चेन्नई: तमिलनाडु के तिरुवन्नमलाई जिले में आज एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया. यहां अनुसूचित जाति के एक समुदाय के 300 से अधिक लोगों को, जिन्हें कई दशकों से एक मंदिर में प्रवेश से वंचित रखा गया था, आज तिरुवन्नमलाई जिले में जिला प्रशासन द्वारा पूजा के लिए मंदिर में ले जाया गया. ये मुद्दा एक पैरेंट्स-टीचर मीटिंग के दौरान प्रकाश में आया. इसके बाद क्षेत्र में उच्च समुदायों के साथ बैठकों की एक श्रृंखला के बाद ऐतिहासिक कदम संभव हो गया. हालांकि, किसी भी अप्रिय घटना को टालने के लिए मंदिर के बाहर भारी पुलिस बल तैनात रहा, क्योंकि गांव में 12 प्रभावशाली समूहों के उग्र विरोध के कारण स्थिति तनावपूर्ण है.
तिरुवन्नमलाई जिले के थेनमुडियानूर गांव में लगभग 500 अनुसूचित जाति के परिवार रहते हैं. इस समुदाय को 80 साल से अधिक समय से 200 साल पुराने मंदिर में प्रवेश से वंचित रखा गया था. प्रभावशाली समुदाय नहीं चाहते थे कि दलितों को इस मंदिर में प्रवेश मिले. उनका कहना था कि समुदाय दशकों पहले विभिन्न मंदिरों में प्रार्थना करने के लिए सहमत हुए थे, और अब उस तथाकथित परंपरा में किसी बदलाव की आवश्यकता नहीं है. ऐसे में प्रभावशाली समुदायों के 750 से अधिक लोग इस कदम का विरोध कर रहे हैं और मंदिर को सील करने की मांग कर रहे हैं. इस वजह से मंदिर के बाहर भारी पुलिस बल तैनात किया गया है.
अनुसूचित जाति के लिए मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के लिए उच्च समुदायों को मनाने के लिए जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक ने शांति समिति की बैठकों की एक श्रृंखला का नेतृत्व किया. बताया जा रहा है कि यह पोंगल उत्सव का हिस्सा है और अगर सब कुछ पुलिस की योजना के अनुसार हुआ, तो अनुसूचित जाति के लोगों को मंदिर के अंदर ले जाया जाएगा. दलितों को पोंगल तैयार करने, प्रार्थना करने और अनुष्ठान करने की अनुमति दी जाएगी.
अनुसूचित जाति समुदाय के लगभग 15 से 20 परिवार मंदिर में जाकर पूजा करने के लिए आगे आए हैं और पुलिस को उम्मीद है कि यह एक नई शुरुआत हो सकती है. अन्य लोग भी बाद में आएंगे, और यह 'सांप्रदायिक विभाजन' को तोड़ सकता है, जैसा कि कई लोग कहते हैं.