुर्द से आये राजाराम चौधरी की फसल 5700 रु प्रति क्विंटल पर बिकी. आखिर बारिश में उनके पास और इंतजार का विकल्प नहीं था. घुर्रा चौधरी कहते हैं,” मूंग 5500 बिकी है …सरकारी खरीदी चालू नहीं है …मजबूरी में बेचना पड़ता है.” राजाराम चौधरी भी कुछ ऐसा ही कह रहे हैं,” सोसायटी चालू ना होने का कारण मैं मंडी में बेच रहा हूं… पैसे की ज़रूरत है तो क्या करें..रेट 5700 पर ही बिक रही है.”

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नर्मदापुरम जिले की A ग्रेड मंडी में भी किसान कम दाम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं.  किसान लाल साहब बताते हैं कि अब समर्थन मूल्य पर फसल बेचेंगे तो दो माह बाद पैसा मिलेगा.  वहीं बरेली से आये किसान नितिन का कहना है अब खरीदी का कोई मतलब नहीं है. किसान लाल साहब कहते हैं,” मुझे लेबर का पैसा देना है, सरकार पहले खरीदती तो व्यवस्था बन जाती... घाटा तो सबको दिख रहा है... आनंद ले रहे हैं व्यापारी...किसान को बेचना मजबूरी है.” वहीं नितिन का कहना है,”हमें आज जरूरत है,समर्थन मूल्य पर कब खरीदेंगे कब पैसा आएगा… जरूरी नहीं है कि ये खरीदेंगे ही ...8 दिन पड़े रहेंगे तब खरीदेंगे... देरी हो गई है,   2 महीने पहले तैयार हो गई थी फसल.”

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बहरहाल, इस मामले पर कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है,”हमने भारत सरकार से 4 लाख मीट्रिक टन की मांग की थी लकिन हमको इजाजत 2 लाख की मिली है, 16 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है राज्य में.” जब NDTV ने उनसे पूछा कि अब तो करीबन 90 फीसद किसानों ने अपना माल बेच लिया है तो सरकार कैसे खरीदेगी, इस पर कमल पटेल का कहना था कि ऐसा नहीं है ...कुछ किसानों ने ही माल बेचा है और दूसरी बात कि ग्रीष्मकालीन मूंग की खरीदी समर्थन मूल्य पर होती ही नहीं थी ...और इस बार चुनाव की वजह से देरी हुई है.”

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गौरतलब है कि पूरे देश मैं जितनी मूंग की पैदावार होती है उसका 25% हिस्सा केंद्र सरकार खरीदती है. जबकि पूरे देश का 40% मूंग का उत्पादन केवल मध्यप्रदेश में ही होता है.

इस मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने खत लेकर ग्रीष्मकालीन मूंग में खरीदी में हो रही देरी को किसानों के प्रति अन्याय बताया था.

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