असम में एक महिला को स्वदेशी और फिर विदेशी घोषित किए जाने का अजीब मामला सामने आया. ट्रिब्यूनल ने पहले उसे भारतीय और पांच साल से कम समय बाद विदेशी घोषित किया. इस कार्यवाही ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय को परेशान किया और उसने न्यायाधिकरण को खिंचाई की. कोर्ट ने उस महिला को डिटेंशन कैंप से रिहा करने का आदेश दिया है. दारांग जिले में ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किए जाने के बाद हसीना भानु 19 अक्टूबर से तेजपुर जेल के अंदर तेजपुर डिटेंशन कैंप में बंद थी.
अगस्त 2016 में उसी ट्रिब्यूनल ने कहा था कि हसीना भानु विदेशी या अवैध प्रवासी नहीं है. लेकिन पिछली बार उसके मामले को संभालने वाली श्यामपुर पुलिस स्टेशन की सीमा पुलिस शाखा ने उसे फिर से उसी ट्रिब्यूनल में भेज दिया था. 18 मार्च को ट्रिब्यूनल ने उसे विदेशी घोषित कर दिया. उसे गिरफ्तार कर डिटेंशन कैंप में रखा गया.
कोर्ट ने अपने आदेश में ट्रिब्यूनल के आदेश को लेकर कड़ी टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट की एक मिसाल का हवाला देते हुए जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह ने कहा, "हम यह समझने में असमर्थ हैं कि ट्रिब्यूनल ने मामले की जांच कैसे की." उन्होंने कहा कि "हमारी राय है कि अब्दुक कुद्दुस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर, ट्रिब्यूनल मामले को आगे नहीं बढ़ा सकता था और इस तरह, दूसरी कार्यवाही अवैध होगी."
न्यायाधीश ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 141 के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा, जो कहता है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून "हर न्यायालय और न्यायाधिकरण पर बाध्यकारी होगा."
अदालत ने कहा कि ट्रिब्यूनल को पता था कि याचिकाकर्ता वही व्यक्ति है जिसे पहले भारतीय घोषित किया गया था, और इसलिए दूसरे आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता है.
अदालत ने कहा, "याचिकाकर्ता को भारतीय नागरिक होने के बावजूद एक शिविर में नजरबंदी का सामना करना पड़ा और अब उसे रिहा किया जाएगा."
पहले भी ऐसे मामले सामने आए हैं जब असम सीमा पुलिस की जांच और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के आदेश अदालतों के दायरे में आए हैं और विदेशी घोषित किए गए लोगों को अदालतों द्वारा भारतीय नागरिक के रूप में नामित किया गया.