कैसे हो कट्टरपंथ का मुकाबला? बांग्लादेश को मालदीव के पूर्व उपराष्ट्रपति ने दी ये बड़ी नसीहत

नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस समेत बांग्लादेश के अंतरिम नेतृत्व को जब संदेश के बारे में पूछा गया तो मालदीव के पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन राष्ट्र स्थायी होते हैं. अगर प्रत्येक नेता जनता की भलाई के लिए काम करे, तो शांति जरूर आएगी.

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बांग्लादेश पर क्या बोले मालदीव के पूर्व उपराष्ट्रपति.
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  • मालदीव के पूर्व उपराष्ट्रपति फैसल नसीम ने बांग्लादेश में शांति बहाली के लिए समान अवसर पर जोर दिया.
  • उन्होंने कहा कि राजनीतिक अस्थिरता दूर करने के लिए जनता को अपना भविष्य तय करने का मौका मिलना चाहिए.
  • नसीम ने दक्षिण एशिया में कट्टरपंथ से निपटने के लिए संवाद, निष्पक्षता और सामुदायिक भागीदारी को आवश्यक बताया.
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नई दिल्ली:

बांग्लादेश में इन दिनों जो भी चल रहा है, उसकी चर्चा दुनियाभर में हो रही है. बांग्लादेश में शांति बहाली कैसे हो, और कट्टरपंथ से कैसे निपटा जाए, जिस पर मालदीव के पूर्व उपराष्ट्रपति फैसल नसीम ने NDTV पर खुलकर अपनी बात रखी. उन्होंने बांग्लादेश में स्थिरता बहाली के लिए समावेशी लोकतंत्र और समान अवसर की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दक्षिण एशिया में कट्टरपंथ का मुकाबला संवाद, निष्पक्षता और सामुदायिक भागीदारी के जरिए ही किया जा सकता है. उन्होंने ये बात एनडीटीवी के आदित्य राज कौल से खास बातचीत में कही.

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बांग्लादेश में कैसे लौटेगी शांति?

फैसल नसीम ने कहा कि बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और अशांति का समाधान तभी हो सकता है, जब लोगों को निष्पक्ष प्रक्रियाओं के जरिए अपना भविष्य स्वतंत्र रूप से तय करने की अनुमति दी जाएगी. उन्होंने कहा कि सभी के लिए समान मौके होने चाहिए. किसी देश पर शासन करने के लिए कोई विशेष समूह या व्यक्ति की जरूरत नहीं. इसका फैसला जनता को करना चाहिए.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र तभी काम करता है जब भागीदारी खुली और निष्पक्ष हो. चुनावों के अभाव और निरंतर अशांति का जिक्र करते हुए नसीम ने कहा कि बांग्लादेश के नेताओं को इन मुद्दों पर गहराई से विचार करने की जरूरत है. उनको अपनी जनता को मौका देना चाहिए.

नेताओं को जनता की भलाई के लिए काम करना चाहिए 

नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस समेत बांग्लादेश के अंतरिम नेतृत्व को जब संदेश के बारे में पूछा गया तो मालदीव के पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन राष्ट्र स्थायी होते हैं. अगर प्रत्येक नेता जनता की भलाई के लिए काम करे, तो शांति जरूर आएगी.

नसीम ने दक्षिण एशिया में कट्टरपंथ की चुनौती पर विस्तार से बात करते हुए बांग्लादेश में इस्लामी समूहों के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई. उन्होंने मालदीव के अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि समुदायों को शामिल करके, उनकी शिकायतों का समाधान करके और अवसरों तक समान पहुंच सुनिश्चित करके कट्टरपंथ को कम किया जा सकता है.

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असमानता ही अक्सर असंतोष को बढ़ाती है

उन्होंने कहा कि नेताओं का दायित्व है कि वे लोगों से बात करके, उन्हें साथ लेकर और सभी का सम्मान करके मुद्दों का समाधान करें. शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार में असमानता ही अक्सर असंतोष और उग्रवाद को बढ़ाती है. जब लोगों को लगेगा कि उनके साथ समान व्यवहार हो रहा है, तो स्थिति बेहतर होने लगेगी.

उन्होंने कहा कि हालांकि मालदीव को उग्रवाद से संबंधित छिटपुट चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, लेकिन मजबूत सामुदायिक भागीदारी और समावेशी शासन ने समाज को काफी हद तक शांतिपूर्ण बनाए रखने में मदद की है. बता दें कि मालदीव के पूर्व उपराष्ट्रपति ने ये बातें नई दिल्ली में इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित 8वें अटल बिहारी वाजपेयी व्याख्यान के दौरान कहीं. इस दौरान उन्होंने क्षेत्रीय स्थिरता और हिंद महासागर क्षेत्र के छोटे द्वीपीय देशों के लिए एक प्रमुख भागीदार के रूप में भारत की भूमिका पर भी चर्चा की.

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