- अमित शाह ने पीएम मोदी को एक सामान्य कार्यकर्ता से लेकर प्रधानमंत्री तक हर स्तर पर सफल नेतृत्वकर्ता बताया
- उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की विदेश नीति रक्षा को प्राथमिकता देती है और आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है
- अमित शाह ने बताया कि मोदी जी मीटिंग में सभी की राय सुनते हैं और देशहित में सामूहिक निर्णय लेते हैं
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को NDTV से एक्सक्लूसिव बातचीत की. इसमें उन्होंने पीएम मोदी के साथ अपनी दोस्ती, काम करने के अनुभव और जीएसटी रिफॉर्म सहित देश से जुड़े कई मुद्दों पर खुलकर बात की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यक्षमता और नेतृत्व क्षमता के बारे में उन्होंने कहा कि उनके साथ हर स्तर पर काम करने का अनुभव उन्हें मिला है. वो ऐसे नेता हैं, जो संगठन के सामान्य कार्यकर्ता से लेकर प्रधानमंत्री तक की भूमिका में हर कसौटी पर खरे उतरे हैं. यहां पढ़ें एनडीटीवी के एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल के साथ अमित शाह का पूरा इंटरव्यू...
सवाल: आपने करीब 43 साल तक नरेंद्र मोदी को अलग-अलग रूप में देखा है. प्रचारक से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक, एक पॉलिटिकल स्टूडेंट के तौर पर आपने प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व और काम करने के तरीके को कैसे चेंज होते देखा है?
गृह मंत्री अमित शाह: हर व्यक्ति के जीवन में अनेक लेवल आते हैं. बचपन से लेकर अपने शिखर तक जो वो पहुंचते हैं. बड़ा वही होता है, जो हर स्तर पर अपनी भूमिका के अनुरूप अपने आपको ढाल दे. मैंने मोदी जी को जिला स्तर पर भी काम करते हुए देखा है. प्रदेश स्तर पर संघ का काम करते हुए भी देखा है. प्रदेश स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के संगठन में भी काम करते हुए देखा है. राष्ट्रीय स्तर पर भी बीजेपी का काम करते हुए देखा है. एक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में भी देखा है और फिर प्रधानमंत्री के रूप में देखा है. चूंकि हम दोनों गुजरात से आते हैं, काम करने का कालखंड कमोबेश आठ-दस साल आगे पीछे रहा. तो हर स्तर पर काम करने का मुझे मौका मिला है. दोनों पूरा जीवन एक ही पार्टी और विचारधारा के लिए काम करते रहे. तो लंबे समय तक मैंने उनको बहुत नजदीक से काम करते देखा है. उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि हर स्तर की भूमिका के लिए वह अपने आपको ढालने में सफल रहे.
मैं विशेषकर राजनीति की बात करूंगा. जब आप एक कार्यकर्ता के रूप में काम करते हो, तब लिए निर्णयों की आत्मा को समझकर उसका पालन करना बहुत बड़ी बात होती है. उस वक्त आपको फैसले नहीं लेने हैं. लेकिन उस निर्णय के पीछे मंशा क्या है नेतृत्व की, वह समझना और मंशा के साथ उसे लागू करना बहुत जरूरी होता है. जब आप सामूहिक निर्णय में आते हो तो सब निर्णय पर सबके विचार सुनना, विचार व्यक्त होने देना, उसमें से अच्छा निकाल देना, एक सामूहिक निर्णय होने देना, यह आपकी भूमिका बनती है. जब आप सर्वोच्च नेता बनते हो, तो अपने सुझाव थोपे बगैर सभी के सुझाव में से समस्या का निराकरण ढूंढना, उसने अपने अनुभव इनपुट डालना और फिर निर्णय को लोकहित बनाना और वह ठीक से लागू हो, इसकी मॉनिटिरिंग करना. इन सब भूमिका में मैंने मोदी जी को देखा है. बहुत अच्छे तरीके से मोदी जी ने एक सामान्य कार्यकर्ता से लेकर राज्य मुख्यमंत्री तक संगठन से लेकर नीति निर्धारण करने वाले नेता तक, भी भूमिकाओं में जिम्मेदारी का निर्वहन करते देखा है.
