जलविद्युत परियोजनाओं से हिमालय में आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है: विशेषज्ञों ने कहा

केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2015 में किये गये एक अध्ययन में राज्य सरकार को स्पष्ट रूप से सूचित किया गया था कि तीस्ता पर ज्यादातर जलविद्युत परियोजनाओं से ऐसी घटनाओं का अधिक खतरा है.

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नई दिल्ली: पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने चेताया है कि संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण के दौरान मानदंडों के उल्लंघन से पर्वतीय राज्यों में आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है. पिछले सप्ताह सिक्किम में ल्होनक झील में हिमनद झील के फटने से आई बाढ़ के कारण मंगन, गंगटोक, पाकयोंग और नामची जिलों में जबरदस्त नुकसान हुआ था. इस घटना के कारण चुंगथांग बांध भी टूट गया था जिसे तीस्ता-3 बांध भी कहा जाता है.

विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि तीस्ता नदी पर बने बांधों की श्रृंखला ने आपदा को बढ़ावा दिया और प्रस्तावित तीस्ता चार बांध को रद्द करने की मांग की. पिछले दो दशकों में कई बार सरकारी एजेंसियों और शोध अध्ययनों में सिक्किम में हिमनद झील में बाढ़ के संभावित प्रकोप (जीएलओएफ) के बारे में चेताया गया है जिससे जानमाल का काफी नुकसान हो सकता है.

केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2015 में किये गये एक अध्ययन में राज्य सरकार को स्पष्ट रूप से सूचित किया गया था कि तीस्ता पर ज्यादातर जलविद्युत परियोजनाओं से ऐसी घटनाओं का अधिक खतरा है.

‘अफेक्टेड सिटिजन्स ऑफ तीस्ता' (एसीटी) के महासचिव ग्यात्सो लेप्चा ने कहा, ‘‘1,200 मेगावाट की तीस्ता-3 पूरी तरह बह गई. यह बांध ल्होनक झील से केवल 30 किलोमीटर दूर बनाया गया था. राज्य सरकार घटिया निर्माण के लिए पिछली सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है. पिछली सरकार जीएलओएफ पर आरोप लगा रही है, लेकिन इतने संवेदनशील इलाके में बांध के निर्माण पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है.''

उन्होंने कहा, ‘‘यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है, और अब हम जवाबदेही के साथ-साथ प्रस्तावित तीस्ता चार बांध परियोजना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं.' विशेषज्ञों ने कहा कि बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण हिमालय के हिमनदों का पिघलना तेज हो गया है और तीस्ता नदी पर बने बांधों के कारण बाढ़ का प्रभाव और तीव्रता गंभीर रूप से बढ़ गई है.

लेप्चा ने कहा कि अधिकारियों ने हालांकि स्थानीय विरोध की लगातार उपेक्षा की है और सभी सामाजिक और पर्यावरण संबंधी नियमों की अनदेखी की है. उन्होंने कहा कि प्रशासन को विशेष रूप से पता था कि दक्षिण ल्होनक झील तीस्ता नदी के बांधों के लिए खतरा है.

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‘साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपुल (एसएएनडीआरपी) के समन्वयक हिमांशु ठक्कर ने कहा, ‘‘चुंगथांग के अधिकारियों को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (जल स्तर में वृद्धि के बारे में) द्वारा सूचित किया गया था, और रात 10:40 बजे से 11:40 बजे तक, उनके पास बांध के गेट खोलने के लिए एक घंटे का समय था. इलेक्ट्रॉनिक रूप से संचालित गेट को खुलने में कुछ मिनट लगते हैं.''

अरुणाचल प्रदेश के पर्यावरण कार्यकर्ता एबो मिली ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में 1,500 हिमनद झील हैं, और इस तरह की झीलों की संख्या उनके जिले में सबसे अधिक है. उन्होंने कहा कि जब बांध बनते हैं, तो आपदा अपरिहार्य है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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