'लाक्षागृह' जहां पांडवों को जलाने की हुई थी कोशिश, उस जगह पर अब हिंदू पक्ष का मालिकाना हक

लाक्षागृह को कोरवों ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए बनवाया था. कोरवों ने लाक्षागृह को आग लगा दी थी, हालांकि, पांडव इस आग से सुरक्षित बच निकले थे. यह क्षेत्र ऐतिहासिक महत्‍व रखता है.

Advertisement
Read Time: 19 mins

बागपत:

उत्‍तर प्रदेश में बागपत के बरनावा गांव की वो जगह जहां पांडवों को जलाने की कोशिश की गई थी, उस जगह पर हिन्दू और मुसलमान दोनों ने अपना दावा पेश किया था. अब कोर्ट ने इस जगह का मालिकाना हक हिन्दू पक्ष को दे दिया है. इसे लाखा मंडप क्षेत्र कहा जाता है. कोर्ट के फैसले के बाद से यहां की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. हिन्दू पक्ष इस क्षेत्र को महाभारत कालीन लाक्षागृह क्यों कहता रहा है और अभी क्या के क्‍या हालात हैं... स्‍पेशल रिपोर्ट.

लाखा मंडप क्षेत्र पर विवाद 1970 में शुरू हुआ था, मुकीम खान नाम के शख्‍स कोर्ट चले गए और उन्‍होंने दावा किया कि यह एक मजार है. मुकीम खान ने कोर्ट में कहा कि यह स्‍थल सूफी संत बदरुद्दीन शाह की मजार है, जो यहां रहे थे. लेकिन एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद बागपत की कोर्ट ने अब यह फैसला सुनाया है कि मुस्लिम पक्ष का दावा सही नहीं है. विवाद खड़ा होने के कारण 108 बीघा के पूरे एरिया को एएसआई ने सुरक्षित घोषित कर दिया था. इस एरिया में बने एक गुंबदनुमा ढांचे को एएसआई ने पुरातात्विक इमारत घोषित कर दिया था. हिंदू पक्ष का कहना है कि ये महाभारत कालीन लाक्षागृह है. 

Advertisement

बताया जाता है कि लाक्षागृह को कोरवों ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए बनवाया था. कोरवों ने लाक्षागृह को आग लगा दी थी, हालांकि, पांडव इस आग से सुरक्षित बच निकले थे. यह क्षेत्र ऐतिहासिक महत्‍व रखता है. हस्तिनापुर, जिसे पांडवों की राजधानी माना जाता है, वो यहां से सिर्फ 30 से 35 किलोमीटर की दूरी पर है.

Advertisement

एएसआई ने इस जगह पर खुदाई भी की थी, तब यहां महाभारत कालीन चीजें पाई गई. इससे भी साबित हो पाया कि ये जगह किसी सूफी संत की मजार नहीं है. यह हिंदुओं से जुड़ा कोई स्‍थल है. लगभग 53 सालों तक इस जगह को लेकर कोर्ट में मुकदमा चला. आखिरकार, कोर्ट ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया.   

ये भी पढ़ें :- 

Advertisement
Topics mentioned in this article