यह बहुत बड़ी खूबी है, जो बहुत कम लोगों में होती है. कुछ बहुत अच्छे कार्यकर्ता होते हैं, लेकिन जब जिम्मेदारी देते हैं, तब वे अच्छे से परफॉर्म नहीं कर पाते हैं. कुछ अच्छे कार्यकर्ता नहीं होते हैं, लेकिन जिम्मेदारी देते हैं, तो उनके नेतृत्व के गुण बहुत अच्छी तरह से बाहर आते हैं. वह सफल नेता बनते हैं. मोदी जी ने कार्यकर्ता, संगठक, मुख्यमंत्री, जनप्रतिनिधि और प्रधानमंत्री, इन सभी भूमिकाओं को बहुत सफलता से निभाया है. ऐसा बहुत कम लोगों में दिखाई पड़ता है.
सवालः अभी क्रिकेट की भाषा में बात करें, तो मोदी जी की इस सरकार की पारी अभी मिड इनिंग में है. लेखक, विश्लेषक, इतिहासकार अपनी-अपनी कहानियां लिखेंगे. आप जब भीतर से देखते हैं तो आपके हिसाब से इस सरकार की और पीएम मोदी की लेगेसी को आप कैसे डिफाइन करते हैं?
अमित शाहः सबसे पहले जो प्रधानमंत्री जी ने जो कुछ चीजें प्रमुखता से पूरे देश की सोच बदलने वाली की हैं, मैं बताना चाहता हूं. किसी ने भी संपूर्ण समस्या के निवारण के रूप में नहीं देखा था. जैसे आवासविहीन लोगों के लिए आवास देना, यह लगभग अलभग 80 के दशक से शुरू हुआ था. लेकिन यह कभी भी यह कल्पना नहीं हुई कि हर परिवार के एक आवास देंगे. मोदी जी ने 3 करोड़ आवास दे दिए. नई टर्म की पहली कैबिनेट में और 2 करोड़ आवासों के लिए फैसला दिया. जब यह टर्म समाप्त होगा, तो 7 करोड़ तक लोगों को आवास मिल जाएगा. हर सरकारों ने गैस का सिलेंडर दिया.कुल मिलाकर 10 करोड़ सिलेंडर दिया. मोदी सरकार ने अब तक 14 करोड़ सिलेंडर दे दिए इसमें से 10 करोड़ अत्यंत गरीब परिवारों को दिए. हर घर के गरीब को धुएं से मुक्त करने का काम कर दिया. हर घर में पीने का पानी, हर व्यक्ति को 5 किलो अनाज, हर परिवार को पांच लाख तक की सुविधाएं. एक प्रकार से सभी प्रकार से सभी समस्याओं के संपूर्ण निराकरण का दृढ़ निश्चय लेने का हौसला उन्होंने बताया है, और उसे पूरा भी किया है. यह बहुत बड़ी बात है. समस्या के सामने लड़ना सबका स्वभाव होता है. समस्या पर संपूर्ण विजय प्राप्त करना, इस प्रकार का फैसला करना और उसको समाप्त करना, यह बहुत बड़ी बात है.
दूसरी बात इस देश की रक्षा नीति हमेशा डिप्लोमेसी से प्रभावित रही. पहली बार हमने देखा कि देश की रक्षा का प्रायॉरिटी मिली और इसके आधार पर विदेश नीति तय होती है. जब जब भी पाकिस्तान की ओर से आतंकी हमले के प्रयास हुए तो हमने क्षण भर की भी देर किए बिना हमारा कमिटमेंट जाहिर किया. और एक महीने से कम समय के अंदर ऐसा जवाब दिया, जो दशकों तक पाकिस्तान को याद रहे. यह सुनिश्चित किया कि भारतीयों का खून बहाने के लिए नहीं है. और कोई दिस्साहस करेगा, तो उसे कठोरता से दंड दिया जाएगा.
