दिल्ली में 52.9 पारे का राज़ क्या? क्या आपको पता है शहरों का तापमान कैसे मापता है मौसम विभाग

राष्ट्रीय राजधानी में भीषण गर्मी का प्रकोप जारी है और यहां के कई इलाकों में अधिकतम तापमान 48 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया, मौसम कार्यालय ने कहा कि दिल्ली के लिए सोमवार को ‘रेड अलर्ट’ जारी किया गया था और अगले तीन दिनों तक ऐसा ही रहेगा.

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राजस्थान के फलोदी में तापमान 49.4 डिग्री सेल्सियस रहा.
नई दिल्ली:

उत्तर भारत में प्रचंड गर्मी जारी है. दिल्ली के मंगेशपुर में तो बुधवार को पारा 52.9 पर पहुंच गया. दिल्ली में इसके बाद बारिश ने कुछ राहत दी, लेकिन गर्मी का सितम अभी जारी रहेगा. दिल्ली के मंगेशपुर स्टेशन पर दर्ज किए गए 52.9 डिग्री के टेंपरेचर ने हर किसी को हैरान किया. ऐसा नहीं है कि दिल्ली में गर्मी नहीं पड़ रही है, लेकिन पारा इस लेवल तक चला जाएगा, इस पर यकीन नहीं हो रहा. मौसम विभाग भी इसको लेकर थोड़ा असमंजस में है. वह जांच करेगा कि यह आकंड़ा सही है की नहीं. कहीं सेंसर के कारण कुछ गड़बड़ी तो नहीं हुई है. भई जब गर्मी के कारण इंसान के सेंसर हिले हुए हैं, तो यह तो मशीन है. खैर, सबके मन में सवाल उठता है कि आखिर मौसम विभाग हर दिन अलग अलग शहरों में तापमान को कैसे नापता है. इसके लिए कोई थर्मामीटर-वर्मामीटर नहीं होता है. जैसा कि सामान्यतौर पर दिमाग में आता है. पारे को नापने के एक खास तरीका होता है. मौसम विज्ञान विभाग कई उपकरणों की मदद से तापमान को मापता है. सटीक तापमान का पता लगाने के लिए स्टीवेन्सन स्क्रीन (Stevenson screen) का प्रयोग किया जाता है. अधिकतम और न्यूनतम तापमान और आर्द्रता का स्तर स्टीवेन्सन स्क्रीन की मदद से आसानी से पता चल जाता है. आखिर किस तरह से स्टीवेन्सन स्क्रीन (Stevenson Screen Uses) के जरिए तापमान मापा जाता है, आइए विस्तार से जानते हैं.

स्टीवेन्सन स्क्रीन (Stevenson screen) क्या है

स्टीवेन्सन स्क्रीन को स्कॉटिश सिविल इंजीनियर थॉमस स्टीवेन्सन ने डिजाइन किया था. थॉमस स्टीवेन्सन ने ही लाइटहाउस डिजाइन किया था. स्टीवेन्सन स्क्रीन का उपयोग अधिकतम और न्यूनतम तापमान और आर्द्रता को मापने के लिए विश्व स्तर पर होता है. ये एक बॉक्स के आकार का होता है, जो लकड़ी से बना होता है. इसके अंदर चार थर्मामीटर ड्राई बल्ब (DB), वेट बल्ब (WB), अधिकतम और न्यूनतम (अधिकतम और न्यूनतम) होते हैं. इस बॉक्स को केवल सफेद रंग से रंगा जाता है.

किस जगह इसे रखा जाए, इसका चयन भी काफी सोच समझकर किया जाता है. स्क्रीन को खुली हवा में रखा जाता है और सटीक अधिकतम तापमान मिल सके इसलिए थर्मामीटर को सीधे सूर्य की रोशनी या किसी भी गर्मी के स्रोत के पास नहीं रखा जाता है. इसकी ऊंचाई आमतौर पर जमीन से लगभग 4 फीट होती है. बॉक्स की फेसिंग नॉर्थ की तरफ होती है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि सूर्य की किरणें डायरेक्ट उसके अंदर न पड़े.

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अधिकतम तापमान का कैसे पता चलता है

अधिकतम तापमान थर्मामीटर सुबह 8:30 बजे सेट किया जाता है. दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे के बीच, स्क्रीन अधिकतम तापमान रिकॉर्ड करती है. चरम पर पहुंचने के बाद, यह एक विशेष डिग्री सेल्सियस पर स्थिर रहता है, जिसे एक पर्यवेक्षक हर दिन शाम 5:30 बजे मैन्युअल रूप से रिकॉर्ड करता है. वहीं मिनिमम टेंप्रेचर सुबह साढ़े आठ बजे मापा जाता है. 

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ह्यूमिडिटी की भी लगता है पता 

ह्यूमिडिटी मापने के लिए ड्राई बल्ब (DB) और वेट बल्ब (WB) का प्रयोग होता है. ये उपकरण सुबह 5.30 बजे से चौबीसों घंटे तक शुष्क और गीली हवा का मापन करते हैं. इन थर्मामीटरों की मदद से आसानी से पता चल जाता है कि किसी स्थान पर कितनी ह्यूमिडिटी है. (भाषा इनपुट के साथ)

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