सबसे बड़ी बात लंबे समय के गुलामी के कालखंड, मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक, एक सामूहिक हीनभावना जनमानस के अंदर बना था. किसी व्यक्ति के मन की हीनभावना दूर करना सरल होता है, लेकिन जनमानस का दूर करना बड़ा कठिन होता है. मोदी जी ने 2047 के लिए महान, आत्मनिर्भर और पूर्ण विकसित भारत की कल्पना रखी. और देश की जनता का सामूहिक हीनभाव एक प्रकार से दूर हो गया. आज देश के 140 करोड़ जनता के मन में विश्वास है कि देश की आजादी की शताब्दी पर देश हर क्षेत्र में दुनिया पर सर्वोच्च स्थान पर हो. जब कोई नेता जनता के मन में ऐसा आत्मविश्वास भरता है, तो वो देश के विकास का मूल कारण बनता है. नरेंद्र मोदी जी ने हर मन में यह आत्मविश्वास भरा कि हर क्षेत्र में हम अच्छा कर सकते हैं. हर क्षेत्र में भारतीय आगे होना चाहिए और हर क्षेत्र में हर परिणाम भी ला सकते हैं. सबके मन में एक ही लक्ष्य तय हो गया है कि हम 2047 में महान भारत की रचना में जुट जाएं. मैं मानता हूं कि नेतृत्व का बहुत बड़ा गुण है.
सवालः पीएम मोदी के लीडरशिप स्टाइल की बड़ी चर्चा होती है. जब वह मीटिंग लेते हैं या कैबिनेट हो, तो वह कैसा होता है. बाहर धारणा यह रहती कि पीएम मोदी बहुत सख्त हैं और सब उनसे बहुत डरते हैं?
अमित शाहः जो यह छवि बनी है, काफी लोगों को अच्छी नहीं लगती. मुझे कमोबेश अच्छी ही लगती है. नरेंद्र मोदी बहुत अच्छे श्रोता हैं. मैंने उनसे धैर्यवान श्रोता नहीं देखा है. मीटिंग का नेतृत्व करते हुए वह सबसे अंत में बोलते हैं. विषय कैबिनेट के अंदर किसी भी डिपार्टमेंट का हो, सभी कैबिनेट के मंत्रियों को मंतव्य देने का थके बगैर मौका देते हैं. सभी खुलकर पीएम मोदी के सामने अपनी बात रखते हैं. विचार-विमर्श के आधार पर बहुत परिपक्व फैसले होते हैं. फैसले लेने के बाद भी अगर उसमें बदलवा करना जरूरी है, तो बदलाव करते हुए भी मैंने मोदी जी को कभी झिझकते हुए नहीं देखा है. उनके लिए सबसे ऊपर देश का हित और देश की जनता की सुविधाएं होती हैं.
सवालः पीएम मोदी कैबिनेट या लीडरशिप के लिए किसी को चुनते हुए क्या-क्या गुण देखते हैं?
अमित शाहः लीडरशिप के फैसले अकेले पीएम नहीं लेते हैं. ढेर सारे साथी बैठते हैं. राज्य की टीम एक पैनल बनाती है. पैनल के बाद संसदीय बोर्ड के सदस्य और राष्ट्रीय अध्यक्ष मशविरा करते हैं. इसके बाद मोदी जी को ब्रीफ किया जाता है. तब फैसला लिया जाता है.
सवालः पीएम मोदी को हार्ड टास्क मास्टर माना जाता है?
अमित शाहः हार्ट टास्क मास्टर होना बुरा है या खराब, यह इस पर निर्भर करता है कि टास्क क्या है. टास्क अगर जनता की भलाई, देश की सुरक्षा के लिए, देश के अर्थ तंत्र को गति देने का है, या देश में गरीबी दूर करने का है, तो हार्ड टास्क मास्टर होना ही चाहिए. मैंने उनको कभी निजी उद्देश्य के लिए काम करते हुए नहीं देखा है.
सवालः क्रिकेट का टूर्नामेंट चल रहा है. क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो पीएम मोदी इस वक्त सर्वोच्च बल्लेबाज नजर आते हैं. क्या इसकी वजह यह है कि वे बाकियों से बेहतर बल्लेबाज हैं या फिर विपक्ष के बल्लेबाज ही कमजोर हैं?
अमित शाहः पूरा देश और दुनिया मानती है कि पीएम मोदी भारत के अब तक के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं. कुल मिलाकर सबसे ज्यादा समय सीएम और पीएम के तौर पर ऑफिस में रहने वालों में पीएम मोदी ही माने जाते हैं. इसका कारण यह है कि मोदी जी को सबको साथ में रखने की कला भी आती है और हर समस्या के अनुरूप फैसले लेने की कला भी आती है. चाहे विरोधी कुछ भी कहें, मैंने मोदी जी को हमेशा से साथियों को मुक्त रूप से सुनने वाले श्रोता के रूप में पाया है. वह सुनते भी हैं और मार्गदर्शन भी करते हैं.
सवालः क्या आपको लगता है कि पीएम मोदी आज भी उतने ही ऊर्जावान हैं या आपको लगता है कि जैसे-जैसे वक्त जा रहा है, एनर्जी का लेवल कम हो रहा है?
अमित शाहः पिछले 24 साल से मैंने इस देश में एक ही व्यक्ति ऐसा देखा है, जिसने एक भी छुट्टी नहीं ली है. ऐसा नेतृत्व बहुत कम मिलता है. ऊर्जा कम होने का सवाल ही नहीं है. उल्टी ऊर्जा बढ़ती है. ज्यादा कड़े लक्ष्य तय होते हैं, ज्यादा कड़े फॉलोअप होते हैं और बहुत अच्छे तरीके से योजनाएं बनती हैं.
सवालः पीएम मोदी को आप दोस्त मानते हैं या बॉस मानते हैं?
अमित शाहः वे मेरे नेता हैं. जो एक कार्यकर्ता और नेता का संबंध होता है, वैसा ही हम दोनों का है. हमारे कल्चर में सब साथी होते हैं.
सवालः क्या अमित शाह और नरेंद्र मोदी के बीच किसी मुद्दे पर मतभेद होते हैं, या जो वो कहते हैं आप उसमें हामी भर देते हैं?
अमित शाहः चर्चा हमेशा ही होती है, स्वस्थ चर्चा होती है, लेकिन फैसला नेता करते हैं.
सवालः आपके हिसाब से आने वाले वक्त में क्या वो एजेंडा है, जो प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में पूरा करना है?
अमित शाहः हमने देश के सामने 2047 तक का लक्ष्य रख दिया है. हम तब तक सत्ता में रहें ना रहें, हम विपक्ष के तौर पर भी इसमें योगदान करते रहेंगे. देश के विकास में सहयोग करेंगे. सरकार का काम सिर्फ अपने कार्यकाल के लिए नहीं बल्कि देश के लिए होना चाहिए.
सवालः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी एक अलग छवि बनी है, इसको बारे में आपका क्या कहना है?
अमित शाहः पीएम की ये छवि बनाई नहीं गई है, ये बनते-बनते बनी है. एक अत्यंत गरीब परिवार के बच्चे से लेकर, संगठन का काम करते हुए, सरपंच का भी चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को सफल मुख्यमंत्री बनते हुए, फिर प्रधानमंत्री बनते हुए और ढेर सारे असंभव कामों को अंजाम देते हुए पूरे देश और दुनिया ने अचंभित होते हुए देखा है. ये पर्सनालिटी बनाने से नहीं बनती है. कठोर परिश्रम, त्याग और संयम से होता है.
सवालः धारणा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हारना पसंद नहीं है?
अमित शाहः ये तो किसी को पसंद नहीं होता है और जीत का निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि आप किसे जीत मान लेते हो. जैसे राम और रावण की लड़ाई में दोनों जीतना चाहते थे, लेकिन राम का उद्देश्य सत्यशील था. इसीलिए विजय का महत्व है. हारने का स्वभाव किसी का नहीं होता है. रखना भी नहीं चाहिए, लेकिन जीत का उद्देश्य सीमित नहीं होना चाहिए. देश और दुनिया के लिए होना चाहिए.
सवालः क्या आपने कभी पीएम मोदी को सेहत का खयाल रखने को लेकर छुट्टी लेने की सलाह दी है?
अमित शाहः मैंने कभी भी उनके फैसलों पर और काम करने की गति पर इसका असर नहीं देखा है, फिर उन्हें छुट्टी लेने की सलाह क्यों देना.
सवालः प्रधानमंत्री मोदी पहले अपने फैसलों को लागू करवाने की चाह रखते थे, लेकिन अब वो कई फैसलों को स्टैंडिंग कमेटी में भेजने पर सहमत होते हैं, क्या ये कार्यशैली में एक बदलाव है.
अमित शाहः ये निर्भर करता है वो फैसला किस प्रकार का है, जैसे मैं आपको बताता हूं, अपराधी न्याय प्रणाली के तीनों कानून 150 साल के बाद जब बदल रहे हैं, इनकम टैक्स जब इतने साल के बाद परिवर्तन होता है तो वो ऐसे ही नहीं होते हैं. एक लंबी समय के लिए प्रक्रिया है. ऐसे कानून देश के हर व्यक्ति को प्रभावित करते हैं, तो उस पर निश्चित रूप से विचार करना चाहिए. वहीं कुछ ऐसे फैसले जैसे ऑपरेशन सिंदूर, ये एक बार टीम फैसला ले लेती है, फिर उस पर काम होता है. इसके लिए मोदी जी ने हमारी सेना को अधिकृत कर दिया था. फैसले के वक्त सीसीएस की बैठक हुई, सीसीएस ने सेना को एकाधिकार दे दिया. फिर वहां लोकतांत्रिक फैसले नहीं होते, ये तो काम पर निर्भर करता है कि वो क्या है. गुजरात में भी ऐसे मंत्री समूह बनाए गए थे.
सवालः आज से ही नए जीएसटी रिफॉर्म लागू हो रहे हैं, आपको लग रहा है कि इससे भारत की अर्थव्यवस्था में उछाल आएगा और देश की जीडीपी ग्रोथ बढ़ेगी?
अमित शाहः जीएसटी बना तब से ही कुछ लोग इसे बदनाम करने में लगे रहे, इसे गब्बर सिंह टैक्स कहते रहे. फिर उन्होंने देखा कि यह सफल हो रहा है, तो कहा कि यह हमारा विचार था. प्रणब मुखर्जी ने इसके बारे में सोचा था, पी. चिदंबरम ने इसके बारे में सोचा था, आपने हमारा विचार चुरा लिया. जब वे 10 साल सत्ता में रहे, तो वे इसे लागू नहीं कर पाए. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल के चौथे साल में ही जीएसटी लागू कर दिया. उस वक्त राज्यों ने क्यों विरोध किया था, क्योंकि 16 तरह के सेल्स टैक्स एकत्र कर हम जीएसटी बनाते हैं. इसमें सभी 16 तरह के टैक्स समाहित हो जाएंगे. इसलिए, इसका राज्यों की आय पर असर पड़ने वाला था. जब कांग्रेस इस विचार के साथ आई, तो राज्यों ने कहा कि इसके प्रतिकूल प्रभावों का भुगतान केंद्र सरकार को करना चाहिए. उन्होंने कहा, हां, हम करेंगे. इसलिए, राज्यों ने एक संवैधानिक गारंटी मांगी, जो उन्होंने नहीं दी. अब अगर कोई संवैधानिक गारंटी नहीं देगा तो उन पर भरोसा कौन करेगा?
जब पीएम मोदी सत्ता में आए तो उन्होंने फिर से चर्चा शुरू की. उस समय अरुण जेटली विदेश मंत्री थे. फिर वही समस्या आई, तब पीएम मोदी ने कहा कि हमने कहा था कि संवैधानिक गारंटी दी जानी चाहिए. तो हम कैसे पीछे हट सकते हैं? उस समय विदेश मंत्रालय, नौकरशाह, विदेश मंत्री और सभी के पास बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. पांच साल तक आप 14 प्रतिशत वृद्धि की गारंटी लेंगे और उसका भुगतान करेंगे. फिर वे इसके लिए सहमत हुए. गारंटी पिछले नवंबर तक पूरी हो गई. इसी वजह से जीएसटी को मंज़ूरी मिली और यह सफल रहा. जीएसटी संग्रह 80,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपये हो गया है. अब समय आ गया है कि जीएसटी से जनता को राहत दें. हम इसे बढ़ाकर 2.5 लाख करोड़ रुपये तक भी कर सकते थे. लेकिन फिलहाल, व्यवस्था बन गई है, कलेक्शन बढ़ा है. लोगों को कई चीज़ों में राहत मिलेगी. इससे बिजली, सीमेंट, दैनिक खाद्य उपभोग, स्वास्थ्य सेवा, बीमा, ऑटोमोबाइल, कार, ट्रक, ट्रैक्टर और कृषि में इस्तेमाल होने वाले सभी उत्पाद सस्ते हो गए हैं, ये एक बहुत बड़ा फैसला है. लोगों को आज से लाभ मिलना शुरू हो गया है. मेरा मानना है कि इससे उत्पादन और खपत बढ़ेगा. देश में एक विश्वास-आधारित टैक्स सिस्टम होगा. जीएसटी सुधारों से भारत के लोगों को विश्वास होगा कि यह टैक्स 'सरकार की आय बढ़ाने के लिए नहीं' बल्कि 'देश चलाने' के लिए है.